आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों को आम आदमी पार्टी ने चुनौती दी है. ‘आप’ का आरोप है कि इन स्कूलों के आधे से ज्यादा बच्चे फेल हो रहे हैं. इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार को शिक्षा का दिल्ली मॉडल अपनाना चाहिए. बच्चों की शिक्षा को लेकर ‘आप’ चिंतित है, यह अच्छी बात है, वरना भाजपा को तो इसकी पड़ी ही नहीं है. उसके पास हिन्दू राष्ट्र का “बड़ा मुद्दा” जो है. पर क्या ‘आप’ ने भी समस्या की तह तक जाने की कोशिश की है. आज जो बच्चे निजी और सरकारी स्कूलों में पढ़कर कालेज पहुंच गए हैं, यदि ढंग से कापियां जांची गईं तो इनमें से भी आधे से ज्यादा फेल हो जाएंगे. दरअसल, शिक्षण का माध्यम एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. भाषा को लेकर जितने प्रयोग किये गये, वो सब के सब असफल सिद्ध हुए हैं. अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, मातृभाषा सबका हाल एक जैसा है. दिन भर हिन्दी बोलने वाले भी, जब लिखने की बारी आती है, तो दाएं-बाएं झांकने लगते हैं. मातृभाषा में वो लिख-पढ़ नहीं सकते. संस्कृत की ऐसी-तैसी तो म्यूजिकल मंत्रों ने पहले ही फेर रखी है. ऐसे में अंग्रेजी माध्यम की शालाओं के सामने कुछ तो चुनौतियां आएंगी ही. इनमें से अनेक बच्चे पहली बार अंग्रेजी में पढ़ाई कर रहे हैं. कुछ शिक्षकों के लिए भी यह एक नया अनुभव है. सरकार ने आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के लिए इंग्लिश मीडियम से पढ़े हुए बच्चों को प्राथमिकता के साथ नियुक्त किया. पर इनमें से 80 फीसदी शिक्षक अंग्रेजी में बात नहीं कर सकते, कुछ समझाना तो बहुत दूर की बात है. कुछ प्रतिष्ठित स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो प्रदेश के अधिकांश इंग्लिश मीडियम स्कूलों का यही हाल है. अब दिक्कत यह है कि बच्चे घर पर छत्तीसगढ़ी, मोहल्ले में हिन्दी और स्कूल में खिचड़ी भाषा में पढ़ाई कर रहे हैं. ऐसे में जांचने वाला सख्त हुआ तो 80 फीसदी तक बच्चे फेल हो जाएंगे. सवाल सिर्फ पास या फेल होने का नहीं है. यदि बच्चे भाषा में कमजोर रहे तो आगे की पढ़ाई उनके लिए और कठिन होने वाली है. वैसे भी कोई बताए कि जिस देश में भाषा की बुनियादी शिक्षा कालेजों तक में दी जाती हो, वहां के बच्चे स्कूली शिक्षा हासिल किस भाषा में करके आते हैं? जाहिर है कि यदि शिक्षण की गुणवत्ता को बढ़ाना है तो सबसे पहले तो यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि बच्चा पांचवी पास करते तक वह भाषा अच्छे से सीख ले जिसमें उसे आगे की पढ़ाई करनी है. भाषा पेपर के व्याकरण वाले हिस्से में “अटकन-मटकन दही चटाखा…” करके वह पास तो हो ही जाता है. ऐसा बच्चा जब शिक्षक बनता है तो उसकी मुसीबतें शुरू हो जाती हैं. एक शिक्षक को अभिनेता, कुशल वक्ता और भाषाविद तो होना ही चाहिए ताकि वह विद्यार्थियों से जुड़ सके. यदि भाषा वकीलों जैसी होगी तो बच्चों को भी उसे समझने में वक्त तो लगेगा ही.