Breast cancer on the rise in India

 समय पर गर्भधारण करने से कम हो जाती है स्तन कैंसर की संभावना : डॉ  केकरे

भिलाई। महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़े हैं. इसके बाद क्रमशः गर्भाशय ग्रीवा (सर्विंक्स), फेफड़े और कोलोरेक्टर कैंसर के मामले आते हैं. गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की रोकथाम के लिए अब टीके भी उपलब्ध हैं. पर क्या आप जानते हैं कि सही उम्र में मां बनने तथा स्तन पान कराने वाली माताओं को स्तन कैंसर होने की संभावना काफी कम हो जाती है?

हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के कैंसर विशेषज्ञ डॉ अनंत मुकुन्द केकरे बताते हैं कि महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं. वर्ष 2018 में महिलाओं में पाए गए सभी नए कैंसर मामलों में लगभग 28% स्तन कैंसर के थे. नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के अनुसार वर्ष 2019 में स्तन कैंसर के 2,00,218 मामले दर्ज हुए, जो वर्ष 2023 में बढ़कर 2,21,579 पर पहुंच गए. वर्ष 2022 में दुनियाभर में स्तन कैंसर से हुई 6,65,255 मौतों में से सबसे अधिक यानी 98,337 महिलाएं भारत में थीं.

डॉ केकरे ने बताया कि वायु प्रदूषण, विवाह की बढ़ती उम्र, बिगड़ी खानपान और जीवनशैली सामूहिक रूप से इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. अध्ययनों में यह पाया गया है कि 20 से 30 साल की उम्र के बीच मां बनने और स्तनपान कराने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर की संभावना काफी कम हो जाती है. अच्छी बात यह है कि स्तन कैंसर के मामले जल्दी पकड़ में आने पर इसका प्रभावी इलाज संभव है जिसके बाद महिलाएं लंबे समय तक एक अच्छा जीवन जी सकती हैं. महिलाएं प्रतिदिन अपने स्तनों की स्वयं जांच कर उभार या गांठ का पता लगा सकती हैं.

महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) का होता है. इसकी रोकथाम के लिए टीका उपलब्ध है. सक्रिय यौन जीवन शुरू करने से पहले टीका लगवाना उत्तम होता है जबकि बाद में भी इसे लगाया जा सकता है. इसकी जांच भी बहुत आसान है जो किसी क्लिनिक में की जा सकती है. नियमित रूप से पैप स्मीयर टेस्ट करवाने पर स्टेज-0 पर भी इसे पकड़ा जा सकता है.

कैंसर के कुछ मामले महिलाओं और पुरुषों में समान रूप से पाए जाते हैं. तम्बाकू और गुटखा का सेवन आजकल महिलाएं भी कर रही हैं जिससे मुंह और गले के कैंसर का खतरा बढ़ रहा है. गुटखा और तम्बाकू का रस गले के रास्ते पाचन संस्थान तक पहुंच सकता है और उन्हें भी प्रभावित कर सकता है. फास्टफूड और रेडमीट के कारण भी महिलाओं में भी आंतों का कैंसर बढ़ रहा है.

डॉ केकरे बताते हैं कि कैंसर के निदान की नई तकनीकें एवं चिकित्सा की नई सुविधाएं विकसित होने से अब न केवल कैंसर ठीक हो सकता है बल्कि जीवन प्रत्याशा एवं गुणवत्ता में भी इजाफा हो रहा है. पर जागरूकता के अभाव में लोग अस्पताल तब पहुंचते हैं जब कैंसर दूसरे या तीसरे स्टेज में प्रवेश कर चुका होता है. इसके बाद कैंसर का इलाज और प्रबंधन काफी मुश्किल हो जाता है.

कैंसर से बचाव कैसे करें

कैंसर से बचाव की चर्चा करते हुए डॉ केकरे बताते हैं कि सबसे पहले जरूरी है कि हम एक स्वस्थ जीवन शैली को अपनाएं और खानपान को ठीक करें. इसके साथ ही जागरूक हों तथा कैंसर की छोटी से छोटी संभावना दिखाई देने पर तुरन्त जांच करवाएं. महिलाएं अपने मासिक चक्र का ध्यान रखें. दो मासिक चक्रों के बीच में रक्तस्राव, योनी से असामान्य स्राव, माहवारी बंद होने के बाद रक्तस्राव, संबंध बनाने पर रक्तस्राव होने पर तत्काल डाक्टर की सलाह लें. इसी तरह एक हाथ को ऊपर उठाकर दूसरे हाथ की हथेली से स्तनों की जांच करें. गांठ या गोले का अहसास होने पर तत्काल डाक्टर से मिलें. निपल्स से किसी भी तरह डिस्चार्ज होने अथवा उनका रंग या आकार बदलने पर भी डाक्टर से संपर्क करें. ये कैंसर के लक्षण हो सकते हैं.

कैंसर के इलाज की नई विधियां

डॉ केकरे ने बताया कि आरंभिक दौर में कैंसर के उपचार के लिए अपनाए जाने के तरीके शरीर के रोगी ऊतकों के साथ ही स्वस्थ ऊतकों को भी नुकसान पहुंचाते थे. पर अब ऐसा नहीं है. एक तरफ जहां सर्जरी की नवीन तकनीक बेहतर नतीजे दे रहे हैं वहां रेडिएशन थेरेपी की नई तकनीक स्वस्थ ऊतकों को सुरक्षित रखते हुए रोगी ऊतकों पर ही वार करती है. टारगेटेड थेरेपी से केवल रोगी हिस्सों तक दवा पहुंचाना संभव हुआ है. कैंसर के इलाज में अब इम्यूनोथेरेपी और हार्मोन थेरेपी जैसे उपचारों को भी शामिल किया गया है.

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