दुर्ग. शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशाली महाविद्यालय में हिन्दी विभाग के तत्वावधान में ‘साहित्य और पठनीयता की चुनौती’ विषय पर डॉ उ कनक पाठक (मिरजापुर, उत्तर प्रदेश) का व्याख्यान आयोजित किया गया. इस अवसर पर डॉ उषा कनक पाठक ने कहा कि साहित्य के समक्ष उसकी पठनीयता बड़ी चुनौती है. साहित्य का संबंध सर्वहित से है जो सबके कल्याण के लिए होता है. यह धारा आज भी प्रवाहमान है पर आज स्वसाह्तिय के अध्येता कम होते जा रहे हैं. इसका कारण विषय एवं भाषागत जटिलता बताई जाती है किन्तु यह सही नहीं है. डॉ उषा ने कहा कि साहित्य की समझ संस्कार से पैदा होती है. पुराने समय में यह संस्काकर बच्चों को घर परिवार से मिला करता था जहां धार्मिक ग्रंथों के साथ बालबोध की कहानियों, दादी-नानी के किस्सों के बीच ही बड़े होते थे. आज एकल परिवार और जिन्दगी भाग-दौड़ में यह सब पीछे छूट गया और उनकी जगह डिजिटल मीडिया और मोबाइल ने ले लिया है. आज बच्चा पुस्तक पढ़ने के बजाय मोबाइल उठाता है. इसलिए उनमें क्या अच्छा है और क्या बुरा है इसका विवेक पैदा नहीं हो पाता. साहित्य से दूर होते जाने के कारण आज समाज में दया, करुणा का स्थान घृणा और हिंसा ने ले लिया.
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य डॉ आर.एन. सिंह ने कहा – पठन-पाठन को अलंकित करने का कार्य एक छोटे से यंत्र ने कर दिया है इसलिए हमारी नयी पीढ़ी के समक्ष पठन-पाठन एक समस्या बनती जा रही है. आज विद्यार्थी अच्छी किताबें पढ़ने से कतराने लगे हैं. इसलिए उनमें चिंतन का अभाव है. यह स्थिति समाज और राष्ट्र के लिए भी एक बड़ी चुनौती है. आज पुस्तक संस्कृति को फिर से बढ़ावा देने की आवश्यकता है.
विभाग के अध्यक्ष डॉ अभिनेष सुराना ने अपने स्वागत भाषण में कहा – आज साहित्य के प्रति पाठकों की उदासीनता एक बड़ी समस्या है इसलिए साहित्य की पठनीयता संबंधी चर्चा न केवल मौलिक है बल्कि प्रासंगिक भी है.
कार्यक्रम में डॉ जगतीत कौर सलूजा, अध्यक्ष भौतिक शास्त्र विभाग एवं विभाग के प्राध्यापकों के अलावा बड़ी संख्या में विद्यार्थीगण उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन डॉ कृष्णा चटर्जी ने तथा आभार प्रदर्शन प्रो. थानसिंह वर्मा ने किया.