
अपोलो बीएसआर में दर्द का स्थाई इलाज
दर्द से राहत मिलते ही पटरी पर लौट आती है जिंदगी
2. कैंसर, आर्थराइटिस, गैंगरीन, सेरेब्रल पाल्सी, स्पाइनल पेन, माइग्रेन तथा न्यूरोजेनिक दर्द में कारगर
3. पीड़ा प्रबंधन विशेषज्ञ डॉ पंकज ओमर से सीधी बातचीत
भिलाई। दर्द आपके जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर देता है। इसकी वजह से व्यक्ति शारीरिक पीड़ा तो झेलता ही है वह मानसिक संताप से भी दो चार होता है। उसका उठना-बैठना, चलना-फिरना, ठीक से कामकाज करना मुश्किल हो जाता है। यदि पीड़ा बहुत ज्यादा हो तो अकसर रोग का इलाज करना भी कठिन हो जाता है। अपोलो बीएसआर अस्पताल में पीड़ा प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाता है जिससे सफलता के आंकड़ों में वृद्धि हुई है। अपोलो बीएसआर अस्पताल, जुनवानी रोड, स्मृति नगर के आईसीयू प्रभारी डॉ पंकज ओमर पीड़ा प्रबंधन (पेन मैनेजमेंट) के भी विशेषज्ञ हैं। दर्द चाहे शरीर के किसी भी हिस्से में हो, चोट बाहरी हो या भीतरी, दर्द की वजह भी चाहे जो हो वे सफलता से उसका कारण ढूंढ निकालते हैं और विभिन्न विधियों की मदद से तत्काल दर्द को समाप्त कर देते हैं। वे छत्तीसगढ़ में उपलब्ध संभवत: एकमात्र पेन मैनेजमेन्ट एक्सपर्ट हैं।
डॉ ओमर बताते हैं कि शरीर के किसी भी हिस्से में हो रही पीड़ा की संवेदना दिमाग तक पहुंचने के बाद ही महसूस होती है। पीड़ा की तीव्रता और प्रकार की सही पहचान करने के बाद उसकी संवेदना को दिमाग तक पहुंचने से रोकना होता है। इसके लिए अलग-अलग विधियां अपनाई जाती हैं, क्योंकि अगर इसे नहीं रोका गया तो दर्द की वजह से शरीर से निकलने वाले तत्व पूरे शरीर को ही बीमार कर देते हैं।
पीड़ा की पहचान जरूरी
डॉ ओमर बताते हैं कि अस्थाई दर्द – जिसमें चोट लगना, फोड़ा होना, आपरेशन होना, आदि शामिल है में गहरी पीड़ा हो सकती है। पसलियों में लगी चोट सबसे ज्यादा घातक होती है। इससे रोगी सांस लेने से डरता है। बिना दर्द को रोके इन मामलों में इलाज करना बेहद कठिन हो जाता है। वहीं कैंसर, गैंगरिन आदि लंबी खिंचने वाली बीमारियों में दर्द का लंबा और कभी-कभी स्थायी प्रबंधन करना पड़ता है। सेरेब्रल पालसी, स्पास्टिक डिप्लेजिया, रूमेटॉयड आर्थराइटिस, एंकिलोसिस, स्पांडिलाइटिस तथा डिस्क प्रोलैप्स में भी दर्द का लंबा प्रबंधन करना होता है।
इलाज में बाधक है दर्द
डॉ पंकज ओमर बताते हैं कि दर्द इलाज में भी बाधक है। जब तक पीड़ा होती रहेगी रोगी डाक्टर को उसे छूने भी नहीं देगा। यही नहीं जब तक शरीर के किसी अंग में दर्द होता रहेगा वहां सूजन होगी, संवेदनशीलता बनी रहेगी। कुछ बायोकेमिकल चेंजेस भी होते हैं जो इलाज में बाधक साबित हो सकते हैं।
कैसे होता है इलाज
आम चोटों में दर्द निवारक औषधियों से काम चल जाता है किन्तु जैसे-जैसे दर्द की प्रकृति जटिल होती जाती है काम कठिन होता चला जाता है। इसके लिए विभिन्न विधियां अपनाई जाती हैं जिसमें रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन, एपीड्यूरल स्टेरायड इंजेक्शन, फैसेट ज्वाइंट इंजेक्शन, न्यूरोलिटिक ब्लाक, स्पाइनल कार्ड स्टिमुलेटर तथा इंट्राथीकल ड्रग डेलीवरी सिस्टम इंप्लांट का उपयोग किया जाता है। इंप्लांट के तहत दवा का एक सूक्ष्म पंप शरीर में ही स्थापित कर दिया जाता जिससे उपयुक्त मात्रा में दवा रिसती रहती है। यह कई सालों तक काम करता है। इसे रिमोट से कंट्रोल किया जा सकता है। दवा समाप्त होने पर रिफिल लगाया जा सकता है। रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन में बिना किसी दवा का उपयोग किए ही नस को बहुत सटीक तरीके से सील कर दिया जाता है।
कोई साइड इफेक्ट नहीं
डॉ ओमर ने बताया कि इस पद्धति में दवा का रक्त में प्रवेश नहीं होने के कारण कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। किडनी फेलियर के मरीजों में सिर्फ इसी तकनीक से दर्द का निवारण किया जा सकता है।
जान लेवा हो सकता है दर्द
डॉ ओमर ने बताया कि दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में एक चिकित्सक ने ही असहनीय दर्द से परेशान होकर ऊपरी माले से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। अपने चिकित्सकीय जीवन में वे ऐसे दर्जनों पेशेंट्स को राहत दिलाने में सफल रहे हैं जो दर्द से बचने के लिए आत्महत्या करने को तैयार थे। आज भी कई बार यह सुनने-पढऩे में आता है कि पेट दर्द, सिरदर्द या कैंसर रोगी अंग की असहनीय पीड़ा से बचने के लिए लोगों ने आत्महत्या कर ली है।
थोड़ा महंगा है इलाज पर…
डॉ ओमर बताते हैं कि वैसे तो अधिकांश दर्द का इलाज ओपीडी में ही दवाओं से किया जा सकता है किन्तु कुछ दर्द ऐसे होते हैं जिसमें इंटरवेन्शन की जरूरत पड़ती है। मरीज को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। उपकरण और दवाएं महंगी होती हैं पर अपोलो बीएसआर में यह चिकित्सा देश के महानगरों की तुलना में लगभग आधी कीमत पर उपलब्ध है।
दर्द निवारण रोगी का अधिकार
इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज अस्पताल, नागपुर से एमबीबीएस और एमडी करने वाले डॉ पंकज ओमर ने जर्मनी और सिंगापुर में पेन मैनेजमेन्ट की विशेषज्ञता फेलोशिप के तहत हासिल की। वे निश्चेतना विज्ञान के भी विशेषज्ञ हैं। वे बताते हैं कि रोगी जब अस्पताल आता है तो उसकी पहली उम्मीद दर्द से राहत पाने की होती है। इतना कर दिया तो रोगी का विश्वास बढ़ जाता है और रोगी का सहयोग मिलने पर चिकित्सा और रोग मुक्ति की प्रक्रिया, दोनों तेज हो जाती है। डॉ ओमर कहते हैं कि दर्द से राहत पाना रोगी का अधिकार है। विदेशों में प्रशासन इसे लेकर काफी संवेदनशील हैं।