दुर्ग। नई पीढ़ी को जीन जीन-विज्ञान की उपयोगिता से अवगत कराने तथा कोविड सहित आने वाली अनेक बीमारियों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए विश्वनाथ यादव तामस्कर पीजी स्वशासी महाविद्यालय में एक दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। गुजरात के सरदार कृषिनगर कृषि विश्वविद्यालय के शोध विज्ञानी डॉ गौरव एस दवे ने जीन विज्ञान तथा उसकी विभिन्न विधियों की चर्चा की। उन्होंने बताया कि किस तरह यह संक्रामक रोगों की पहचान, निदान एवं चिकित्सा में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।डॉ दवे ने पादप विज्ञान पर इस वेबीनार के आयोजन के लिये विभाग को साधुवाद दिया। उन्होंने डीएनए अनुक्रमण के इतिहास का वर्णन करते हुए मैक्सिम गिलबर्ट पद्धति, चेन टर्मिनेशन पद्धति, पायरोसीक्वेंसिंग, बाइसल्फाइट सेक्वेंसिंग, शॉटगन मेथड की चर्चा की। उन्होंने कोविड सहित अन्य महामारियों के अध्ययन में जीनोम सीक्वेंसिंग के महत्व की चर्चा की।
सहायक प्राध्यापक डॉ सतीश कुमार सेन की मेजबानी में आयोजित इस वेबीनार में तमिलनाडु, असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल, आंध्रप्रदेश समेत छत्तीसगढ़ के विभिन्न विश्वविद्यालयीन छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। डॉ जीएस ठाकुर ने प्राचार्य डॉ आरएन सिंह के संदेश का वाचन किया। आरंभ में विभागाध्यक्ष डॉ रंजना श्रीवास्तव ने डॉ दवे का स्वागत करते हुए वेबीनार के उद्देश्यों की चर्चा की। डॉ ठाकुर ने अतिथि का विषद परिचय दिया।
डॉ दवे की प्रस्तुति के बाद प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन किया गया। वेबीनार गूगल मीट पर आयोजित किया गया। डॉ केआई टोप्पो, श्रीमती जी पाण्डे, डॉ श्रीराम कुंजाम, डॉ विजयलक्ष्मी नायडू, तकनीशियन दिलीप साहू ने कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना योगदान दिया। कार्यसमिति में दानेश प्रसाद, वसीम अकरम, शांति रजवाडे, उदय, लुमेश्वरी, स्वाति अग्रवाल, रत्नाकर उपाध्याय, श्यामू, प्राची गुप्ता, देवेन्द्र निर्मलकर, कविता गुप्ता, अश्विन गौतम ने सक्रिय योगदान दिया।