भिलाई। आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत स्वरूपानंद महाविद्यालय में कला विभाग द्वारा जनजातीय गौरव दिवस का आयोजन किया गया एवं जनजातीय समाज का आंदोलन में योगदान विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए संयोजिका डॉ सावित्री शर्मा ने कहा कि आजादी के नायक बिरसा मुंडा के जन्मदिवस 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे सदैव अपने अस्तित्व संस्कृति और सम्मान बचाने के लिए संघर्षरत रहे हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ हंसा शुक्ला द्वारा बिरसा मुंडा के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास तथा संस्कृति में जनजाति सदस्यों के योगदान का सम्मान करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। यह दिवस जनजातीय समाज के महापुरुषों के विचारों को आत्मसात करने का संदेश देता है। छत्तीसगढ़ के जनजातीय समाज के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि तीर कमान लेकर अंग्रेजों की स्वचालित आधुनिक अस्त्रशस्त्र से मुकाबला करने का उनका अद्भुत साहस था। ऐसा कहा जाता है कि पूरे भारत में अंग्रेजों ने अपने मन मुताबिक शासन चलाया लेकिन वह जनजातीय क्षेत्रों में असहाय रहे यही कारण था की अनेक जनजातीय समुदायों को उन्होंने अपराधी घोषित कर दिया था।
महाविद्यालय के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ दीपक शर्मा ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास रहा है। बिरसा मुंडा ने ना केवल शोषण के खिलाफ आवाज उठाई, अपितु आदिवासियों के सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है। छत्तीसगढ़ के वीर नारायण सिंह, गुंडाधुर, कंगला मांझी, आदि ऐसे नायक हैं जिन्होंने विदेशी ताकतों के खिलाफ आवाज उठाई और शहीद हुए।
कला विभाग द्वारा इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के जनजातीय समाज का आंदोलन में योगदान विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। बीए द्वितीय वर्ष के छात्र अरिहंत गुप्ता ने अबूझमाड़ जनजाति के योगदान पर विशेष प्रकाश डाला। दीक्षा पाल ने कवर्धा एवं बिलासपुर जिले में पाई जाने वाली पहाड़ी कोरवा जनजातियों के योगदान का उल्लेख किया। बीए प्रथम वर्ष के छात्र श्रवण शर्मा ने संविधान में जनजातियों की स्थिति से अवगत कराया। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के जनजातीय समुदाय के स्वतंत्रता सेनानियों के छायाचित्र को पहचानने के लिए विद्यार्थियों से कहा गया जिसमें विद्यार्थियों ने उत्साह पूर्वक बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया एवं जनजनतीय समाज के नायकों के योगदान से भली भांति परिचित हुए।
बीए प्रथम वर्ष की छात्र ईशा गुप्ता ने बताया कि दक्षिण बस्तर के वनवासियों के लिए साल वृक्ष आस्था का प्रतीक हैद्य अंग्रेजी हुकूमत द्वारा जब इन वृक्षों की कटाई की जाने लगीए तो मारिया जनजाति के दोरला एवं दंडामि ने सामूहिक विरोध का निर्णय लियाद्य उनके सभी कार्य और आचरण विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए निर्देशित थेए इस प्रकार स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास रहा है। कार्यक्रम को सफल बनाने में कला विभाग के समस्त प्राध्यापिकाओं का विशेष योगदान रहा। संचालन पृथ्वी सिंह राजपूत ने किया।