सद्साहित्य औषधि की तरह है

yudhishthir lal ji, shadani darbar, literatureरायपुर। शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल जी का मानना है कि सद्साहित्य औषधि की तरह है जो पूरे समाज को स्वस्थ और निरोग बनाती है। साहित्य किसी भी रूप में हो, वह समाज को न केवल सूचनाएं देती हैं, उसका ज्ञान बढ़ाती है बल्कि उसे दिशा देने में सक्षम होती है। […]इसलिए साहित्य सृजन में इस बात का ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी है कि जो कुछ भी हम लिख रहे हैं, उसका समाज पर तात्कालिक या दूरगामी प्रभाव कैसा होगा। समाचार पत्र भी साहित्य का ही एक रूप है। इसे हम आशु साहित्य भी कह सकते हैं जिसे तत्काल घटनाओं को केंद्रित कर लिखा जाता है। इसमें संवेदनशीलता, गंभीरता और सदउद्देश्य होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह प्रकाशन एक सद् उद्देश्य को लेकर प्रारंभ किया गया है और यह जरूर सफल होगा। संतश्री ने कहा कि समाज संक्रमणकाल से गुजर रहा है। बहुत कुछ तेजी से बदल रहा है। चारों तरफ प्रलोभन का मायाजाल है। भौतिक सुखों के लिए संसाधन जुटाने की होड़ लगी हुई है किन्तु इसके बीच में भी भारतीय समाज अपने संस्कारों से जुड़ा हुआ है तथा सेवा कार्यों के माध्यम से स्वयं को पुष्ट कर रहा है। यह बहुत संभलकर चलने का वक्त है तथा इसमें मीडिया की बहुत अहम भूमिका है। उन्होंने कहा, ‘मैं समझता हूँ, समाचार पत्र इस जिम्मेदारी को भली भांति समझते हैं तथा इसपर खरा उतर कर दिखाएंगे।Ó

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