पांच साल आगे की सोच कर करें करियर का चयन : डॉ सूरीशेट्टी

Workshop on way of thinkingभिलाई। अंतरराष्ट्रीय शिक्षाविद एवं शिक्षण प्रशिक्षण सलाहकार डॉ जवाहर सूरीशेट्टी ने विद्यार्थियों को पांच साल आगे के परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए करियर का चयन करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि सफलता के लिए कुछ अलग सोचने की क्षमता को विकसित किए जाने की जरूरत है। वे एमजे कालेज में ‘सोच’ पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। डॉ जवाहर सूरीशेट्टी ने बताया कि महिला सशक्तिकरण के दौर में रोजगार शुदा महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। महिलाओं के भी कामकाजी होने से परिवार में दो तरह के परिवर्तन होते हैं। घर की साज सज्जा पर खर्च बढ़ता है। साथ ही बाहर जाकर भोजन करने या भोजन आर्डर करने का चलन बढ़ता है। इन क्षेत्रों में रोजगार की नई संभावनाएं बनेंगी। Dr Jawahar Surrishettyनया और कुछ हट कर सोचने की क्षमता को विकसित करने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षण प्रशिक्षण का ढर्रा भी बदलना चाहिए। परीक्षाओं का पैटर्न भी बदलना चाहिए। परीक्षा अर्जित ज्ञान की होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ के साथ ही केन्द्र सरकार भी देश में शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में काम कर रही है। जल्द ही इसके नतीजे आएंगे।
शोले फिल्म का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यह फिल्म हमें काफी कुछ सिखा जाती है। स्लीवलेस ठाकुर (संजीव कुमार) को गब्बर सिंह को पकड़ना था। पर उनके हाथ गब्बर सिंह ने काट लिये थे। इसलिए उन्होंने इस काम को आउटसोर्स कर दिया। जय (अमिताभ) और वीरू (धर्मेन्द्र) को उन्होंने इस काम पर लगाया। जय और वीरू दोनों का स्वभाव एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न था पर दोनों मिल कर एक दूसरे की कमियों को पूरा करते थे और एक टीम की तरह काम करते थे। जीवन में सफल होने के लिए इन दोनों गुणों को आत्मसात करना चाहिए।
कार्य के प्रति निष्ठा और समर्पण के लिए मां का उदाहरण देते हुए डॉ सुरीशेट्टी ने कहा कि प्रतिदिन 10 बजे कालेज जाने वाला बच्चा जब मां से कहता है कि कल उसे 7 बजे जाना है तो उसे 7 बजे से पहले ही नाश्ता मिल जाता है। उसे अपने कपड़े धुले हुए, इस्त्री किए हुए मिलते हैं। सिर्फ बच्चे के लिए ही नहीं बल्कि अपने पति और अन्य बच्चों की जरूरतों को भी उनकी जरूरत और रुचि के अनुसार पूरा करने का प्रयास करती है। वह बिना किसी शिकवा शिकायत के ऐसा करती है। यदि काम करने की इच्छा हो तो साधन और संसाधन भी जुट ही जाते हैं।
इसी तरह जब गुजरात सरकार से उन्होंने सेन्टर आॅफ एक्सेलेंस निर्माण का प्रस्ताव दिया तो तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे उनकी जरूरत के बारे में पूछा। उन्होंने 18 जिलों में 50-50 हजार वर्गफीट भवन की मांग की। यह मांग 28 फरवरी को रखी गई। ठीक 3 महीने बाद 28 मई को श्री मोदी ने उन्हें गुजरात बुलाया और भवन उनके हवाले कर दिया। इतनी तेजी से काम करवाने के लिए उन्होंने 28 फरवरी को ही मुख्य सचिव, वित्त सचिव, लोनिवि प्रमुख आदि के साथ बैठक कर उन्हें प्रोजेक्ट पर तत्काल काम शुरू करने के लिए कह दिया था।
MJ College Workshopअपने जीवन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें औपचारिक शिक्षा नहीं मिल पाई। घर के आर्थिक हालातों ने उन्हें 8 साल की उम्र में रोजगार के लिए प्रवृत्त किया। उन्होंने विशाखापट्टनम के जगदम्बा जंक्शन का रुख किया। यहां इडली चटनी के 10 ठेले लगते थे। एक ठेला खाली था। उसपर उसके मालिक का फोन नम्बर था। उन्होंने सम्पर्क किया तो ठेला बिना किराए के मिल गया। शर्त यह थी कि ठेला मालिक का बनाया अचार भी उन्हें बेचना था। उन्होंने एक नई सोच के साथ काम किया। इडली के बीचों बीच अचार की टिकली लगाकर बेचना शुरू किया। सफलता मिली। ग्राहक बनते चले गए।
आर्थिक हालात बेहतर हुए तो शिक्षा की तरफ ध्यान गया। उन्होंने आईएचएम कोलकाता से फूड प्रोडक्शन का डिप्लोमा कर लिया। यहीं पर एक गोवानीज टीचर ने उन्हें अंग्रेजी की तालीम दी। इसकी बदौलत वे विदेशों में अपनी बात रखने में सफल हुए। अमेरिका, क्वीन्सलैंड में उनकी बातों को गंभीरता से लिया गया। बच्चों में नया सोचने की क्षमता विकसित करने का उनका फार्मूला अब वहां के 300 स्कूलों में चलाया जा रहा है। नतीजे अच्छे आ रहे हैं।
बेहतर सरकार के लिए युवाओं के राजनीति में आने को अपरिहार्य बताते हुए उन्होंने कहा कि जिस देश में 65 फीसदी जनता युवा हो वहां के नेतृत्व की औसत उम्र यदि 67 वर्ष हो तो अपेक्षाओं के पूरा होने की संभावना कम हो जाती है। यदि तैराकी सीखनी हो तो तालाब में छलांग तो लगानी ही होगी।
प्रख्यात शिक्षाविद ने कहा कि ज्ञान अर्जित करने से भी ज्यादा जरूरी है ज्ञान को उपयोग में लाना। पूर्ण ज्ञान अर्जित करने के लिए तार्किक सवाल पूछे जाने चाहिए। शिक्षा सोच के साथ जुड़ेगी तो ज्ञान गहरा और स्थायी होगा।
डॉ जवाहर सूरीशेट्टी ने कहा कि राष्ट्रनिर्माण की बातें बहुत होती हैं पर प्रयत्न कम होते हैं। सबसे पहले हमें अपने जीवन में आत्मानुशासन लाना होगा। कार्य के प्रति प्रतिबद्धता लानी होगी। राष्ट्र के निर्माण में बेहतर कार्यनिष्पादन सर्वोपरि है।
संतोष रूंगटा ग्रुप के टीचिंग फॉर एम्पावरमेंट एंड मॉरल्स (टीम) ग्रुप द्वारा आयोजित इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए एमजे कालेज की निदेशक श्रीमती श्रीलेखा विरुलकर ने डॉ जवाहर सूरीशेट्टी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रभक्ति हम सबमें है। जब हम छोटे होते हैं तो पूरे देश को बदल देना चाहते हैं। थोड़ा बड़ा होने पर हमें यह बहुत बड़ा काम लगने लगता है तो हम अपनी सोच के राज्य तक सीमित कर लेते हैं। क्रमश: राज्य से शहर और फिर शहर से अपने घर तक आकर हमारी सोच सिमट जाती है। काम को कठिन मानने की बजाय यदि हम उसे पूरा करने के उपायों पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए चेष्टा करें तो सबकुछ संभव है।
इस अवसर टीम के अध्यक्ष अफरोज आलम, सचिव सुमित शर्मा, दीया के छत्तीसगढ़ प्रमुख डॉ पीएल साहू, डॉ चेतना ताम्रकार, एमजे कालेज के डॉ टिकेश्वर कुमार, श्रीमती सी कन्नम्मल, डॉ श्वेता भाटिया, चरनीत संधु, प्रशासक वीके चौबे, पंकज सिन्हा, सहा. प्राध्यापकगण समेत टीम के अन्य सदस्यगण मौजूद थे। संचालन टीम के श्री साहू ने किया।

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