भिलाई। बड़े से बड़ा बम भी एक निश्चित दायरे में ही नुकसान पहुंचा सकता है जबकि संवाद और उसकी अदायगी का तरीका विश्व युद्ध भी करवा सकता है. हालांकि, यह क्षमता भी केवल अच्छे संवाद में ही है कि वह चाहे तो युद्ध को रोक भी सकती है. उक्त उद्गार आज प्रसिद्ध संगीतकार एवं गायक ज्ञान चतुर्वेदी ने एमजे कॉलेज में आयोजित “ड्रामाटिक्स इन टीचिंग” कार्यशाला को संबोधित करते हुए व्यक्त किये.
कार्यशाला का आज तीसरा दिन था. महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर एवं प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे की प्रेरणा से आयोजित इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संवाद अदायगी किसी भी विषय की अमिट छाप छोड़ सकती है. यही कारण है कि हमें मंत्र और चालीसा याद रहते हैं, फिल्मों के संवाद तक याद रह जाते हैं. अदायगी की यह कला एक शिक्षक के लिए भी बेहद जरूरी है. महापुरुष स्वामी विवेकानंद एवं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की संवाद अदायगी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि किस तरह इससे दुनिया को जीता जा सकता है.
उन्होंने भाषा और स्वर को साधने के विभिन्न उपायों का जिक्र करते हुए कहा कि एक शिक्षक को लगातार अपनी भाषा, संवाद अदायगी और उच्चारण पर काम करना चाहिए. इससे वे श्रेष्ठ वक्ता बन सकते हैं. संचार कला में निपुण एक शिक्षक पाठ को अपने बच्चों के दिमाग में बैठा सकता है. उन्होंने बताया कि किस तरह मेटर्जिकल म्यूजिक मेकर्स ने बेहतरीन अदायगी से देश के प्रमुख इस्पात एवं उद्योग नगरियों में अपनी पहचान बनाई थी.
कार्यशाला के संयोजक सहायक प्राध्यापक दीपक रंजन दास ने विषय प्रवेश कराते हुए विद्यार्थियों से कुछ प्रायोगिक कार्य करवाए जिसमें कविता का सस्वर पाठ, टॉपिक टीचिंग आदि शामिल थे. कार्यशाला का संचालन शिक्षा संकाय की सहायक प्राध्यापक आराधना तिवारी ने किया.