Rikhi Chhatriya narrates the use of folk instruments

इन्टैक के बच्चों ने जाना लोक वाद्यों का रोचक इतिहास

भिलाई। लोक वाद्यों का उद्भाव शिकार, युद्ध, सूचना में सहायक के रूप में हुआ। भारत में लोक वाद्यों का इतिहास एक हजार साल से भी अधिक पुराना है। प्रसिद्ध लोक कलाकार एवं लोक वाद्यों के संग्राहक रिखी क्षत्रिय ने इसकी रोचक जानकारी भारतीय सांस्कृतिक निधि (इन्टैक) से जुड़े बच्चों को एक कार्यशाला में दी। इस कार्यशाला में 18 स्कूलों के 194 विद्यार्थी अपने शिक्षक प्रभारियों के साथ ऑनलाइन शामिल हुए।INTACH workshop on Folk Instrumentsरिखी क्षत्रिय ने बताया कि किस तरह उस समय के बाघ इंसानों की आवाज निकाला करते थे और शिकारी बाघ को चकमा देने के लिए इंसान किस तरह के पैंतरे आजमाते थे। लोकमान्यता के अनुसार जिन लोगों को बाघ खा जाया करते थे, उनकी आत्माएं इंसानों की आवाज निकालने में बाघो की मदद करती थी। उन्होंने जंगल में आपसी संवाद कायम करने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली छोटी-छोटी मिट्टी की वस्तुओं को बजाकर पक्षियों की आवाजें निकालीं।
अपने संग्रहालय में रखे 170 से अधिक विलुप्तप्राय लोकवाद्यों के बारे में उन्होंने विस्तार से जानकारी दी। इनमें से धुन्धरा, मुंडा बजा, धन्कुर, चिकारा, खंजेरी, चढ़े, कुहकी, सिसरी, रोंजो, खनखना, ठड़का, अलगोजा, टेपरा व भेर को उन्होंने बजाकर भी दिखाया। कभी वे मटके में पानी भरकर चमड़ा और मोरपंख के सहारे उन्होंने शेर के दहाड़ने की आवाजें निकालते थे तो कभी धनुष, सूपा और मटके का उपयोग कर संगीत उत्पन्न करते थे। बच्चों ने इस कार्यशाला का भरपूर लुत्फ उठाया।
इस कार्यशाला का आयोजन भारतीय सांस्कृतिक निधि (इंटेक) की विरासत शिक्षा व संचार सेवा के सहयोग से दुर्ग-भिलाई अध्याय द्वारा विलुप्तप्राय कलाओं के प्रति बच्चों में जागरूकता लाने के लिये किया गया था। रिखी क्षत्रिय ने इस अवसर पर कहा कि तेजी से बदलते दौर में लोक संस्कृति का संरक्षण यदि गंभीरता से नहीं किया गया तो हम जल्द ही अपनी पहचान गंवा देंगे।
आरम्भ में इन्टैक की विरासत शिक्षा व संचार सेवा की प्रमुख निदेशक पूर्णिमा दत्त (नई दिल्ली) ने इन्टेक द्वारा विरासत शिक्षा ने सांस्कृतिक विरासत व धरोहरों के संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। इन्टैक के दुर्ग भिलाई अध्याय के संयोजक डॉ डी एन शर्मा ने कहा कि विलुप्तप्राय: लोक कला व शिल्प से बच्चों को अवगत कराने के उद्देश्य से ऐसी कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है । इस कड़ी में यह दूसरी कार्यशाला थी। इस कार्यशाला में डीपीएस-भिलाई व दुर्ग, शंकरा सेक्टर 10, श्री शंकराचार्य स्कूल हुडको, डीएव्ही स्कूल हुडको, खालसा स्कूल दुर्ग, गुरुनानक स्कूल भिलाई , केपीएस स्कूल नेहरूनगर, शारदा विद्यालय, शकुंतला विद्यालय, आर्य स्कूल सेक्टर 6, सरस्वती शिशु मंदिर सेक्टर-4, महावीर जैन स्कूल दुर्ग, इंदु आईटीआई स्कूल कुरूद, आत्मानंद स्कूल दीपकनगर, हनोदा, मरोदा, तितुरडीह, बडगांव, रसमडा के शासकीय विद्यालय, महात्मा गाँधी स्कूल दुर्ग के विद्यार्थियों की उल्लेखनीय भागीदारी रही।
कार्यशाला का समन्वयन ‘स्वयंसिद्धा’ की अध्यक्ष डॉ सोनाली चक्रवर्ती ने करते हुए 63 वर्षीय रिखी क्षत्री का परिचय दिया और उनसे बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाया। दुर्ग भिलाई अध्याय की सह संयोजक विद्या गुप्ता ने आभार प्रदर्शन किया। इन्टैक के सदस्य प्रो दीपक रंजन दास ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया।

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