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शिक्षक दिवस : जो कुछ भी हूँ, अपने निरक्षर गुरू की वजह से हूँ – तीजन

Sep 5, 2020
Teachers day Teejan Bai Pandvani

शिक्षक दिवस पर संडे कैम्पस ने शिक्षकों से जुड़े संस्मरणों को साझा करने का आग्रह किया था। हमें ढेर सारी प्रविष्टियां मिलीं। उनमें से चुनिंदा को यहां प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है। पद्मविभूषण डॉ तीजन बाई ने गनियारी (पाटन) स्थित अपने निवास पर शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर संडे कैम्पस से चर्चा करते हुए कहा कि वे आज जो कुछ भी हैं, अपने गुरू बृजलाल की वजह से हैं। उनके गुरू शायद उनके लिए ही जी रहे थे। शिष्य को अपनी जगह सौंप कर वे इस दुनिया से विदा हो गए। गनियारी के जिस मकान में आज तीजन रहती हैं, वो स्थान कभी उनके गुरू बृजलाल का निवास था। यह स्थान उन्होंने अपने मामाओं से मोल ले लिया। बृजलाल गुरू होने के साथ-साथ उनके नानाजी भी थे।

कलम की तरह कुछ झुक कर ही अच्छा लिखा जा सकता है – श्रीलेखा
Teachers Day Shreelekha Virulkarएमजे ग्रुप भिलाई की निदेशक श्रीलेखा विरुलकर ने अपनी हिन्दी प्राध्यापक श्रीमती दवे को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अहं पर काबू पाने की सीख दी। वह अंतरराष्ट्रीय वाद-विवाद प्रतियोगिता था। हम सभी प्रतिभागी अपना आलेख उनके पास जांचने के लिए लेकर गए। उन्होंने मेरे आलेख में कुछ संशोधन का सुझाव दिया। तब तक मैं हर प्रतियोगिता में अव्वल आती रही थी। मेरे चेहरे से ही शायद उन्होंने भांप लिया कि मुझे टोकाटाकी पसंद नहीं आई। तब उन्होंने समझाया कि कलम भी तभी अच्छे से लिख पाती है जब वह थोड़ी झुकी हो। आज भी जब भी कभी अहंकार काम के आड़े आने लगता है तो उनका चेहरा और उनकी वह मीठी सी आवाज कानों में गूंज उठती है। उनकी इस सीख ने मुझे जिन्दगी में सही फैसले लेने में हमेशा मदद की।

गुरू से मिली निरंतर संघर्ष की सीख – डॉ कुबेर सिंह गुरुपंच
Teachers Day Dr Kuber Gurupanchदेवसंस्कृति महाविद्यालय खपरी के प्राचार्य डॉ कुबेर सिंह गुरुपंच कहते हैं कि शिक्षक दिवस पर संत गुरू घासीदास शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुरुद (धमतरी) के भूगोल विभाग के अध्यक्ष प्रो. मनहरण सिंह साहू की बरबस याद आ जाती है। वे कहते थे, जीवन संघर्ष का नाम है, इससे कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। तब से आज तक यही उनके जीवन का मूलमंत्र बना हुआ है। बात 1990 की है जब श्री गुरुपंच स्नातकोत्तर एवं एम. फिल., पीएचडी की तैयारी कर रहे थे। प्रो. साहू ने निरंतर न केवल उनका मार्गदर्शन किया बल्कि प्रत्येक चरण में उनका सहयोग भी किया। शोध लेखन, संगोष्ठी में सहभागिता एवं पुस्तक लेखन में उनका मार्गदर्शन निरंतर मिलता रहा। उनसे एक आत्मीय संबंध जुड़ गया। उनके सान्निध्य में ही सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्य शुरू किया और फिर अनेक शासकीय और निजी महाविद्यालयों में विभिन्न पदों पर काम करने का सौभाग्य मिला। उनका स्नेह, सहयोग एवं मार्गदर्शन आज भी उनका पथ आलोकित करता है। डॉ गुरुपंच बताते हैं कि प्रो. साहू ने गुरू होने के साथ-साथ बड़े भाई की भांति उनका सहयोग किया। आर्थिक परेशानी हो या पारीवारिक समस्या, वे हमेशा मनोबल बढ़ाते रहे और संघर्ष की सलाह दोहराते रहे।

वक्त और परिस्थितियों ने गुरू बनकर मुझे आगे बढ़ाया- वर्षा शर्मा
Teachers Day Varsha Sharmaहमेशा यह जरूरी नहीं होता कि आपको राह दिखाने वाला कोई दूसरा हो। कभी-कभी वक्त और परिस्थितियां भी आपको सिखाती हैं और आगे बढ़ाती हैं। देवसंस्कृति कालेज ऑफ एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी की वर्षा शर्मा बताती हैं कि जीवन में उन्होंने ढेरों चुनौतियों का सामना किया। माता-पिता के आशीर्वाद और समर्थन से वे उन सभी परिस्थितियों का मुकाबला करती गईं और उनसे सीख लेकर आगे बढ़ती रहीं। उससे मिले अनुभव के कारण ही आज नौकरी एवं स्वयं के व्यवसाय के बीच संतुलन बनाए रखकर चल पा रही हैं। वे कहती हैं कि उनकी उपलब्धियां इतनी बड़ी नहीं हैं कि लोग उनके विषय में जानें, पर ये उपलब्धियां उनका मनोबल बनाए रखने और निरंतर आगे बढ़ाने के लिए काफी हैं।
देव संस्कृति कालेज ऑफ एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी

रिजल्ट आने पर माता-पिता से पहले मैने टीचर को फोन किया – अलब्राइट
Teachers Day Albright Lakraकभी कभी टीचर आपपर इतनी गहरी छाप छोड़ता है कि आप अपने हर खुशी को सबसे पहले उसके साथ ही शेयर करना चाहते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। जब रिजल्ट आया तो माता-पिता से पहले मैंने अपने टीचर को फोन किया। कुछ ऐसी ही हैं वो। उनकी डांट-फटकार, आंखें बड़ी करके बच्चों को धमकाना, चेहरे पर भूचाल जैसे भाव ले आना उनकी फितरत है। क्लास में यदि आप लेट हो गए तो खैर नहीं। बाहर ही खड़े रहकर पढ़ाई करनी होती है। पर इस कठोर आवरण के नीचे छिपा है एक बेहद ममत्व भरा हृदय। आपकी कठिनाइयों को और कोई समझे न समझे, वे बिना बताए ही भांव लेती हैं। कभी मां बनकर, कभी बड़ी बहन बनकर तो कभी सहेली बनकर वे आपके मन की गहराइयों को खंगाल लेती हैं। पूर्ण संवेदनशीलता के साथ स्थिति का आकलन करती हैं और फिर उसका हल भी ढूंढ लाती हैं। जी हां, मैं बात कर रही हूँ हमारी नर्सिंग की टीचर श्रीमती सिजी थॉमस की। मनोविज्ञान उनका विषय है। उनका व्यक्तित्व मौसम जैसा है। कड़ी धूप और झुलसाती गर्मी के बाद बारिश की फुहार भी आती ही है।
अलब्राइट लकड़ा, बीएससी नर्सिंग, एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग

करुणा, क्षमाशीलता के बिना शिक्षा अधूरी – प्रशांत श्रीवास्तव
मैं मूलतः गाँव का हूँ। मेरी शिक्षा गाँव मे हुई। प्राइमरी स्कूल मे जहाँ मैं पढ़ता था मेरी माँ वहीं टीचर थीं। एक दिन लंच टाइम मे हम लोग खेल रहे थे, मेरे एक दोस्त ने किसी बात पर नाराज़ हो कर मुझे मिट्टी का ढेला उठा कर मारा मेरी पीठ से टकरा कर वह चूर चूर हो गया। मुझे जाने क्या सूझा मैंने एक ईंट का टुकड़ा उठा कर उसे दे मारा, दोस्त दर्द से तिलमिला उठा। लंच टाइम खत्म होने की घंटी बज गई हम लोग क्लास मे जा के बैठ गए। इस घटना को हमारी अम्मा ने देख लिया मुझे नहीं पता था।
शाम को घर आने पर मुझे उन्होंने अपने पास बुलाया और समझाया कि बेटे लाइफ मे कितनी ही पढ़ाई कर लेना लेकिन मन में जब तक करुणा, दया, क्षमाशीलता नहीं होगी तुम्हारी पढ़ाई निरर्थक साबित होगी।
आगे चलकर धीरे धीरे मैंने अपने भीतर इन गुणों का विकास किया। बैंक की नौकरी में आया तो इन्हीं गुणों के चलते ट्रेड यूनियन लीडर बन गया, और 9 साल के अपने लीडरशिप कॅरियर में बैंक में मैंने पांच लोगों को बैंक में अनुकम्पा नौकरी दिला दी जबकि बैंक में अनुकम्पा नियुक्ति बेन थी।
अम्मा की शिक्षा के चलते मैंने गायत्री मंदिर ट्रस्ट का सचिव रहते हुए नेत्र शिविर आयोजित किये और 565 लोगों को नेत्र ज्योति प्रदान किया। जीवन में बड़ी संतुष्टि रही। जिसकी जितनी बन पड़ी मदद की। सचमुच, एक सच्चा शिक्षक आपके पूरे जीवन को नई दिशा दे सकता है।
डॉ प्रशांत श्रीवास्तव, भारतीय स्टेट बैंक

पूरी कोशिश है कि मैं उनके जैसा बन पाऊं – डॉ लक्ष्मी वर्मा
Teachers Day Laxmi Vermaबहुत से लोग आपके जीवन में आते हैं और अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं। कुछ स्मृति में पल भर के लिए रहते हैं और कुछ चिरकाल तक। ऐसे ही मेरे जीवन में असाधारण व्यक्तित्व की स्वामिनी डॉक्टर पदमा अग्रवाल शोध निर्देशिका के रूप में आई। आप मनसा शिक्षा महाविद्यालय में लंबे समय तक प्राचार्य के पद पर आसीन रहीं और समय-समय पर रविशंकर यूनिवर्सिटी के विभिन्न पदों को सुशोभित किया। डॉक्टर पदमा अग्रवाल का व्यक्तित्व जितना सरल और सादगी से युक्त था उतना ही स्नेहिल। किसी भी कार्य को सरल रूप में कर देना उनकी आदत में शुमार था। उन्होंने ही मुझे सिखाया कि मैं किससे कैसे और कब बात करूं। विपरीत परिस्थितियों में भी अपना धैर्य न खोने की सीख उन्होंने दी। जब भी परिस्थितियां विषम हुईं, उन्होंने हमेशा यह कह कर संबल दिया कि चिंता मत करो। बजरंगबली हैं ना, वह तुम्हारी हर परिस्थिति में मदद करेंगे। उनकी वाणी हमेशा मेरे लिए अमृत का काम करती रही। आज मैं भी एक शोध निर्देशिका बन गई हूं। उनके स्वभाव सादगी और सरलता का अगर लेश मात्र भी अपने व्यक्तित्व में समाहित कर सकूं तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा।
डॉ लक्ष्मी वर्मा, सहायक प्राध्यापक, श्रीशंकराचार्य महाविद्यालय, भिलाई

एक सम्पूर्ण प्रभावशाली व्यक्तित्व, मेरे आदर्श – ज्योति कुमारी
Teachers Day Jyoti Kumariकिसी-किसी का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली होता है कि वह अपने आचरण से ही लोगों का आदर्श बन जाता है। कुछ ऐसे ही हैं हमारे अंग्रेजी के अध्यापक राजीव शुक्ला। अंग्रेजी और इतिहास उनके विषय हैं। दोनों पर उनका समान अधिकार है। जब वे इतिहास पढ़ाते हैं तो विद्यार्थी स्वयं को उसी कालखण्ड में महसूस करने लगते हैं। उनका व्याख्यान चलचित्र देखने जैसा अहसास कराता है। उनका ऊंचा पूरा डील-डौल, चेहरे की गंभीरता, उनके व्यक्तित्व को बेहद प्रभावशाली बनाता है। उनकी विनम्रता, उनकी सरलता, उनकी शालीनता प्रभावित करती है। हालांकि उन्होंने कभी किसी को कोई सजा नहीं दी, शायद ही कभी डांटते फटकारते हों किन्तु उनका आसपास होना ही विद्यार्थियों को अनुशासनबद्ध रखने के लिए काफी होता है। हम सभी उनके जैसा बनना चाहते हैं। वे हमारे आदर्श हैं।
ज्योति कुमारी, एमएड विद्यार्थी

दोस्त बनकर जब शिक्षक ने थामा हाथ – दीपक रंजन
Teachers Day Deepak Ranjan Dasमिसेज अप्पचना। पांचवी में वे हमारी क्लास टीचर थीं। उन दिनों, और शायद आज भी टीचर्स बच्चों की सुनते कम और उन्हें धमकाते ज्यादा हैं। मैं कुछ नहीं सुनना चाहती, बहाने मत बनाओ, जैसे जुमले आम थे। घर पर भी स्थिति जुदा नहीं थी। स्कूल से शिकायत आई नहीं कि घर पर भी शामत आ जाती थी। बच्चा जाए तो कहां जाए। कुछ ऐसी ही स्थितियां उन दिनों मेरे सामने भी थीं। टीचर से कुछ साझा कर सकूं, इतना विश्वास नहीं था। पर उन्होंने मेरी दुविधा को भांप लिया। क्लास के बाद उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया। कुरेद-कुरेद कर सवाल पूछे। बातों को समझा और फिर एक दोस्त बनकर मुझे उन मुश्किलों से बाहर निकलने का न केवल रास्ता बताया बल्कि कदम-कदम पर सहयोग भी किया। यह मेरे स्वभाव का हिस्सा बन गया। पत्रकारिता से लेकर शिक्षण तक के अपने सफर में अपने जूनियर्स और विद्यार्थियों के प्रति मेरा आचरण, उनकी ही देन है। इससे लोकप्रियता भी मिली और अपना अनुभव साझा करने का अवसर भी।
संपादक, संडे कैम्पस

आपके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है आपकी भाषा – रविशंकर अखौरी
Teachers Day Ravishankar Akhoriआप चाहे किसी भी विषय के विद्यार्थी रहे हों, चाहे आप किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हों, आपकी भाषा ही आपकी सफलता की कुंजी होती है। स्कूल कालेज में हाशिए पर रहने वाले लैंग्वेज टीचर की महत्ता तब समझ में आती है जब हम अपने कार्यक्षेत्र में उनकी दी हुई वाणी का उपयोग करते हैं। श्रीमती जी पाटकर मैडम हमें अंग्रेजी पढ़ाती थीं और श्री श्यामजी पाण्डेय हमारे हिन्दी के अध्यापक थे। प्रभावशाली लेखन एवं वक्तव्यों का जो पाठ उन्होंने पढ़ाया वह कर्म जीवन के अंतिम क्षणों तक हमारे काम आया, और आज भी आ रहा है। स्कूल कालेज में निरीह से लगने वाले भाषा के गुरुजी, दरअसल हमारे व्यक्तित्व को गढ़ने वाले प्रमुख लोगों में से होते हैं।
रविशंकर अखौरी, अवकाश प्राप्त प्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक

जब टीचर ने समझाया अधिकार का मतलब – डॉ प्राची
Teachers Day Dr Prachiबचपन में मैं शरारती तो थी ही, हौसला भी कुछ कम नहीं था। बात उन दिनों की है जब हम भानुप्रतापपुर (कांकेर) में रहते थे। वहां का एकमात्र अंग्रेजी माध्यम स्कूल था लिटल फ्लावर। हेड मिस्ट्रेस के कमरे में हमेशा चाकलेट रखा रहता था। दीपा वाल्मीकि हमारी प्रधान अध्यापक थीं। एक बार एक सहपाठी के साथ मिलकर हम उनके कक्ष में घुस गए। इरादा चाकलेट की चोरी करने का था। हमने चाकलेट उठा भी लिया था कि तभी वे पहुंच गईं। उन्होंने चाकलेट हमसे वापस ले ली। डांटा-फटकारा बिल्कुल नहीं। कहा कि यह तुम्हारा नहीं था। इस पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है। इस बार परीक्षा में अच्छे अंक लेकर आओ, तुम्हें तुम्हारा प्राप्य मिल जाएगा। हम यह बात भूल चुके थे पर उन्हें याद था। हमने अच्छे अंकों के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की तो उन्होंने स्वयं हमें अपने कक्ष में बुलाया। हमें बड़े बड़े चाकलेट उपहार में दिए। गालों को थपथपाया भी। फिर सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा कि मेहनत करो, कर्म करो, वह तुम्हारे हाथ में है। अच्छे परिणाम तो मिलेंगे ही। जब अधिकारपूर्वक किसी वस्तु को प्राप्त करोगे तो उसका आनन्द औरों के साथ साझा भी कर पाओगे। चोरी से प्राप्त वस्तु और घटना को तो आजीवन छिपाना ही पड़ता है।
डॉ प्राची श्रीवास्तव, पुणे

ऐसे गुरू पाकर मैं धन्य हो गया – बालकृष्ण अय्यर
अय्यरजी ने एक बेहद खूबसूरत संस्मरण भेजा है। हमें यहां उसे संक्षेप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। बालकृष्ण अय्यर कुछ अंकों से इंजीनियरिंग के दाखिले से चूक गए थे। मजबूरन उन्हें रायपुर के छत्तीसगढ़ कालेज में दाखिला लेना पड़ा। वाणिज्य उनके लिए एकदम नया विषय था। पीछे की बेंचों पर बैठे-बैठे महीने गुजर रहे थे। न शब्दावली समझ में आती थी और न ही कुछ पल्ले पड़ता था। फिर दीपावली की छुट्टियां लगीं। हिम्मत बटोरकर वे बढ़ाई पारा स्थित अपने टीचर प्रेमचंद अग्रवालजी के घर पहुंच गए। वे बाहर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। संकोच के साथ उन्होंने अपनी समस्या रखी तो वे सहर्ष घर पर पढ़ाने को तैयार हो गए। बिना कोई अहसान जताए निःशुल्क पढ़ाने को तैयार हो गए। विषय समझ में आने लगा तो रुचि भी बढ़ी। मेहनत करने की आदत तो थी ही। कहां फेल होने का भय सता रहा था और कहां कक्षा में दूसरा स्थान ले आए। यह क्रम बाद के वर्षों में भी जारी रहा। बीकाम उत्तीर्ण करने के बाद बैंक में नौकरी लग गई। यह खबर सबसे पहले उनके साथ शेयर की। उनकी खुशी का पारावार नहीं था। उन्होंने एम कॉम की पढ़ाई जारी रखने की सलाह दी। फिर एक दिन वह भी आया जब एम कॉम की प्रावीण्य सूची में उनका नाम चमकने लगा। इसकी जितनी खुशी स्वयं बालकृष्ण को नहीं थी जितना की अग्रवाल सर को। उनकी आंखें नम हो आई थीं। बालकृष्ण बताते हैं कि श्री अग्रवाल और उनके अभिन्न मित्र एम.आई. मेमन को वे कभी भूल नहीं पाएंगे। नौकरी करते हुए स्नातकोत्तर करने में इन्होंने बहुत मदद की। पुस्तकों की भी कभी चिंता नहीं रही। वे अच्छे शिक्षक पाकर खुश थे तो सर भी अच्छा छात्र पाकर गदगद थे।

मन की आंखों से आज भी देख सकती हूँ झा सर की क्लास – शांता
Teachers Day Shanta Nandiभिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संचालित जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र की सीनियर स्टाफ शांता नंदी को आज भी अपने स्कूल के दिन याद हैं। श्री आरएन झा जीव विज्ञान पढ़ाते थे। उनका व्याख्यान इतना सजीव होता था कि उसे हम महसूस कर सकते थे। उन दिनों आडियो विजुअल एड्स नहीं होते थे। टीचर ब्लैकबोर्ड पर ही रंग-बिरंगे चौक का उपयोग कर चित्र बनाकर विषय को समझाते थे। उनकी वाणी, उनके शब्द आज भी अक्षरशः याद हैं। जीव विज्ञान में रुचि भी संभवतः उनकी वजह से ही जागी। विषय पर पकड़ मजबूत हुई तो आगे मेडिकल की पढ़ाई करने में कोई दिक्कत नहीं हुई। नर्सिंग की पढ़ाई अंग्रेजी में होती थी और हम हिन्दी मीडियम से थे। पर विषय का ज्ञान भाषा की खाई को पाटता चला गया। आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसमें उनका बहुत बड़ा योगदान है।

उन्होंने बनाया विषय को रुचिकर, अब मिस नहीं करते क्लास – गीतांजलि
Teachers Day Geetanjali Soriकभी कभी हम किसी विषय को अंतिम विकल्प के रूप में चुन तो लेते हैं पर उसमें रुचि नहीं होने के कारण पढ़ने से मन उचट जाता है। पर कुछ शिक्षक ऐसे होते हैं कि अपनी पूरी क्लास को साथ लेकर चलते हैं। उनकी नजर प्रत्येक बच्चे पर होती है। कमजोर बच्चों पर उनका विशेष ध्यान होता है। पढ़ाने के तरीके में नित नए प्रयोग कर वे विद्यार्थियों की न केवल रुचि जगाते हैं बल्कि विषय को सहज और सरल भी कर देते हैं। ऐसी ही हैं हमारी कम्युनिकेशन की टीचर सिजी थॉमस। वे बेहद अनुशासन पसंद हैं। फुसफुसाने की आवाज भी वे सुन लेती हैं और जमकर डांट लगाती हैं। कक्षा में विलम्ब से आने वालों को बाहर ही खड़ा रखती हैं। पर सभी बच्चे नियमित रुप से अध्ययन करें, इसकी भी चिंता करती हैं। गरीब बच्चों के प्रति उनका अपार स्नेह दिल को छू जाता है। वे उन्हें बार-बार याद दिलाते हैं कि तुम्हारे माता-पिता अपना पेट काटकर, कर्ज लेकर तुम्हें पढ़ा रहे हैं। उन्हें निराश करोगे तो जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर पाओगे। वे हमारी टीचर ही नहीं बड़ी दीदी हैं।
गीतांजिल सोरी, बीएससी नर्सिंग, एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग

माता पिता और पति बने गुरू – रेणु शर्मा
Teachers Day Renu Sharmaजरूरी नहीं कि गुरू हमेशा शिक्षक के रूप में ही सामने आए। मेरे माता पिता ने हमें गुरू और मित्र बनकर मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। विवाह के पश्चात पित के रूप में एक सच्चा हमसफर मिला। उनकी प्रेरणा से ही मैं अपने सपने को साकार कर पाई। मेरी दुविधा को चुटकियों में भांपकर वे ऐसे निर्णय कर देते हैं कि मेरा काम आसान हो जाता है। कदम-कदम पर उनका साथ मिलता है। जब कभी काम का तनाव मुझे परेशान करता है तो एक मित्र बनकर वे उन्हें साझा करते हैं और मुझे तनाव मुक्त करने की भरपूर कोशिश करते हैं। मैं आज जो कुछ भी हूँ, उसका पूरा श्रेय माता-पिता एवं पति को जाता है।
देव संस्कृति कालेज ऑफ एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी, खपरी

पिता ने सिखाया मुश्किलों का सामना करना – ज्योति
Teachers Day Jyotiजीवन एक ऐसे मंच है जहां तालियां बहुत कम हैं और संघर्ष बहुत ज्यादा। इस मंच पर हम अपने किरदार का निर्वहन कितनी तन्मयता और निपुणता के साथ करते हैं, यह हमारा परिवेश और परिवार तय करता है। अन्यान्य लोगों की तरह मेरे जीवन में भी अनेक ऐसे मौके आए जब फैसला लेना मुश्किल सा प्रतीत हुआ। पर हर बार मेरे पिता ने शिक्षक बनकर, गुरू बनकर मेरा मार्गदर्शन किया। उन्होंने कभी मेरे लिए फैसले नहीं किए। उन्होंने मुझे ही फैसला लेने के लिए उत्साहित किया और मार्गदर्शन करते रहे। आज उनकी सिखाई बातों का मोल भी समझती हूं और इसका लाभ पूरे समाज को, विशेषकर अपने विद्यार्थियों को देने का प्रयास करती हैं।
ज्योति पुरोहित, देव संस्कृति कालेज ऑफ एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी

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