भिलाई। कोई-कोई अध्यापक ऐसा होता है जिसकी क्लास अटेंड करने के लिए बच्चे बीमार हालत में भी पहुंच जाते हैं. उनकी क्लास कोई मिस नहीं करना चाहता. वहीं कोई-कोई शिक्षक ऐसा भी होता है जिसके क्लास में आते ही बच्चे पीछे के दरवाजे से बाहर निकल जाते हैं. आप इनमें से कौन सा टीचर बनना चाहते हैं, यह आपके हाथ में है. उक्त बातें वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ पीके श्रीवास्तव ने आज श्री शंकराचार्य महाविद्यालय में कहीं. वे sundaycampus.com के सहयोग से आयोजित Creative Teaching कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे.
डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि टीचर भी एक अभिनेता है और उसमें उसके सारे गुण होने चाहिए. उसे अपने ऑडियन्स याने बच्चों के साथ जीवंत सम्पर्क स्थापित करना होता है. बच्चों के साथ बेहतर संवाद स्थापित करने के लिए ड्रामाटिक्स की जरूरत पड़ती है. बच्चों की सीखने की ललक को जगाने, उनकी रुचि को लगातार बनाए रखने के लिए शिक्षण की अलग-अलग विधियों का उपयोग करना पड़ता है. इसके साथ ही संवाद में यदि वायस माड्यूलेशन का उपयोग किया जाए तो वह और भी प्रभावी हो जाता है.
वीडियो प्रजेन्टेशन के द्वारा उन्होंने विद्यार्थियों के साथ समानुभूति (empathy) स्थापित करने की आवश्यकता भी प्रतिपादित की. उन्होंने कहा कि सभी कार्य डंडे के जोर पर नहीं कराए जा सकते. मौजूदा परिस्थितियों में तो यह बिल्कुल भी संभव नहीं है. जब तक हम विद्यार्थियों की परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे उनका विश्वास नहीं जीत पाएंगे. एक बार विश्वास जीत लिया तो सभी रिश्ते संभल जाएंगे. कार्य निष्पादन भी बेहतर होगा.
इस छह दिवसीय कार्यशाला के सूत्रधार दीपक रंजन दास ने कहा कि आज सभी क्षेत्रों में नवाचार हो रहे हैं. लोग अपनी-अपनी विधा को माइक्रो लेवल पर तराश रहे हैं फिर चाहे वह मेकअप आर्ट हो, केश विन्यास हो, अलग-अलग ड्रेसेज को कैरी करने की बात हो, कुकिंग हो या फिर सिंगिंग डांसिंग जैसे स्वाभाविक गुण. फिर टीचर कैसे इससे खुद को अलग रख सकता है. अपने व्यक्तित्व में छोटे-छोटे संशोधन कर वह भी एक सेलेब्रिटी टीचर बन सकता है.
आरंभ में संस्था की प्राचार्य डॉ अर्चना झा ने कहा कि यह शिक्षण के क्षेत्र में एक अभिनव प्रयोग है. उन्हें खुशी है कि इसकी शुरुआत श्री शंकराचार्य महाविद्यालय से हो रही है. महाविद्यालय प्रत्येक क्षेत्र में नवाचार के लिए हमेशा पहल कदमी करता रहा है. उन्होंने कहा कि डॉ श्रीवास्तव भिलाई में शिक्षक प्रशिक्षण के पर्याय रहे हैं. भिलाई से लेकर सुदूर पठानकोट तक काम करने का उन्हें दीर्घ अनुभव है. उन्होंने शिक्षकों की कई पीढ़ियों को तैयार किया है. यह आज के विद्यार्थियों का सौभाग्य है कि वे उनके बीच हैं.
महाविद्यालय के उप प्राचार्य एवं संयुक्त निदेशक डॉ जे दुर्गा प्रसाद राव ने कार्यशाला को भावी शिक्षकों के लिए बेहद उपयोगी बताते हुए कहा कि किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए संवाद कला में दक्ष होना बहुत जरुरी है. ड्रामाटिक्स के जरिए भावी शिक्षक न केवल बच्चों को बांधे रखने में सफल होंगे बल्कि इसका लाभ कंटेंट डिलीवरी में भी उन्हें मिलेगा.
महाविद्यालय के शिक्षा संकाय की एचओडी डॉ नीरा पाण्डेय, डॉ वंदना सिंह, डॉ गायत्री जय मिश्रा, डॉ संतोष शर्मा, डॉ लक्ष्मी वर्मा, डॉ मालती साहू, डॉ नीता शर्मा, कंचन सिन्हा, पूर्णिका तिवारी, सुधा मिश्रा, शिल्पा कुलकर्णी, ठाकुर देवराज सिंह, सहित बड़ी संख्या में बीएड प्रशिक्षणार्थी उपस्थित थे. अतिथियों का परिचय एवं संचालन डॉ सुषमा पाठक ने किया.