भिलाई। एमजे कालेज के वाणिज्य एवं प्रबंधन संकाय के विद्यार्थियों ने आज कुम्भकारी के व्यवसाय को करीब से जाना और समझा. विद्यार्थियों ने इस अवसर पर स्वयं चाक पर दीया बनाकर भी देखा. उन्होंने कुम्हारों से मिट्टी के कच्चे-पक्के दीये भी खरीदे. कौशल आधारित इस व्यवसाय में मेहनत की तुलना में लाभ बहुत कम है. पूरा परिवार दिन रात एक करने के बाद भी 10 से 12 हजार रुपए प्रतिमाह ही औसत कमा पाता है.
एमजे ग्रुप ऑफ एजुकेशन की डायरेक्टर डॉ श्रीलेखा विरुलकर की प्रेरणा से आयोजित इस कार्यक्रम के तहत विद्यार्थियों की यह टोली जेवरा सिरसा के कुम्हारटोला गई थी. यहां उन्होंने गजानन कुम्भकार से बातें की. गजानन ने बताया कि उनके अलावा उनकी पत्नी, चारों पुत्र क्रमशः मनोज, रवि, रामायण और विजय तथा उनकी पत्नियां भी इसी काम में जुटी रहती हैं. दस लोगों का परिवार नदी से मिट्टी लाने, उसे सुखाने, पीसने, छानने, गीला करने, गूंधने और फिर चाक पर दीया, घड़ा, मटका, धूपदान, कलश, आदि का निर्माण करते हैं. काम यहीं पर खत्म नहीं हो जाता. कच्ची मिट्टी के इन उत्पादों को सुखाना, उन्हें पकाना और फिर उन्हें रंगना भी एक लंबा काम है.
विद्यार्थियों ने इस अवसर पर स्वयं चाक पर दीया बनाने की कोशिश की. देखने में बेहद आसान लगने वाले यह कार्य काफी मुश्किल सिद्ध हुआ. अंगूठे और उंगली के बीच दीये को आकार देना और फिर एक महीन धागे से उसे काटकर अलग करना काफी अभ्यास का काम है. विद्यार्थियों ने यहां से कच्चे पक्के दीये भी खरीदे जिसकी रंगाई कर उन्हें खूबसूरत और मूल्य संवर्धित करने का प्रयत्न किया जाएगा.
सहायक प्राध्यापक दीपक रंजन दास के नेतृत्व में गए इस दल में वरिष्ठ रासेयो स्वयंसेवक विशाल सोनी, अन्नपूर्णा यदु, अनुराग साहनी, प्रिया साहू, सूफिया अंजुम, माही अग्रवाल, हर्षित, दीक्षिका वानखेड़े, पलक पाण्डेय, सहित राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक भी शामिल थे. विद्यार्थियों के इस प्रयास की प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे एवं वाणिज्य तथा प्रबंधन संकाय के एचओडी विकास सेजपाल ने भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए बताया कि इस गतिविधि से विद्यार्थी कच्चे सामग्री से माल के बनने, उसका मूल्य संवर्धन कर लाभ बढ़ाने और विपणन की मुश्किलों से रूबरू होने का अवसर प्राप्त होगा.