100 साल पहले ईंटों से बना था यह रेलवे पुल, अब भी गुजर रही गाड़ियां
मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर. एमसीबी जिले में स्थित हसदेव रेलवे पुल अपनी स्थापना के 100 साल पूरे करने जा रहा है. पूरी तरह ईंटों से निर्मित इस रेलवे ब्रिज से होकर आज भी कोयले का परिवहन किया जाता है. लगभग 40 मीटर लंबे इस रेलवे पुल में सरियों का इस्तेमाल नहीं किया गया है. यह सम्पूर्ण एशिया में पूरी तरह ईंटों से बना एकमात्र रेलवे पुल है. अब इसे धरोहर के रूप में संरक्षित करने की मांग उठ रही है.
हसदेव ब्रिज में लोहे की छड़ों का इस्तेमाल नहीं किया गया है. ब्रिटिश शासन के दौरान 1925 में इस पुल का निर्माण शुरू हुआ था जो 1928 में पूरा हुआ. जर्मन इंजीनियरों की देखरेख में बने इस पुल में रूस से आई सीमेंट का उपयोग किया गया था. 40 मीटर लंबा यह रेलवे पुल 8 मजबूत पिलरों पर खड़ा है. इसका निर्माण चिरमिरी और झगराखांड क्षेत्र से कोयले के परिवहन के लिए किया गया था. आज भी यह पुल पूरी तरह सुरक्षित है और इसपर से गाड़ियां गुजर रही हैं.
पुल की अनूठी वास्तुकला को देखते हुए इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग की जा रही है. राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा मिलने से न केवल इस ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण सुनिश्चित होगा, बल्कि क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा. पर्यावरण प्रेमी सतीश द्विवेदी ने रेलवे मंत्रालय से ब्रिज को धरोहर के तौर पर विकसित करने की मांग की है. वहीं पुरातत्व विशेषज्ञ वीरेंद्र श्रीवास्तव ने इसे ऐतिहासिक पुल बताते हुए इसे संरक्षित करने एवं पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की है.