एमजे कालेज में शोध प्रेरणा पर संगोष्ठि
भिलाई। एमजे कालेज के विद्यार्थियों को शोध के लिए प्रेरित करने एक दिवसीय संगोष्ठि का आयोजन किया गया। नागपुर से पधारे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डॉ संजय जे धोबले ने बच्चों को शोध के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा कि इकोफ्रेंडली होना जहां शोध की पहली शर्त है वहीं उसका दीर्घजीवी और किफायती होना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि एक उपयोगी शोध पीढ़ियों का अंतर ला देती है। शोध के क्षेत्र में सबसे बड़े अवसर होते हैं। लाखों रुपए की फेलोशिप मिलती है। देश विदेश के स्टडी टूर कर सकते हैं। महत्वपूर्ण शोध करने वालों से मिल सकते हैं।महाविद्यालय की डायरेक्टर श्रीलेखा विरुलकर की प्रेरणा से महाविद्यालय के गणित एवं विज्ञान संकाय द्वारा आयोजित इस संगोष्ठि में प्रभारी प्राचार्य डॉ अनिल चौबे, फार्मेसी कालेज के प्राचार्य डॉ टी कुमार, शिक्षा संकाय की अध्यक्ष डॉ श्वेता भाटिया, फैकल्टी मेम्बर्स एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
डॉ धोबले संदीप्ति (ल्यूमिनेसेंस) के शोध के क्षेत्र में एक बड़ा नाम हैं। उन्होंने केरोसीन की ढिबरी और लालटेन के बाद बिजली के बल्ब से होते हुए ट्यूबलाइट, सीएफएल से आगे एलईडी लाइट्स तक के सफर का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक आविष्कार के बाद प्रदूषण कम होता गया, बिजली की बचत होती गई। उन्होंने बताया कि बड़े आविष्कार आमतौर पर छोटी छोटी बातों को महसूस कर उसे बदलने की कोशिश करने से प्रारंभ होते हैं। ढिबरी से धुआं और कार्बन, ट्यूबलाइट से लेकर सीएफएल तक में पाए जाने वाले पारा (मर्करी) से पर्यावरण एवं स्वास्थ्य को सीधे खतरा था। उपयोग के बाद इनके निपटान की कोई व्यवस्था नहीं थी। अब एलईडी लाइटों ने इसकी जगह ले ली है। एलईडी में पारा नहीं है, यह बहुत कम बिजली से चलता है। अब शोध की दिशा वालपेपर लाइट की तरफ है। इसमें बिजली की इतनी कम आवश्यकता है कि एक सोलार पैनल लगाने से अक्षय ऊर्जा स्रोत से काम चल जाएगा।
उन्होंने कहा कि शोध किसी भी विषय का छात्र कर सकता है। जिस शोध से सीधे जनता का लाभ होता है वह हमेशा कामयाब होता है। उन्होंने मोबाइल की बढ़ती ताकत और सिमटते आकार का उदाहरण देते हुए बताया कि कुछ उत्पादों के क्षेत्र में बातें हमेशा जनरेशन नेक्स्ट की होती है। जो आज नया है वह कल पुराना हो जाता है।
उन्होंने दिशाहीन पढ़ाई और केवल देखादेखी में फार्म भरने की संस्कृति पर प्रहार करते हुए कहा कि इससे न केवल आपका समय बल्कि आपके पेरेन्ट्स की गाढ़ी कमाई के धन का भी अपव्यय हो रहा है। जिस दिशा में आगे बढ़ना हो, उसी दिशा में कड़ी मेहनत करें। दिन में 18 घंटे मेहनत करने से भी न चूकें। उन्होंने छात्रों को मोटिवेट करने के लिए कुछ वीडियो भी दिखाए जिसमें बिना हाथ पैर का बच्चा भी फिसल पट्टी की सीढ़ियों पर अंतत: चढ़ जाता है। उन्होंने टांग खींचने की बजाय एक दूसरे का सहारा बनने की सीख भी बच्चों को दी।
अंत में सहा. प्राध्यापक सौरभ मंडल ने धन्यवाद ज्ञापन किया।