Teachers lose temper, record UFM cases in CG

गुस्ताखी माफ : ऐसे में तो गुरुजी का दिमाग खराब होगा ही

हाईस्कूल और कालेज के बच्चों ने पढ़ाई को मजाक बना लिया है. अंग्रेजी के अक्षरों में हिन्दी लिख रहे हैं. अंग्रेजी में व्हाटसअप की भाषा का उपयोग कर रहे हैं. सवाल कुछ पूछा जा रहा है और जवाब कुछ और दे रहे हैं. कापी जांचने वाले भी परेशान. उत्तरों का क्रम इतना बिगड़ा हुआ होता है मानो किसी ने ताश की गड्डी को फेंट दिया हो. दस कापी जांचते तक टीचर खुद कन्फ्यूज हो जाता है कि किस उत्तर के कितने अंक देने हैं. भाषा पर बच्चों की पकड़ ऐसी कि कालेज पहुंचकर भी प्राचार्य को एक आवेदन नहीं लिखकर दे पाते. निजी स्कूल और कालेज तो अपना रिजल्ट ठीक करने के लिए बच्चों को कुदा-कुदा कर आगे निकाल ही देते हैं, सरकारी स्कूल-कालेजों के सामने भी विभाग का डंडा है. बच्चा फेल नहीं होना चाहिए. उन्हें कौन समझाए कि बच्चा एक परीक्षा में फेल होगा तो दूसरी बार पास भी हो जाएगा पर यदि आदत ही खराब हो गई तो जिन्दगी में उसका फेल होना तय है. इसी चिड़चिड़ाहट में इस बार कॉलेज और स्कूल की वार्षिक और सेमेस्टर परीक्षाओं ने यूएफएम के सारे रिकार्ड तोड़ दिये. साइंस फिक्शन मूवी देखने वालों को यूएफएम शब्द से उड़न तश्तरियों का आभास हो सकता है पर ऐसा है नहीं. इस यूएफएम का मतलब है अन-फेयर मीन्स. अर्थात नकल चोट्टई. परीक्षा दिलाने के वो तरीके जो सही नहीं हैं. इस साल रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने नकल के 600 से ज्यादा मामले दर्ज किये. स्कूलों की बात करें तो 10वीं-12वीं परीक्षा के 45 विद्यार्थियों के नतीजे रद्द कर दिये गये. इन्हें जुलाई में होने वाली अवसर परीक्षा में शामिल होने का मौका भी नहीं दिया जाएगा. वहीं सरगुजा संभाग के एक स्कूल में 10वीं बोर्ड के 209 परीक्षार्थियों को गणित में शून्य दे दिया गया. हालांकि, इन्हें पूरक की पात्रता होगी. यह सख्ती बहुतों को अच्छी लग सकती है. उन्हें लग सकता है कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी और बच्चे स्कूल-कालेज को लेकर गंभीर होंगे. अब तक तो केवल सरकार और पालक लगे हुए थे. सरकार स्कूल-कालेज खोलने, सुविधाएं जुटाने में लगी हुई थी तो वहीं पालक अपन पेट काटकर बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश कर रहे थे. बच्चे महीने में 5-7 बर्थडे पार्टी कर रहे थे. पढ़ाई के नाम पर ओटीटी चैनल सबस्क्राइब किये बैठे थे. अब शिक्षकों का सब्र जवाब देने लगा है. पहले नकल पकड़ने पर भी यूएफएम केस नहीं बनाते थे. बच्चों के भविष्य की चिंता होती थी. पर बच्चों ने इसका गलत मतलब निकाल लिया. इतने सारे यूएफएम केस टीचर्स की इसी खीझ का परिणाम है. अच्छा है, शायद विद्यार्थी सही रास्ते पर लौट आएं.

Display pic courtesy Sampath Speaking

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