भिलाई। कंपनी की वित्तीय सेहत का पता लगाने के लिए उसका वित्तीय विवरण (फानेंशियल स्टेट) एक आईने की तरह होता है। इसकी पारदर्शिता और विश्वसनीयता ही यह तय करती है कि निवेशक उसपर कितना भरोसा करेंगे। कंपनीज एक्ट में अब मेन ऑडिट रिपोर्ट के साथ ही कंपनी ऑडिटर्स रिपोर्ट ऑर्डर (कारो) रिपोर्टिंग का भी प्रावधान किया गया है जो एक अप्रैल 2021 से लागू है। इसे तैयार करने की जिम्मेदारी कंपनी की होगी जिसपर ऑडिटर अपनी टिप्पणी देना होगा।
उक्ताशय की टिप्पणी अतिथि वक्ता सीए मनोज कुमार पति ने की। वे आईसीएआई-सीआईआरसी की भिलाई शाखा द्वारा कंपनी अधिनियम की तीसरी अनुसूची एवं कारो रिपोर्ट पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। दो सत्रों में आयोजित इस कार्यशाला के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने जहां तीसरी अनुसूची को विस्तार से समझाया वहीं द्वितीय सत्र में कारो रिपोर्टिंग पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि एक अच्छा वित्तीय विवरण और कारो रिपोर्ट ही निवेशकों को आकर्षित कर सकता है।
उन्होंने बताया कि कंपनी के कामकाज तथा उसकी वित्तीय स्थिति को उसके फिनेंशियल स्टेंटमेंट से ही समझा जाता है। अकाउंटिंग स्टैण्डर्ड यह तय करता है कि सभी वित्तीय मसलों को इसमें पारदर्शिता के साथ प्रस्तुत किया गया है। अकाउंटिंग स्टैण्डर्ड सेट ऑफ रूल्स को फालो करते है ताकि शेयर होल्डर को पढ़ने-समझने में सुविधा हो। अभी भारत में दो तरह के अकाउंटिंग स्टैण्डर्ड्स हैं। इसमें जनरली ऐक्सेपटेड अकाउंटिंग प्रिंसिपल-गैप तथा इंटरनेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग स्टैण्डर्ड्स के आधार पर बना इंड-एएस शामिल है। इंड-एएस को फॉलो करने पर वित्तीय विवरण को वैश्विक मान्यता मिलती है। इसकी तुलना अच्छी लिस्टेड कंपनी के साथ की जा सकती है जिसका लाभ निवेशकों के रूप में कंपनी को मिलता है।
उन्होंने बताया कि तीसरी अनुसूची बताती है कि वित्तीय विवरण कैसे तैयार करना है। इसमें ऐसे नवीन प्रावधानों का समावेश किया गया है जो कारो रिपोर्टिंग के अनुरूप हैं। इसमें प्रोमोटर्स की कंपनी में शेयर होल्डिंग, ऋण तथा उसके सही उपयोग से लेकर ऋण और अग्रिम का तृतीय पक्ष से लेनदेन का वास्तिवक लेखा जोखा शामिल होता है। इसका उद्देश्य साइफनिंग ऑफ फंड्स पर अंकुश लगाना है। कंपनी द्वारा तैयार किये गये इस वित्तीय विवरण पर ऑडिटर्स को अपनी टिप्पणी देनी होती है।
एक अन्य संशोधन की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि जिस तरह किसी मनुष्य की सेहत का पता लगाने के लिए जांच और मानक तय किये जाते हैं ठीक उसी तरह कंपनी की सेहत का पता लगाने के लिए कुछ वित्तीय अनुपात तय किये गये हैं। किसी भी बिन्दु पर 25 फीसदी से अधिक का विचलन होने पर कंपनी को उसपर स्पष्टीकरण देना होगा।
फाइनेंशियल रिपोर्टिंग स्टैण्डर्ड को समझना तथा उसका अनुपालन करना कंपनी के प्रमोटर्स की जिम्मेदारी है जो इसे अपने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स कौ सौंप सकते हैं। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर इसे आगे डेलीगेट कर सकते हैं। इसमें किये गये सभी प्रावधान अनिवार्य हैं तथा इनका पालन नहीं करने पर कंपनी को भारी जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। ऐसी कंपनियों को कारो रिपोर्टिंग की अनिवार्यता से बाहर रखा गया है जिनका नेटवर्थ 250 करोड़ से कम हैं।
आरंभ में आईसीएआई-सीआरसी भिलाई शाखा के चेयरमैन सीए प्रदीप पाल ने वित्तीय विवरण तथा कारो रिपोर्ट की संक्षेप में चर्चा करते हुए कहा कि इसके प्रावधानों को गंभीरता से लिये जाने की जरूरत है। अनेक कंपनियों इसे पूरी तरह सीए पर छोड़ देती है। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह एक 16 लाख रुपए की टर्नओवर वाली कंपनी ने अपनी वित्तीय स्थिति, भविष्य की योजनाएं को चरणबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया और वांछित निवेश हासिल करने में सफल रहा।
इस कार्यशाला में शाखा के वरिष्ठ सीए साथियों के साथ ही सिकासा से जुड़े सीए विद्यार्थी भी बड़ी संख्या में शामिल थे।