भिलाई। कृष्णा पब्लिक स्कूल के संस्थापक एवं वरिष्ठ शिक्षाविद मदन मोहन त्रिपाठी ने कहा कि पिता से मिले संस्कारों ने जहां उनके जीवन को आयाम दिए वहीं खामोशी से हर कदम पर साथ देने वाली पत्नी उनके लिए शक्ति का अविरल स्रोत बनी रहीं। श्री त्रिपाठी अपने 75वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। उनका जन्म 7 नवम्बर 1943 को हुआ था। अपने विशाल शिक्षक परिवार एवं लब्ध प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों के बीच श्री त्रिपाठी ने कहा कि उनके माता पिता भले ही शिक्षित नहीं थे पर शिक्षा का मोल जानते थे। उन्होंने बड़ी कठिनाइयों से उन्हें शिक्षा दिलाई थी। इसलिए पहली नौकरी मिलते ही उन्होंने अपने भाइयों की शिक्षा की जिम्मेदारी स्वयं उठा ली। श्री त्रिपाठी ने कहा कि यह माता-पिता से मिले संस्कार ही हैं कि वे आज शिक्षा दान कर गुरूऋण से उऋण होने का प्रयास कर रहे हैं। केपीएस सेवाश्रम कुटेलाभाठा इसीका परिणाम है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के एक मुकाम पर पहुंचने के बाद समाज को अपनी क्षमता के अनुसार कुछ न कुछ लौटाना चाहिए।
श्री त्रिपाठी ने कहा कि पिता ने रामायण, महाभारत और गीता से नाता जोड़ दिया था। इन ग्रंथों में जीवन के प्रत्येक सवाल का उत्तर है। इसलिए गणित का छात्र होने के बावजूद वे संस्कृत और संस्कृति से जुड़े रहे। इन ग्रंथों में छिपे ज्ञान को लोगों तक पहुंचाने के लिए सरल ग्रंथों की रचना भी की।
पत्नी श्रीमती कृष्णा त्रिपाठी को ‘पावर आॅफ साइलेंस’ का जीवंत उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि अब तक की यात्रा में वे खामोशी से उनका साथ देती रही हैं। आज पहली बार लोग उनका संबोधन सुन रहे हैं। उन्होंने कहा कि खामोशी में बहुत ताकत होती है। जो बोलता कम है वह सुनता, देखता और समझता ज्यादा है। इसका प्रमाण उन्हें कई बार मिला है। इस कार्यक्रम से पूर्व उन्होंने अकेले इतने विशाल परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए उपहार तय किये। एक-एक सदस्य का ख्याल रखा। शक्तिपुंज के रूप में वे हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं, वरना जीवन में इतनी उपलब्धियां संभव नहीं थीं।
संयुक्त परिवार की शक्ति और उपादेयता की चर्चा करते हुए श्री त्रिपाठी ने कहा कि इस मामले में उनका बचपन बड़ा समृद्ध रहा। जीवंत रिश्ते न केवल परिवार का बोध विकसित करते हैं बल्कि ये आपको पुष्ट भी करते हैं। किसी के साथ खेला, किसी से कहानियां सुनीं, किसी ने थपकी देकर सुलाया तो किसी ने माथा सहलाकर भोर की दस्तक दी। किसी ने आंसू पोंछे तो किसी ने ठहाकों में साथ दिया।
आरंभ में पुत्र आशुतोष त्रिपाठी एवं पुत्री अर्चना मिश्रा ने अपने पिता से विरासत में मिले संस्कारों की चर्चा की। पहली बार मंच पर आर्इं श्रीमती कृष्णा त्रिपाठी ने एक कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। इस अवसर पर विशाल त्रिपाठी-मिश्रा परिवार के अलावा श्री त्रिपाठी के पूर्व छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे। हिन्दी सिनेमा के गोल्डन एरा के गीतों से सजी यह महफिल केपीएस नेहरू नगर के विशाल आॅडिटोरियम में देर रात तक चलती रही।