Lifestyle disorders heavy on medical budget

विश्व स्वास्थ्य दिवस ; एक तो अलाली और उसपर चटोरापन पड़ रहा भारी

आम तौर पर शहरी लोग गांव में जाते हैं. वहां जागरूकता की बातें करते हैं. जागरूकता की बातें करने वालों में चिकित्सक, चिकित्सा सेवा कर्मी, स्कूल-कालेज के विद्यार्थियों से लेकर सरकारी अमला तक शामिल होता है. हम उन्हें बताते हैं कि क्या खाएं, क्या न खाएं. सरकारी स्वास्थ्य अमला उन्हें शासन की स्वास्थ्य सुविधाओं, योजनाओं और सुपोषण कार्यक्रमों की जानकारी देता है. पिछले कुछ वर्षों से इसमें योगा का प्रचार प्रसार करना भी शामिल हो गया है. हमारी सबसे बड़ी चिंता है देश में अस्वस्थ लोगों की बढ़ती भीड़. यदि यह संख्या इतनी ही तेजी से बढ़ती रही तो इनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं जुटाना देश की सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगी. कोविड काल ने स्वास्थ्य के प्रति लोगों को पहले से अधिक संवेदनशील तो बना दिया पर यह भाव स्थायी न हो सका. कोविड के दूसरे दौर के गुजर जाने के बाद लोग पुराने ढर्रे पर लौट आए. फिर वही अलाली की जिन्दगी, वही गाड़ियों की रेलमपेल, वहीं फास्ट फूड और स्वादिष्ट जहर का चस्का. कोरोना के दौर में बड़े-बड़े होटल रेस्तरां बंद हो गए. पर जैसे ही देश इससे बाहर आया नए-नए फूड ज्वाइंट्स की बाढ़ आ गई. पता नहीं क्यों, लोगों को घर का खाना रास ही नहीं आता. लोग कहते हैं कि कभी-कभी टेस्टी खाना खाने को भी मन करता है. घर से टिफिन लाने के बाद भी वे जोमैटो-स्विगी पर सब्जी आर्डर करते हैं. ऐसे में स्वास्थ्य दिवस और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है. कोरोनाकाल में हमने देखा है कि जिन्हें हम कुपोषित समझते थे, वो हमसे कहीं ज्यादा सुरक्षित साबित हुए. हमने गरीबों को सैकड़ों मील सामान के साथ पैदल चलते देखा. गरीब देशों से ज्यादा अमीर और विकसित देशों पर कहर बरपा हुआ. पर हमारी आंखें नहीं खुली. खुलती भी कैसे, जगाया उसे जा सकता है जो सो रहा हो. जो जागते हुए निद्रा में लीन है, उसका तो भगवान भी कुछ नहीं कर सकता. हमें समझना होगा कि भोजन का स्वाद नमक-मिर्च-मसालों से नहीं बल्कि भूख से आता है. यदि भूख नहीं है तो केवल लालच ही हमें खाने के लिए प्रेरित कर सकती है. हमें यह भी समझना होगा कि हमारी थाली पहले से कहीं ज्यादा पौष्टिक हो गई है. इसका दूसरा मतलब यह है कि हमें पहले से भी ज्यादा सक्रिय रहने की जरूरत है. सक्रियता का मतलब जिम में जाकर वातानुकूलित कमरे में सांस फुलाना नहीं बल्कि खुले वातावरण में थकने और पसीना बहाने से है. जिम में दो घंटा कुत्ते की तरह हांफने वाले भी जब एक किलोमीटर दूर स्कूल कालेज या बाजार बाइक और कार से जाने लगते हैं तो स्वास्थ्य प्रभावित होता है. हम सभी जानते हैं कि गाड़ियों का माइलेज अंडर टेस्ट कंडीशन्स बताया जाता है. वास्तव में वह माइलेज कभी मिलता नहीं. जिम और कामकाजी परिश्रम में भी यही अंतर है.

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