दुर्ग। परसाई जी 20वीं शताब्दी के महत्वपूर्ण लेखक थे। उन्होंने अपनी गहन अंतरदृष्टि से समाज की विसंगतियों तथा विद्रुपताओं को देखा तथा समाज को अपनी रचनाओं के आईने में दिखाया। उक्त विचार हिन्दी विभाग द्वारा परसाई जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में विभाग के प्राध्यापक डॉ. जय प्रकाश ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि परसाई जी से पूर्व कबीर, भारतेन्दु और बालमुकुन्द गुप्त भी सशक्त व्यंग्यकार रहें है। परसाई उन सबसे अलग इस अर्थ में है कि वे जीवन तथा समाज को वैज्ञानिक तथा तार्किक ढंग से देखते थे।
महाविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. एम.ए. सिद्दीकी ने कहा कि पुराने जमाने में पढ़ा लिखा उसी को समझा जाता था जो भाषा और गणित जानता हो। साहित्य का संबंध भाषा से है। परसाई जी जैसे साहित्यकार को समझने के लिए भाषा की समझ और संवेदना की आवष्यकता है। प्रो. थानसिंह वर्मा ने कहा परसाई जी की रचनाओं में आजादी के बाद के भारत की तस्वीर देखी जा सकती है। परसाई जी ने राजनीति, धर्म, सम्प्रदाय प्रषासन तथा सामाजिक जीवन में व्याप्त विसंगतियों पर करारा व्यंग्य किया है।
विभाग के अध्यक्ष डॉ. अभिनेष सुराना ने परसाई जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि व्यंग्य विसंगतियों से उपजता है। परसाई जी के व्यंग्य नष्तर की तरह चूभने वाले होते है, जिसको लक्ष्य किया जाता है वह तिलमिला उठता है। छात्रा सोनाली, मोनिका साहू, ने परसाई जी की व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया।
कार्यक्रम में विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. बलजीत कौर तथा डॉ. कृष्णा चटर्जी एवं अतिथि व्याख्याता डॉ. रजनीश उमरे उपस्थित थे। कार्यक्रम में एम.ए. हिन्दी के अलावा विभिन्न कक्षाओं के साहित्य के विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कृष्णा चटर्जी ने तथा आभार प्रदर्शन डॉ. बलजीत कौर ने किया।