छत्तीसगढ़ की इस पहाड़ी पर हुआ था भीम का हिडिम्बा से विवाह
यह घटना महाभारत काल की है. लाक्षा गृह अग्निकांड से किसी तरह प्राण बचाकर भागे पांडव अपनी माता कुंती एवं पत्नी द्रौपदी के साथ छत्तीसगढ़ के जंगलों में पहुंचे. उन्होंने एक ऊंची पहाड़ी पर एक सुन्दर वाटिका देखी. वाटिका निर्जन प्रतीत हो रही थी. पांडवों ने कुछ दिन यहीं विश्राम करने का मन बना लिया.
भीमखोज गांव की पहाड़ी पर स्थित यह वाटिका राक्षस राजा हिडिम्ब की थी. हिडिम्ब और उनकी बहन हिडिम्बनी अकसर यहां टहलने के लिए आते थे. राक्षसों की वाटिका होने के कारण इसका नाम खल्लवाटिका पड़ गया था. यहां एक माता का मंदिर भी था जिसे आज हम खल्लारी माता के नाम से जानते हैं. पहाड़ी को खल्लारी पहाड़ी के नाम से जाना जाता है. हिडिम्ब की राजधानी सिरपुर में थी.
जैसे ही पांडवों ने खल्लारी में प्रवेश किया हिडिम्ब को मनुष्यों की उपस्थिति का आभास हो गया. उसने खल्लवाटिका का हाल जानने के लिए अपनी बहन हिडिम्बनी को भेजा. हिडिम्बनी वहां पहुंची तो उसने पांच सुपुरुषों एवं दो स्त्रियों को वहां विश्राम करते देखा. एक अत्यंत बलशाली पुरुष पहरा दे रहा था. हिडिम्बनी का उसपर दिल आ गया.
हिडिम्बनी ने तत्काल एक सुन्दर राजकुमारी का रूप धर लिया और उसके पास पहुंचकर प्रणय निवेदन कर दिया. वह पांडवों का गदाधर भीम था. भीम ने उसका प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया. पर हिडिम्बनी को उसके बल की परीक्षा भी लेनी थी. इस पर भीम ने पहाड़ी पर जहां तहां वेग से पदाघात करना शुरू कर दिया. जहां जहां उसके पैर पड़ते वहां चट्टान धंस जाती.
हिडिम्बनी को यकीन आ गया कि यह मनुष्य असाधारण प्रतिभाशाली और समर्थ है. उधर देर होती देखकर हिडिम्ब स्वयं भी खल्लारी पहुंच गया.
तब तक सभी पांडव, कुंती और द्रौपदी उठ चुके थे. खल्लारी माता मंदिर में ही भीमसेन का हिडिम्बिनी से गंधर्व विवाह करा दिया गया. उन दोनों से एक पुत्र घटोत्कच पैदा हुआ जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है. इस तरह भीम छत्तीसगढ़ के जंवाई बन गए.
काफी समय तक उपेक्षित पड़ा रहने के बाद 1985 में पहली बार यहां मंदिर में ज्योत प्रज्जवलित किया गया. सुन्दर मंदिर का निर्माण किया गया. पहले लोगों को लगभग 850 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती थीं. पर अब सरकार ने यहां रोपवे की स्थापना कर दी है. खल्लारी महासमुंद जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
श्रद्धालु दूर-दूर से माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. ऐसा माना जाता है कि जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं वह संतान प्राप्ति के लिए मनोकामना ज्योति प्रज्वलित कर जाते हैं. हर साल शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. चैत पूर्णिमा के दिन खल्लारी में मेला महोत्सव का आयोजन किया जाता है.












