भिलाई। गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसएस खंडवावाले का मानना है कि आत्महत्या का खतरा तो घर-घर में है। यह एक ऐसा प्रसंग है जिसकी तुलना सड़क हादसों से की जा सकती है। बदलते सामाजिक परिवेश में यह खतरा पहले से कहीं अधिक मुखर होकर सामने आया है। श्री खंडवावाले यहां स्वामी विवेकानंद सार्ध शती पर आयोजित जागो भारत अभियान में शिरकत करने के लिए आए थे। नेहरू नगर चौक पर लगे शिविर में ही उनसे मुलाकात हो गई। संक्षिप्त चर्चा के बीच उन्होंने अपने सारगर्भित उद्गार व्यक्त किए।
कैम्पस : क्या आत्महत्याओं को रोका जा सकता है?
खंडवावाले : पूरी तरह तो नहीं। पर यदि हम अपने परिवार तथा मित्रों की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखें तो अधिकांश मामले टाले या रोके जा सकते हैं। आत्महत्या के बारे में यह सोच भ्रामक है कि यह एकाएक उठाया जाने वाला कदम है। अधिकांश मामलों में इसके लक्षण हफ्ता या कभी कभी पखवाड़े पहले से दिखाई देने लगते हैं।
कैम्पस : आत्महत्या करने के पीछे वजह क्या हैं?
खंडवावाले : आत्महत्या की कोई भी वजह हो सकती है। असाध्य बीमारी, असहनीय दुख, असफलता से जुड़ी सामाजिक अवहेलना या तिरस्कार, एक तरफा प्रेम या परफारमेंस का दबाव। पर यह भी उतना ही बड़ा सच है कि यदि किसी की आत्महत्या के प्रयास को एक बार टाल दिया जाए तो वह दोबारा ऐसी कोशिश नहीं करता।
कैम्पस : आत्महत्या करने पर उतारू लोगों की पहचान क्या है?
खंडवावाले : आम तौर पर ऐसे लोग डिप्रेशन में होते हैं। वे किसी चर्चा में भाग नहीं लेते। गुमसुम और खोए-खोए से रहते हैं। युवाओं में एकाएक उत्पन्न हुई चिड़चिड़ाहट और बदली-बदली सी पसंद नापसंद इसके लक्षण हो सकते हैं।
कैम्पस : इसकी रोकथाम के लिए क्या किया जा सकता है?
खंडवावाले : अपने परिवार के सदस्यों तथा मित्रों में एकाएक आए परिवर्तनों पर नजर रखें। उनसे बातचीत करें। बिना किसी प्रकार का दबाव डाले धैर्य पूर्वक उनकी बातें सुनें तथा कारणों का पता लगाने की कोशिश करें। एक बार तनाव या हताशा का कारण समझ में आ जाए तो बाकी का रास्ता आसान हो जाता है।
कैम्पस : आपका कोई निजी अनुभव?
खंडवावाले : आत्महत्या तो नहीं पर इससे मिलते जुलते एक किस्से का जिक्र यहां करना चाहूंगा। मैं स्वयं इंजीनियर हूं। इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद ही मै आईपीएस हुआ तथा गुजरात में काम करने का मौका मिला। मेरी दिली ख्वाहिश थी कि मेरा बेटा भी इंजीनियर बने। पर वह कुछ और करना चाहता था। एक दिन उसने अपने दिल की बात मेरे सामने रखी। वह व्यापार करना चाहता था। मैने तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। थोड़ा सोचकर मैने दूसरे दिन उससे बात की और उसे बताया कि मैं रुपये पैसे से उसकी कोई मदद नहीं कर पाऊंगा। उसने कहा कि उसे सिर्फ मेरा आशीर्वाद चाहिए और वह चाहता है कि मेरा हाथ उसके सिर पर बना रहे। मैने हामी भर दी। आज इस बात को 15 साल गुजर गए और मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि उस दिन लिया गया मेरा निर्णय गलत नहीं था।
मैं प्रत्येक माता पिता से यही कहना चाहूंगा कि यदि बच्चा किसी खास क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहता है तो उसकी दिशा को जबरदस्ती बदलने की कोशिश न करें। जिस क्षेत्र में उसका दिल लगेगा, वहां उसका परफारमेंस औरों से बेहतर होगा। यदि वह अपने फील्ड का टॉपर हुआ तो सफलता बांहें फैलाए उसका इंतजार कर रही होंगी। इससे न केवल बच्चा खुद बल्कि उसके माता पिता भी भविष्य में आने वाले तनाव से बच सकेंगे।
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