दुर्ग। राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त संचालक एवं प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने आज कहा कि इस वक्त पूरी दुनिया में लगभग 4.5 करोड़ लोग नेत्रहीन हैं। इनमें से 1.2 करोड़ नेत्रहीन अकेले भारत में हैं। इसमें प्रतिवर्ष 15 लाख नेत्रहीन और जुड़ जाते हैं। इसमें से लगभग 81 फीसदी ऐसे हैं जिनकी आंखों को बचाया जा सकता है। डॉ श्रीवास्तव हेमचंद यादव विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित स्वास्थ्य चर्चा व्याख्यान माला “मीट द डाक्टर” कार्यक्रम में व्याख्यान दे रहे थे।कुलपति डॉ अरुणा पल्टा की प्रेरणा से आयोजित इस व्याख्यान श्रृंखला का आज अंतिम दिन था। अपने कर्मजीवन में 60 हजार से अधिक नेत्र सर्जरी कर चुके डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने कहा कि भारत में इतनी बड़ी संख्या में नेत्रहीन होने के पीछे मधुमेह का बड़ा योगदान है। भारत की 6.7 फीसदी आबादी मधुमेह से पीड़ित है। 2030 तक भारत दुनिया की मधुमेह राजधानी बन जाएगा। उन्होंने बताया कि भारत के नेत्ररोगियों में 62 फीसद कैटरेक्ट या मोतियाबिंद के मरीज होते हैं। मोतियाबिंद होने का सही– सही कारण नहीं पता पर डायबिटीज, कुपोषण, प्रोटीन इमल्सीफिकेशन इसका कारण हो सकते हैं। समय पर इलाज से इनकी आंखों की रोशनी लौटाई जा सकती है।
19 फीसद लोग रिफ्रैक्टिव एरर के शिकार होते हैं अर्थात उन्हें दूर या पास का दिखाई नहीं देता। चश्मा या करेक्टिव सर्जरी से इन्हें भी ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा 12 फीसद रोगियों में डायबिटिक रेटिनोपैथी पायी जाती है। यदि हम मधुमेह को नियंत्रण में रखें तो इस स्थिति से भी बचा जा सकता है। शेष मरीज ग्लूकोमा के होते हैं। इसमें आंखों से संदेश ब्रेन तक ले जानी नस खराब हो जाती है। इलाज से इसका प्रबंधन किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि भारत दुनिया का पहला देश है जहां 1975 से दृष्टिहीनता को रोकने के लिए कार्यक्रम चलाया जा रहा है। बावजूद इसके आंखों की सुरक्षा को लेकर हम जागरूक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कैटरैक्ट और रीफ्रेक्टिव एरर ट्रीटेबल एरर्स हैं। इन्हें रोका जा सकता है। शेष को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता।
प्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ ने कहा कि आंसू आंखों के लिए अच्छे होते हैं और इसे सूखने नहीं देना चाहिए। आंसू आंखों की सुरक्षा करते हैं। पलकों के झपकने पर ये आंखों पर वाइपर की तरह काम करने के अलावा आंखों में पड़ने वाली बाहरी चीजों को निकालने में भी मदद करती है। साथ ही यह माइक्रोब्स को भी मारने का काम करती है।
उन्होंने बताया कि लंबे समय तक कम्प्यूटर पर काम करने वालों, मोबाइल या टीवी को टकटकी लगाकर देखने वालों की पलक कम झपकती है और आंखों की नमी भी कम हो जाती है। इसलिए 45 से 60 मिनट के बीच एक बार स्क्रीन से नजरों को हटाकर दूर कहीं फोकस करना चाहिए। इससे आंखों में थकान कम होती है। आंखों को झपकाते रहना चाहिए।
डॉ श्रीवास्तव ने आंखों के विभिन्न हिस्सों से प्रतिभागियों का परिचय कराते हुए उनका काम तथा विशेषताएं बताईं। उन्होंने बताया कि आंखों के सामने का लेंस ऊपर और नीचे लिगामेंट्स के सहारे टिका रहता है। आवश्यकता पड़ने पर यह अपना आकार बदलता है जिससे फोकल लेंथ बदल जाता है। आंख के पीछे का भाग रेटिना कहलाता है जो न्यूरॉन्स से बना होता है। न्यूरांस की ही एक श्रृंखला आप्टिक नर्व के रूप में रूप में ब्रेन तक जाती है और संवेगों को वहां पहुंचाती है। दृष्टिदोष होने पर हम लेंस के आगे आवश्यकतानुसार लेंस लगाकर उसे ठीक कर देते हैं।
आंखों की सुरक्षा पर अपना व्याख्यान देते हुए उन्होंने आंखों में बाहरी वस्तु से चोट लगना, जन्मजात विकृतियां, संक्रमण, आक्यूलर एलर्जी, मोतियाबिंद तथा नजर कमजोर पड़ने की विस्तार से चर्चा की।
नजर की कमजोरी को लेकर जागरूकता के अभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यदि आंखों में पावर आ गया है और फिर भी हम चश्मे का उपयोग नहीं कर रहे हैं तो आंखों को स्थायी नुकसान पहुंचता है। इसलिए अब सरकार ने स्कूलों में एडमिशन के समय डेंन्टल और आंखों की जांच को जरूरी कर दिया है।
विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ अरुणा पल्टा ने उनके प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनका व्याख्यान विद्यार्थियों के साथ उनके पालकों एवं प्राध्यापकों के लिए भी बेहद उपयोगी साबित होगा। हेमचंद विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने आरंभ में संयुक्त संचालक डॉ प्रशांत श्रीवास्तव का परिचय दिया।