द्विपक्षीय हर्निया में उलझ गई थी एक तिहाई अंतड़ी, हाईटेक में हुई सर्जरी
भिलाई। हर्निया को लेकर लापरवाही बरतने से कभी-कभी स्थिति गंभीर हो जाती है. 60 वर्षीय इस मरीज के साथ भी ऐसा ही हुआ. 3-4 साल से मरीज को पेट में दर्द रहता था जो छींकने या खांसने पर तेज हो जाता था. यहां तक कि वह पैंट भी नहीं पहन पाता था. उसने कई जगह दिखाया भी पर उससे फेफड़े और दिल की स्थिति के चलते कहीं भी सर्जरी नहीं हो पाई. अंततः हाइटेक में मरीज को स्टेबिलाइज करने के बाद उसकी सर्जरी कर दी गई. मरीज अपने पैरों पर चलकर घर लौट गया.
हाइटेक के जनरल और लैप सर्जन डॉ नवील शर्मा ने बताया कि जब मरीज को अस्पताल लाया गया तो वह शॉक की स्थिति में था. दिल की धड़कनें काफी कमजोर थीं. परिजनों ने बताया कि मरीज को काफी समय से सांस की तकलीफ है. जांच करने पर मरीज को द्विपक्षीय (बाइलेटरल) हर्निया से पीड़ित पाया गया. हर्निया इतना बड़ा था कि लगभग एक तिहाई आंतें उसमें फंसी हुई थीं. मरीज के पेट में जगह कम थी जिसकी वजह से डायफ्राम पर भी दबाव बढ़ गया था. इसकी वजह से मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और हृदय पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ रहा था.
डॉ शर्मा ने बताया कि बाइलैटरल या द्विपक्षीय हर्निया अक्सर पेट के निचले हिस्से के दोनों तरफ होता है. वजन उठाने, छींकने या खांसने से हर्निया का आकार बढ़ सकता है. इसलिए जैसे ही इसका पता चलता है तत्काल इलाज करा लेना चाहिए. इस मरीज के पेट के भीतर इतना दबाव था कि न केवल आंतें दो जगहों से निकल आई थीं बल्कि डायफ्राम पर इतना दबाव था कि दिल और फेफड़े भी अपना काम नहीं कर पा रहे थे.
हाइटेक की सर्जिकल टीम ने इस चैलेंज को स्वीकार किया. मरीज को स्टेबिलाइज कर आपरेशन की स्थिति में लाने में ही 5 से 6 दिन लग गए. एक ही सिटिंग में मरीज के दोनों तरफ के हर्निया को रिपेयर कर दिया गया. पर इससे पहले आंतों को पेट की दीवारों के अन्दर सरकाना था. यह एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि भीतर जगह पहले ही कम थी. पेट में आंतों का दबाव बढ़ने पर दिल के पूरी तरह बैठ जाने का खतरा बना हुआ था. बेहद सावधानी के साथ आंतों को भीतर बैठा दिया गया. जाली लगाकर पेट की कमजोर मांसपेशियों को मजबूती दी गई. पेट के भीतर बढ़े हुए दबाव का प्रबंधन किया गया. इलाज के 5-6 दिन बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और वह अपने पैरों पर चलता हुआ घर लौटा.
डॉ नवील शर्मा ने बताया कि मरीज को हर्निया काफी पहले ही हो चुका था जिसके लक्षण भी प्रकट हो चुके थे. पर इलाज में देर होती रही और प्रत्येक खांसी और छींक के साथ हर्निया का आकार बड़ा होता गया. यदि हर्निया में आंतें ज्यादा दिनों तक फंसी रह जातीं तो उस हिस्से को काटकर अलग करने की नौबत आ जाती है. विलम्ब होने पर यह गैंगरीन हो सकता है और मरीज की जान को खतरा उत्पन्न हो जाता है.