भिलाई. कभी कभी प्राकृतिक घटनाएं भी जान पर बन आती हैं. कुछ ऐसा हुआ था 26 वर्षीया निकिता धोटे के साथ. पिछले साल गर्मियों के दौरान एक दिन जब वह ड्यूटी से लौट रही थी तो तेज अंधड़ चली. रास्ते में एक विशाल पेड़ उसपर आ गिरा. उसकी कमर और पीठ पर गंभीर जख्म लगे. एक स्थानीय अस्पताल (हाईटेक नहीं) में उसकी सर्जरी हुई पर वह कभी बिस्तर से उठ नहीं पाई. जनवरी में वह हाइटेक पहुंची. 22 दिन की मेहनत के बाद न्यूरो सर्जन और फिजियो की टीम ने उसे दोबारा अपने पैरों पर खड़ा कर दिया.
पीठ पर मोटी शाख के गिरने के कारण उसकी रीढ़ की हड्डी में कई जगहों पर गहरी चोट लगी थी. सर्जरी के बाद उसके जख्म तो भर गए पर स्पाइल कार्ड पर दबाव बना रहा. इसके कारण वह लगातार बिस्तर पर ही पड़ी रहने के लिए विवश हो गई. उसके शरीर के निचले हिस्से में मानो जान ही न हो.
इसी साल 5 जनवरी वह हाइटेक हॉस्पिटल पहुंची और न्यूरो सर्जन डॉ दीपक बंसल को दिखाया. सम्पूर्ण जांच के बाद यह तय किया गया कि स्पाइल कार्ड पर कम्प्रेशन को कम करने के लिए फिजियोथेरेपी की मदद ली जाए. हाइटेक की फिजियोथेरेपिस्ट डॉ अर्चना गुप्ता ने इसे एक चुनौती की तरह लिया. 22 जनवरी तक प्रतिदिन दो सिटिंग में मरीज की फिजियो की गई. इसके बाद मरीज के पैरों में जान लौट आई. उसे ब्रेसेस की मदद से खड़ा कर दिया गया. डाक्टरों ने उम्मीद जताई है कि समय के साथ वह बिना किसी सहारे के भी अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी.