10 incarnations of drama

नाट्य कलाकारों के दशावतार (2) मत्स्य, कूर्म और वराह अवतार

जिस प्रकार हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दस अवतार माने गए हैं, ठीक उसी तरह नाट्य कला में पाए जाने वाले कलाकारों के भी दस अवतार होते हैं। यहां पर मैने एक 11 वे अवतार का भी जिक्र किया है , जो मेरी अपनी समझ से बेहद शक्ति प्रदान करने वाला अवतार हैं। डार्विन के मतानुसार पहले तीन अवतार पशुओं की श्रेणी में आते हैं। क्रमिक विकास चाहे जहां तक पहुंच गया हो, पर नाट्य की विधा में ये पहले तीन अवतार लगभग हर संस्था में दिखलाई देते हैं।
1) मत्स्य अवतार – ये वो कलाकार होते हैं जो कि कई जगह भटकने के बाद आपके नाट्य समूह में आते हैं। संभव है कि ये आपके नाट्य समूह में कुछ दिन रुक जाएं, पर इनकी प्रकृति इन्हें ज्यादा दिन नहीं ठहरने देती है। ये आजीवन एक संस्था से दूसरी संस्था में भ्रमण करते रहते हैं, ये इनकी फितरत है। इन कलाकारों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इन पर हाथ रखने पर ये फिसल जाते हैं, क्योंकि कई संस्थाओं की काई इन पर जमी रहती है। इसलिए इनके अभिनय से पुराने सड़े हुए बादाम की बू आती है।
2) कूर्म / कच्छप अवतार – कछुवे की चाल की तरह इन कलाकारों की चलने और सोचने की गति होती है। इनके काम करने की गति समय के विलोमानुपाती रहती है। निर्देशक सिर पटक कर मर जाए पर इनकी गति में कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। सीन में स्टेज पर इनकी एंट्री है और जनाब पान ठेले पर पान / गुटका / सिगरेट का सेवन फरमा रहे हैं। ये मंच पर अपना किरदार भी धीमी गति के समाचारों की तरह निबाहते हैं।
3) वराह अवतार – इन कलाकारों की प्रकृति वराह जैसी होती है। ये बड़ी आत्मीयता से आपके नाट्य समूह में बिना बुलाए प्रवेश करते हैं और ब्रेक लगा कर शीघ्र अति शीघ्र प्रस्थान!
हर संस्था में मुंह मारकर आए ये कलाकार “जैक ऑफ ऑल मास्टर ऑफ नन” होते हैं। अक्सर प्रदर्शन के दौरान ये वक्त से पहले एंट्री मार लेते हैं और सीन खत्म होने के पहले एग्जिट। शो में एक दो आदमी इनके पीछे छोड़ कर रखना चाहिए।
इनकी सोच घटिया होती है और उस पर तुर्रा ये कि ये उस सोच को नाटक का हिस्सा बनाना चाहते हैं।
इस बात को लेकर वे निर्देशक से दो – दो हाथ भी कर सकते हैं।
(तीसरी किश्त कल)….

आलेख का पहला भाग

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