हनी सिंह के पास भी है अपनी भीड़, दिक्कत क्या है?
जब भीड़ ही सफलता का पैमाना बन जाए तो इसे जुटाने की तकनीक पर तो नवाचार होंगे ही. मामला धर्म का हो या राजनीति का, शिक्षा का हो या मनोरंजन का, भीड़ ही आपकी सफलता का ग्राफ तय करती है. संतों-नेताओं को मुफ्त में सुनने के लिए लोग नहीं मिलते. लोगों को प्रलोभन देकर ट्रक, ट्रैक्टर-ट्राली में ढोकर लाना पड़ता है. हनी सिंह को लाइव देखने-सुनने के लिए लोग 20-20 हजार रुपए तक के टिकट खरीदते हैं. बेकाबू भीड़ बाउंसरों के पसीने छुड़ा देती है. इन कार्यक्रमों में हनी सिंह बेलगाम होता है. वह मंच से गालियां बकता है. लोगों से गालियां रिपीट करवाता है. फूहड़ और अश्लील इशारे करता है. उंगलियों और होठों से किये जाने वाले इन इशारों को समझने की औकात उनकी नहीं है जो 1990 से पहले पैदा हो गये थे. इसे समझने के लिए युवा खून चाहिए. खून में नशा चाहिए. आज देश में सबके पास अपनी-अपनी भीड़ है. कोई हिन्दुओं को साध रहा है तो कोई मुसलमानों को. अब तो ईसाई भी सड़कों पर उतर आए हैं. मोदी-योगी-राहुल सभी के पास अपनी-अपनी भीड़ है. शुद्ध शाकाहारियों के साथ ही उभय भोजियों (दाल-चावल-सब्जी-चिकन) के रेस्त्रां भी खूब चलते हैं. कुमार विश्वास के पास अपने फैन्स हैं तो संपत सरल को चाहने वालों की भी कमी नहीं है. अरुण जेमिनी जहां लट्ठमार हरियाणवी शैली में पारिवारिक चुटकुलों से ही हास्य पैदा कर लेते हैं वहीं कपिल शर्मा की अपनी छेड़खानी वाली विशिष्ट शैली है. दोनों ही सफल हैं और दोनों के ही पास अपनी-अपनी भीड़ है. श्लील-अश्लील शब्द समय के साथ बदलते रहते हैं. कभी फिल्मों में प्यार फूल और भंवरों के बीच होता था अब चूमा-चाटी और लव-मेकिंग सीन्स आम हैं. अपर मिडिल और हाईस्कूल के बच्चे भी मेकआउट करते हैं. अब शब्दों का केवल दो ही वर्गीकरण रह गया है – संसदीय और असंसदीय. धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली बातें असंसदीय हैं क्योंकि कानून इसकी इजाजत नहीं देता. जब बच्चों को कान, नाक, मुंह, आंख सिखाया जाता है तो कुछ अंगों के नाम उन्हें नहीं बताए जाते. इनके लिए लोग खुद ही शब्द गढ़ लेते हैं. कथित शरीफ टाइप इन्हें गुप्त अंग कहते हैं. गंदी बात और गंदे इशारों के लिए अलग कानून हैं. गंदी बात को लेकर हनी सिंह पर पहले भी एफआईआर हुए हैं. कई बार जेल जाने की नौबत आ चुकी है. इन्हीं कथित-अश्लील गानों को जब उन्होंने रायपुर में दोहराया तो भीड़ झूम उठी. कुछ लोगों को उनके ये गीत आपत्तिजनक लग सकते हैं पर इससे क्या वाकई कोई फर्क पड़ता भी है. देश के कई नेता अपने बिगड़े बोलों और भड़काऊ भाषणों के कारण ही जाने जाते हैं, पर सबकी दुकान चल रही है. पेशेवर-पेशेवर में कोई फर्क नहीं किया जाना चाहिए. किसी का पेशा नेतागिरी है तो किसी का संगीत. हनी सिंह वही गायेगा जिसे उसके फैंस पसंद करेंगे. क्या पता इसी के चलते किसी दिन वह विधायक या सांसद बन जाए.