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12 मौतें : मंत्री नहीं, नसबंदी का दोष

Nov 12, 2014

sterilization botch, 12 killedरायपुर। यह सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही हो सकता है। छह महीने से बंद पड़े अस्पताल के धूल से सने कमरों में 3-4 घंटे के दरम्यान 83 महिलाओं की नसबंदी कर दी गई। 12 मरीजों की मौत हो चुकी है, लगभग दो दर्जन अब भी गंभीर हालत में हैं। मुख्यमंत्री ने कहा है कि इसमें स्वास्थ्य मंत्री अग्रवाल का कोई दोष नहीं है क्योंकि ये आपरेशन उन्होंने नहीं किए हैं। उधर मृतकों के परिजनों का कहना है कि उन्होंने बार बार अपनी बहू से नसबंदी नहीं करवाने की अपील की थी। यदि नसबंदी नहीं कराती तो उनकी मौत नहीं होती। यानी कि सारा दोष नसबंदी का। इधर खोजी पत्रकार यह जानकारी लेकर आए हैं कि राज्य में न केवल दोषी चिकित्सकों की ताबड़तोड़ पुनर्बहाली होती रही है बल्कि जिन दवा कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया गया था, उन्हें ही दोबारा लाइसेंस दिया गया है।
यहां कुछ बातों की तरफ पाठकों का ध्यान आकृष्ट करना जरूरी है।
चिकित्सा क्षेत्र की बदहाली के लिए सिर्फ और सिर्फ स्वास्थ्य मंत्री दोषी हैं। यदि मुख्यमंत्री उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे हैं तो वे खुद भी दोषी हैं। आखिर इस बात के लिए जिम्मेदार कौन है कि कवर्धा में तीन साल पहले एक ईएनटी सर्जन ने नसबंदी के आपरेशन किये। इस बात के लिए जिम्मेदार कौन है कि ऐसे चिकित्सकों को निलंबित करने के बाद उन्हें न केवल फिर से बहाल किया गया बल्कि मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी बना दिया गया।
ग्रामीण महिलाएं नसबंदी को दोषी ठहरा रही हैं। उनका पहले से ही मानना है कि नसबंदी कराने से मौत हो सकती है। मीडिया इस सोच को हवा दे रही है। ऐसा केवल इसलिए कि समर्थ लोगों का इलाज यहां अच्छे अस्पतालों मेें होता है। गरीबों को केवल टारगेट पूरा करने की भीड़ समझा जाता है। कुछ लोग मितानिनों को दोष दे रहे हैं। लिखा जा रहा है कि मितानिनों ने बहला फुसलाकर महिलाओं को शिविर तक लाया। मितानिनों ने सिर्फ प्रेरक का काम किया। इलाज की पूरी जिम्मेदारी सरकार की थी। लिखा जा रहा है कि मितानिनें पैसों के लालच में यह करती रहीं। दिल पर हाथ रखकर बताएं – कितने लोग ऐसे हैं तो पैसों के लिए काम नहीं करते।
नीतियां जिम्मेदार : स्वास्थ्य सेवाओं में टारगेट सेट करने वाले लोगों को सबसे पहले पकड़कर फांसी पर लटका देना चाहिए। डाक्टर का पता नहीं, आपरेशन कहां होंगे पता नहीं, दवा और औजारों की सप्लाई कैसी है – इसकी चिंता नहीं – सिर्फ टारगेट पूरा होना चाहिए। तीन साल पहले मुख्यमंत्री के गृह जिला कवर्धा, दो साल पहले राजधानी के उरला के नसबंदी शिविरों में भी एक-एक मौत हुई। बालोद और बागबाहरा के मोतियाबिंद शिविरों में दर्जनों लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। फिर भी शिविर लग रहे हैं, लापरवाही हो रही है।
मौजूदा मामला : 12 गांव की 83 महिलाओं का चंद घंटे में आपरेशन। जिस अस्पताल में आपरेशन किए गए वह पिछले छह माह से बंद था। दोपहर ढाई बजे आपरेशन शुरू किए गए। एक आपरेशन पर 4 से 5 मिनट खर्च किए गए। जिस कंपनी की स्पिरिट से आंख फोड़वा कांड हुआ, उसे दोबारा स्पिरिट सप्लाई का लाइसेंस दे दिया गया। शनिवार शाम हुए आपरेशन के बाद रविवार को अवकाश था। सोमवार से मौत के आंकड़े आने शुरू हुए। मंगलवार को मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री हाल चाल पूछने गए। इससे ज्यादा चिंता तो लोग पालतू पशुओं की करते हैं।

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