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मध्यप्रदेश में चपरासी से भी सस्ते अतिथि विद्वान

Apr 19, 2015

MP guest lecturersभोपाल। भारतीय पंचायत संघ ने मध्यप्रदेश सरकार का ध्यान अतिथि विद्वानों की दुश्वारियों की तरफ आकर्षित किया है। संघ ने कहा है कि चपरासियों से भी कम मानदेय पर विगत लगभग 20 वर्षों से कार्यरत ये अतिथि विद्वान विषय विशेषज्ञ होने के बावजूद अधिकतम 600 रुपए की दिहाड़ी मजदूरी पर काम कर रहे हैं। इसमें भी दो-तीन महीने वे बेरोजगार रहते हैं। संघ की प्रदेश इकाई के प्रमुख अतुल गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में 3600 विद्वान रिक्तपदों के विरूद्ध एवं 5000 जनभागीदारी से कार्यरत है। वे शैक्षणिक कार्य के अलावा गैर शैक्षणिक कार्य में भी सहयोग …कर रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि प्रदेश के 412 शासकीय महाविद्यालयों में पिछले 19-20 वर्षों से सहायक प्राध्यापकों की भर्ती नहीं होने एवं नये कालेज खुलने से 3600 से अधिक पद रिक्त हो गए हैं। इस कमी को पूरा करने के लिये यूजीसी के नियमानुसार अतिथि विद्वानों को रिक्त पदों के विरूद्व अस्थायी रूप से नियुक्त किया गया है।
इन विद्वानों को पहले 100, 120 और फिर 155 रूपये प्रति काल खण्ड ओर अब 200 रू. प्रतिकालखण्ड या 600रू. का दिहाड़ी मजदूर बना दिया गया है। कई बार तो 4-5 माह में भी बजट आवंटन न होने से भुगतान नहीं हो पाता।
अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण के पक्ष में संघ ने निम्न तर्क दिए हैं
01. शिक्षकों की कमी को देखते हुए 1984-86 में महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक, क्रीड़ा अधिकारी, संघपालों के पद पर तदर्थ नियुक्ति की गई जिन्हें 1987-88 में सभी नियमों को शिथिल करते हुए नियमित किया गया।
02. 1986-89 में आपाती नाम से उच्च शिक्षा में उक्त पदों पर नियुक्तियॉ की गई जिन्हें क्रमश: 2003, 2005, 2007 में आयु एवं शैक्षणिक योग्यता को शिथिल करते हुए माननीय आधार पर नियमित कर दिया गया।
03. चिकित्सा शिक्षा में भी 2005, 2007, 2011 में 3 वर्ष की संविदा नियुक्ति के पश्चात नियमित कर दिया गया।
04. हरियाणा हाईकोर्ट के निर्णय पर हरियाणा सरकार ने 39 वर्ष तक महाविद्यालय में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को नियमित किया।
05. अतिथि विद्वानों से इस आशय का शपथपत्र लिया जाता है कि वह किसी शासकीय या अर्द्ध शासकीय सेवा में सेवारत नहीं है तथा उसके खिलाफ कोई आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं है। इस कारण अतिथि विद्वान अन्य कार्य नही कर पाये तथा वर्तमान में कार्य करते हुए 40 से 50 वर्ष के हो गये हैं। अत: अन्य किसी शासकीय सेवा में आवेदन करने के लिए भी अपात्र हो चुके हैं।
06. अतिथि विद्वानों का मासिक अकुशल श्रमिक तथा राज्य शासन के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को प्राप्त मासिक वेतन से भी कम है।
07. जनभागिदारी समितियों के माध्यम से संचालित स्ववित्तीय पाठ्यक्रमों को नियमित विषय के रूप में मान्यता प्रदान कर इन विषयों के पदों का सृजन किया जाये।
08. अतिथि विद्वान द्वारा अध्यापन के अलावा महाविद्यालयीन शैक्षणिक व्यवस्था से संबंधित अनेक कार्य किये जाते हैं जिनका कोई अतिरिक्त मानदेय नहीं दिया जाता। इतने कम मानदेय पर समस्त दायित्वों का निर्वहन संभव नही हो पाता है। इन लोगों को बीच सत्र मे ही ब्रेक देकर दो-तीन माह के लिये बैठा दिया जाता है।
संघ ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि अतिथि विद्वानों को मानवीय आधार पर नियमित कर यूजीसी के नियमानुसार निश्चित वेतनमान पर निरंतरता प्रदान की जाए। संघ ने कहा है कि इस व्यवस्था में बहुत ही प्रतिभाशाली लोग लगे हुये हैं, परंतु आर्थिक अनिश्चितता की वजह से उनकी विद्वतता प्रभावित हो रही है। सरकार को खतरे से आगाह करते हुए संघ ने कहा है कि रचनात्मक लेखन, अनुसंधान, सामाजिक सर्वे आदि आर्थिक परेशानियों की वजह से नहीं कर पाते है, सरकार इस व्यवस्था से पैसे तो बचा रही है पर भविष्य में देखे तो बौद्धिकता धीरे धीरे खत्म होती जायेगी और आगे मध्यप्रदेश मे विषय विशेषज्ञ नहीं मिलेंगे।

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