धमतरी। मतरी की मंगलीन बाई ने खुद कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। लेकिन, सब्जी बेचकर, कड़ी मेहनत और लगन से मंगलीन ने अपने दो बेटों को बना दिया डॉक्टर । मंगलीन आज भी सब्जी बेचती है। वे कहती हैं, काम में शर्म कैसा। आखिर इसी से बेटों को डाक्टर बना पाई। मंगलीन आज भी सब्जी बेचती है। वे कहती हैं, काम में शर्म कैसा। आखिर इसी से बेटों को डाक्टर बना पाई। मंगलीन शादी के बाद खपरैल मकान में रहने के लिए आई। तीन बेटों और तीन बेटियों को जन्म दिया। पति की कमाई कम पड़ी तो वह सब्जी बेचने लगीं। फिर रेग पर जमीन लेकर सब्जी उगाने लगीं। सब्जी बेचने के लिए सिर पर सब्जी का टोकरा लेकर बाजार जातीं। बेटा संतोष और सुखनंदन मन लगाकर पढ़ते रहे। इम्तहान देते रहे, अव्वल आते रहे। यहां से मिली प्रेरणा : मंगलीन बाई बीमार पति बलीराम सोनकर का उपचार कराने डॉक्टर के पास गई थीं। अस्पताल में लोगों की भीड़ और डॉक्टर को मिल रहे सम्मान को देखकर उन्होंने भी बेटों को डॉक्टर बनाने की ठान ली। बाड़ी में सब्जी उगाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करने लगीं। बेटे भी हाथ बंटाने लगे। बड़े बेटे संतोष सोनकर का चयन बीएएमएस में हुआ। लेकिन मंगलीन ने उसे यह कोर्स करने से मना कर दिया। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में संतोष ने दूसरी बार पीएमटी की परीक्षा दी। इसमें 121वीं रैंक आ गया। मंगलीन को लगा जैसे उनकी तपस्या सफल हो गई। मंगलीन ने फीस-फाइन का इंतजाम किया। दिन-रात मेहनत कर खर्च उठाया।
बेटे के पास खुद का हॉस्पिटल
संतोष ने रायपुर मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ साल संविदा के तौर पर शासकीय अस्पतालों में सेवा दी। अब उनका खुद का अस्पताल है। संतोष ने एमबीबीएस के बाद डिप्लोमा एनेस्थिसिया और फेलोशिप इन पेन मैनेजमेंट की भी विशेषज्ञता हासिल की। छोटा बेटा सुखनंदन बिलासपुर से एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद मेडिकल कॉलेज जगदलपुर में डिमोस्ट्रेटर के पद पर था। नौकरी करने के साथ उसने पीजी की तैयारी की। वर्ष 2017 में उसका चयन चर्मरोग विशेषज्ञ की पढ़ाई के लिए हुआ। वह पुणे में चर्मरोग विशेषज्ञ की पढ़ाई कर रहा है।
मंगलीन कहती हैं कि वह अपने को दुनिया में सबसे खुशनसीब समझती हैं। जितनी तपस्या की, ईश्वर ने उससे ज्यादा दिया।