छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में माता के रूप में पूजे जाते हैं बजरंगबली
प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान को सर्वशक्तिमान, शौर्य और पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है. बाल ब्रह्मचारी श्री हनुमान की कभी किसी ने स्त्री रूप में कल्पना तक नहीं की होगी. पर छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर बने गिरिजाबंध मंदिर में इनकी स्त्री-रूप में पूजा होती है. कुछ लोग इस मंदिर को हजारों वर्ष पुराना बताते हैं जबकि कुछ इतिहासविदों का मानना है कि यह मंदिर लगभग 843 साल पुराना है. छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी रतनपुर स्थित इस मंदिर में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. रतनपुर महामाया शक्तिपीठ के लिए प्रसिद्ध है.
दक्षिणमुखी इस हनुमान मंदिर के बारे में एक किंवदंती प्रचलित है. कहा जाता है कि रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू को कुष्ठ हो गया. इसकी वजह से उनका लोगों के बीच आना जाना कम हो गया और समय के साथ उन्होंने स्वयं को एक कक्ष में बंद कर लिया. विवाह करना तो दूर की बात वे किसी को स्पर्श करने तक की सोच नहीं सकते थे. वे हनुमानजी के अनन्य भक्त थे. वे रोज भगवान से प्रार्थना करते और इस संकट को दूर करने की अर्जी लगाते. एक रात उनकी यह कोशिश सफल हो गई. हनुमानजी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर राजा को एक मंदिर और सरोवर बनाने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि सरोवर में स्नान करने पर वे रोग मुक्त हो जाएंगे.
स्वप्न में बजरंगबली को नारी रूप में देखकर राजा चकित रह गए. हनुमानजी देवी के रूप में थे. नाक में नथुनी, कानों में बालियां, माथे पर मुकुट और देह पर साड़ी. उनके एक हाथ में लड्डू की थाल थी तो दूसरा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठा हुआ था. हथेली पर श्री राम लिखा था. राजा ने स्वप्नादेश का पालन किया. मंदिर बन गया, सरोवर भी तैयार हो गया. अब संकट यह था कि हनुमान जी की कैसी प्रतिमा स्थापित की जाए.
एक बार फिर राजा को स्वप्न में हनुमान जी के दर्शन हुए. हनुमानजी ने बताया कि सरोवर में उनकी प्रतिमा सुरक्षित है. उसे ही लाकर मंदिर में स्थापित किया जाए. महामाया कुंड से निकाली गई मूर्ति बिलकुल वैसी थी जैसा राजा ने सपने में देखा था. हनुमान जी नारी रूप में ही थे. यह प्रसंग लंका कांड से जुड़ा है जब राम और लक्ष्मण का हरण कर अहिरावण पाताल लोक ले जाता है और अपनी कुलदेवी के आगे बलि देने का निश्चय करता है. हनुमान जी सूक्ष्म रूप में एक फूल में छिपकर उस मंदिर तक पहुंच कर देवी से प्रार्थना कर उन्हें वहां से अंतर्ध्यान होने को कहते हैं और खुद देवी रूप में वहां खड़े हो जाते हैं.
राजा ने पूरे विधि-विधान से मंदिर में मूर्ति की स्थापना करवाई. इसके बाद राजा की बीमारी पूरी तरह से ठीक हो गई. उस दिन के बाद से इस मंदिर में हनुमान जी के स्त्री स्विरूप की पूजा होती है. इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति का श्रृंगार महिलाओं की तरह किया जाता है और जेवर भी पहनाए जाते हैं. हनुमान जी के बाएं कंधे पर भगवान राम और दाएं कंधे में लक्ष्मण जी विराजमान हैं. उनके बाएं पैर के नीचे अहिरावण और दाएं पैर के नीचे कसाई दबा है. वहीं, मूर्ति में हनुमान जी के एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में लड्डू से भरी थाली है.
बता दें कि स्त्री वेश में हनुमान जी का यह इकलौता मंदिर नहीं है. लगभग 500 साल पुराना एक और मंदिर है जिसमें बजरंगबली की पूजा स्त्री रूप में की जाती है. यह मंदिर झांसी के ग्वालियर रोड पर स्थित है जिसे सखी हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है. यहां स्त्रीवेश के बावजूद हनुमानजी के हाथ में गदा है. कहा जाता है कि इस मंदिर में रात को घंटा कभी कभी अपने आप बजने लगता है. कुछ लोगों का दावा है कि यहां हनुमानजी कभी कभी रात्रि विहार के लिए आते हैं. हनुमानजी को अजर-अमर माना गया है जो आज भी पृथ्वी पर विचरण करते हैं.
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