वैसे तो मौसम बारिश का चल रहा है पर दगाबाज मौसम का मूड समझ में नहीं आ रहा है. आसमान ताकते दिन गुजर रहे हैं. पर राजनीतिबाज और राजनीति में रुचि रखने वाले अभी से नवम्बर-दिसम्बर की तैयारी में जुट गए हैं. छत्तीसगढ़ के लिए यह चुनावी मौसम होगा. चुनावी मौसम में और होली में गजब का सामंजस्य है. होली में रंग-गुलाल के अलावा कीचड़, गोबर और पेंट का भी जमकर उपयोग होता है. कुछ ऐसा ही आलम चुनावी मौसम में भी होता है. जमकर कीचड़ उछाले जाते हैं, कपड़े फाड़े जाते हैं. जनता इसका तमाशा देखती है और फिर जैसा उसका मूड बनता है, वैसा फैसला सुनाकर अपनी राह पकड़ लेती है.
फिलहाल, प्रधानमंत्री का एक जुमला वायरल हो रहा है. “न खाऊंगा, न खाने दूंगा”. वैसे भी पीएम योगा करते हैं. वो बहुत कम खाते हैं. पर समूची भाजपा ऐसी नहीं है. वह खाती भी है और खाने देती भी है. अब हर कोई मुनि तो नहीं हो सकता जो प्रतिदिन आधा लीटर पानी पीकर तीन महीने गुजार दे. वैसे भी कार्यकर्ताओं की और पार्टी की अपनी जरूरतें होती हैं. जब पार्टियां अच्छे प्रत्याशी चुना करती थी तो उसका चुनाव भी खर्च वहन करती थी. जमकर चंदा-चकारी करती थी. पर अब ऐसा नहीं है. पार्टी चुन-चुन कर ऐसे लोगों को ही टिकट देती है जो अपना और दो-चार अन्य प्रत्याशियों का खर्चा उठा सके. वह ऐसे प्रत्याशी ढूंढती है जिसकी जेब में दो-चार दर्जन फाइनेंसर हों. केन्द्र सरकार गैर भाजपा शासित राज्यों में इसी “सप्लाई लाइन” को काटने की कोशिश कर रही है. छत्तीसगढ़ में ऐसे लोगों को टारगेट किया जा रहा है जो कांग्रेस सरकार की “सप्लाई लाइन” हो सकते हैं. वैसे यह कोई नया फार्मूला नहीं है. सेना भी ऐसा ही करती है, पहले दुश्मन की घेराबंदी करती है और फिर उसकी ‘रसद की लाइन’ काट देती है. गोली-बारी तब तक जारी रखी जाती है जबतक दुश्मन का भोजन, पानी और बारूद खत्म न हो जाए. फिर दुश्मन समर्पण के लिए विवश हो जाता है. नक्सलियों के खिलाफ भी इसी रणनीति का उपयोग किया जाता है. आरोप-प्रत्यारोप और बतोलेबाजी की जिम्मेदारी मैदानी अमले की होती है. अब तक भाजपा शराब घोटाले को लेकर हमलावर रही है. ईडी ने इसमें मनी लॉन्डरिंग का मामला खोज निकाला जिसका चार्जशीट भी दाखिल हो चुका है. अब कांग्रेस 34 घोटालों की लिस्ट निकाल कर लाई है. इसमें ऐसे घोटाले शामिल है जिसमें सीधे जनता का पैसा डूबा है. वह पीएम से पूछ रही है कि इन घोटालों की ईडी या सीबीआई जांच क्यों नहीं की जा रही. इनमें 36 हजार करोड़ का नान घोटाला, 4400 करोड़ का आबकारी घोटाला, 1667 करोड़ का गौशाला निर्माण, पनामा पेपर, इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक घोटाला, 300 करोड़ की तेंदूपत्ता खरीदी और 6 हजार करोड़ का चिटफंड घोटाला, आदि शामिल हैं. तो क्या पीएम का आशय केवल कांग्रेस को नहीं खाने देने का था?
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