Amazing Holi of Barsoor Bastar

होली पर यहां इंसान बनते हैं जानवर, बनते हैं शिकार

दंतेवाड़ा. सांस्कृतिक विविधताओं के देश भारत में कई परम्पराएं न केवल दिलचस्प हैं बल्कि अनोखे संदेश भी देते हैं. होली को लेकर भी देश भर में अलग-अलग तरह की परम्पराएं हैं पर बारसूल की परम्परा इनमें सबसे ज्यादा अनूठी है. यहां इंसान ही खरगोश, चीतल, गंवर आदि का स्वांग रचाते हैं. नागवंशी शिकारी इनके शिकार का नाटक करते हैं. इन पर तीर भाले से हमला करते हैं, इन्हें जाल में फंसाते हैं. इस परम्परा का निर्वहन यहां 1100 साल से चली आ रही है.
बताया जाता है कि 1100 साल पहले, तत्कालीन नागवंशीय शासकों के शासनकाल में यह परम्परा शुरू हुई. बारसूर नागवंशी शासकों की राजधानी थी. अंतिम नागवंशी शासक को काकतीय नरेश अन्नमदेव ने परास्त कर दिया. इसके साथ ही राजधानी को भी बारसूर से जगदलपुर ले गए. लेकिन स्थानीय नागवंशी आदिवासी आज भी इस परम्परा का पालन करते हैं.
पत्रिका में प्रकाशित खबर के अनुसार दंतेवाड़ा के फागुन मेले की तर्ज पर यहां होली के दौरान आखेट के स्वांग रचे जाते हैं. हर शाम माता मावली दंतेश्वरी मंदिर से माता की डोली बाजे-गाजे के साथ बत्तीसा मंदिर प्रांगण तक लाई जाती है. फाल्गुन शुक्ल षष्ठी से यह सिलसिला शुरू होता है, जो होलिका दहन तक चलता है. होलिका दहन की रात लोग रातभर गंवरमार व अन्य आखेट का स्वांग रचाते हैं. तड़के 4 बजे होलिका दहन होता है जिसके बाद लोग अपने घर लौट जाते हैं.
ये सभी कार्यक्रम दो गर्भगृह वाले बत्तीसा मंदिर के सामने होते हैं. यहां पर बारसूर के विभिन्न पारा, बस्तियों के ग्रामीण जुटते हैं और दिन विशेष के अनुसार लमहा यानि खरगोश, कोडरी, चीतल, गंवर जैसे वन्य जीवों के रूप में तैयार होकर आखेट का स्वांग रचते हैं. इसमें हांका लगाने से लेकर जाल बिछाकर शिकार फांसने जैसे शिकार के तरीकों का प्रदर्शन किया जाता है.
बारसूर का इतिहास
छिंदक नागवंशी शासकों की राजधानी रही बारसूर ऐतिहासिक मंदिरों के लिए विख्यात है. सामंत चंद्रादित्य ने यहां पर बत्तीसा मंदिर व चंद्रादित्येश्वर मंदिरों का निर्माण कराया. इसके अलावा गंग महादेवी ने समलूर व बारसूर के अन्य देवालयों का निर्माण करवाया. यहां पर युगल गणेश प्रतिमा, बत्तीसा मंदिर, मामा भांजा मंदिर समेत कुल 147 मंदिर और इतने ही तालाब तत्कालीन शासकों द्वारा बनवाए गए थे. बारसूर में छिंदक नागवंशी राजाओं ने 1023 से 1324 तक लगभग 300 वर्षों तक शासन किया था.

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