भिलाई। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में एक 56 वर्षीय मरीज के पैर की नस में स्टेंट डाला गया. दरअसल, इस मरीज का एक जटिल इतिहास है. हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट, फिर ब्रेन सर्जरी, और फिर पैर में डीवीटी (डीप वेन थ्रॉम्बोसिस) से वह पिछले 12 साल से भी अधिक समय से जूझ रहा है. इस बार जब वह अस्पताल पहुंचा तो उसके बाएं पैर में असहनीय दर्द और सूजन थी. यह इलियाक वेन स्टेनोसिस का विरल मामला था जो बहुत कम देखने में आता है.
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ आकाश बख्शी ने बताया कि इलियाक वेन स्टेनोसिस जन्मजात भी हो सकता है. इसमें धमनी नस पर चढ़ जाती है और उसपर दबाव बनाती है. इसके कारण नसों में रुकावट उत्पन्न होने लगता है. इस रुकावट के चलते हृदय को लौटने वाला खून वहीं रुकने लगता है और उसमें थक्के बनने लगते हैं. मरीज को असहनीय पीड़ा होती है और अत्यधिक सूजन होता है..
डॉ बख्शी ने बताया कि मरीज का एक लंबा इतिहास भी था. लगभग 12 साल पहले उसके दिल के एक वाल्व को बदला गया था. इसके बाद 2022 में उन्हें लकवा मार गया. रायपुर के एक अस्पताल में उनके ब्रेन की सर्जरी भी हुई. काफी समय बाद वे काम पर लौटने में सफल हुए. पर इसके बाद उन्हें बाएं पैर में तीव्र पीड़ा होने लगी. जांच करने पर डीप वेन थ्रॉमोबोसिस का पता लगा. इसका इलाज करने के बाद मरीज काम पर लौट गया.
इस घटना के लगभग सवा साल बाद अगस्त में वह दोबारा हाइटेक पहुंचा. एक बार फिर उनके पैरों में असहनीय पीड़ा थी. जांच करने पर पता चला की यह साधारण डीवीटी का मामला नहीं है. डॉ बख्शी ने इसके बाद इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ प्रशांत पोटे, रेडियोलॉजिस्ट डॉ गिरीश वर्मा एवं डॉ उज्ज्वल निगम के साथ इस केस को डिस्कस किया गया. मरीज का सीटी एंजियो किया गया. दरअसल, यह इलियाक वेन स्टेनोसिस का दुर्लभ केस था. बाहरी दबाव के कारण नस संकरी हो रही थी और रक्त का प्रवाह रुक गया था. नस को फैलाने के लिए स्टेंट लगाया गया. इसके बाद मरीज की हालत में तेजी से सुधार हुआ और दर्द पूरी तरह समाप्त हो गया. अब मरीज काम पर लौट गया है.
दरअसल, इलियाक वेन स्टेनोसिस को पकड़ने में कभी कभी वक्त लग जाता है. अकसर एक ही पैर में सूजन और दर्द होने से इसे हाथी पांव समझ लिया जाता है. पर ऐसा नहीं है. दोनों में लक्षण काफी अलग होते हैं. उन्होंने बताया कि इलाज के बाद मरीज लगातार उनके सम्पर्क में है और उसकी स्थिति काफी बेहतर है.