पर्व स्वाधीनता का या मानवीय सुखद संभावनाओं का

new year 2016पंद्रह अगस्त भारत के स्वाधीनता का उत्सव देश के हर कोने में धूमधाम से मनाया जाता है। उत्सव का उल्लास तो स्वभाविक है पर उल्लास के पीछे का एक सत्य है कि आज आम आदमी अविश्वास और विद्वेष से उपजे विषवृक्षों से परेशान है। विज्ञान और तकनीकी के अदभुत आविष्कार से हमने ऊंचाइयों के नए आकाश को छुआ है लेकिन दूसरी ओर सामाजिक मूल्यों में विघटन, आतंकी और हिंसक गतिविधियां, भ्रष्टाचार, राजनीतिक दलों में सत्ता लोलुपता का भाव इस ओर इंगित करता है कि आज हम मानसिक रूप से गुलाम हैं। ईमानदारी, मानवता एवं सत्यता का ह्रास जिस तेजी से हो रहा है, वह सोचने को मजबूर कर देता है, कि हम शहीदों के बलिदान से प्राप्त स्वतंत्रता के अमूल्य उपहार का मूल्य समझ पा रहे हैं, या नहीं।
किसी राष्ट्र का धरोहर युवावर्ग होता है। हमारे युवा ऊर्जा से ओत-प्रोत हैं, और आज भी भारतीय युवा अपनी प्रतिभा का लोहा न केवल देश में अपितु विदेशों में मनवा रहे है। अफसोस हमारे कुछ युवा लक्ष्यहीन दिशा कि ओर बढ़ रहे है, जिसका परिणाम बलात्कार, गैंगरेप, चोरी, नशा, डकैती के रूप में सामने आ रहा है, यदि हम अपने युवाशक्ति को सही रास्ते पर न ला पाए तो देश पुन: गुलामी के कगार पर चला जाएगा। स्वाधीनता के इन सत्तर वर्षों में राजनीतिक कुटिलताएं भी अपना दांव-पेंच इस प्रकार खेल रही हैं कि आरोप-प्रत्यारोप, घोटालों और भ्रष्टाचार के बीच आम आदमी अचंभित है कि किस दल पर विश्वास करे और किस पर न करे। कभी-कभी तो लगता है कि देश को चलाने वाला वर्ग अगर ऐसा है जो अपने ही देश और देशवासियों के साथ गद्दारी कर रहा है, जो हमारी स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है क्योंकि देश चलाने के लिए इन्हे हमने ही लोकतांत्रिक आधार पर चुना है।
आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवाद एवं आंतरिक हिंसात्मक हमले आम आदमीं को यह सोचने पर मजबूर कर देता है, कि अगर सवेरे घर से निकलने के बाद शाम को सुरक्षित घर पहुंच जाएं तो हम स्वतंत्र हैं, क्योंकि घर से निकलने पर मौत के साये को हम अपने साथ महसूस करते है। महिलाओं की स्थिति में मौत के साथ अस्मिता का प्रश्न जुड़ जाता है क्योंकि उम्र या स्थान कोई भी हो वह महफूज नही है। ढाई वर्ष की मासूम बच्ची से लेकर 80 वर्ष की वृद्धा घर के बाहर दूसरों के द्वारा ही नहीं बल्कि अपने घर में अपनों के हैवानियत का शिकार होती है।
लगता है मानवता का भविष्य खतरे में है। इन सबके बीच भी यह सत्य है कि हम स्वतंत्र है- लेकिन कितने? इस स्वतंत्रता पर्व पर हमें दृढ़ संकल्प लेना होगा, अपनी स्वतंत्रता की अखण्डता के लिए, मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए, राजनीतिक शुचीता के लिए, आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए, भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए, संस्कार युक्त व्यावहारिक शिक्षा प्रणाली के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात जाति, धर्म, वर्ग के अधार पर भेद न कर समस्त भारतवासी के साथ समान व्यवहार हो जिससे सबका कल्यांण हो। तब हम मना पाऐगें स्वतंत्रता का वह पर्व जो मानवीय सुखद संभावनाओं का पर्व भी होगा।

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