भिलाई। डीएनए की थोड़ी सी मात्रा को जीन एम्प्लीफिकेशन के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है। इससे इसका अध्ययन करना आसान हो जाता है। इसे पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) तकनीक कहते हैं। बदलते हुए पर्यावरण में विभिन्न घातक बीमारियों के डायग्नोसिस एवं ट्रीटमेंट के लिए पीसीआर तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। इससे डीएनए के अध्ययन में मदद मिलती है। उक्त बातें सेंटर फॉर मॉलिक्यूलर बायोलॉजी भोपाल के निदेशक डॉ दीपक भारती ने श्री शंकराचार्य महाविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में कही।डॉ भारती यहां सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग एवं जंतु विज्ञान विभाग द्वारा ‘ट्रेंड्स इन सोशल वेस्ट मैनेजमेंट एंड बायोलॉजिकल एप्रोच टू ए सिरीन वर्ल्ड’ पर सात दिवसीय कार्यशाला के तृतीय दिवस के तकनीकी सत्र को संबोधित कर रहे थे। डॉ दीपक भारती ने पीसीआर पर व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए विद्यार्थियों को मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के विभिन्न पहलुओं को समझाया।
विद्यार्थियों ने समझा कि किस प्रकार हम डीएनए की थोड़ी सी मात्रा को जीन एमप्लीफिकेशन के माध्यम से बढ़ाया सकते हैं। सूक्ष्मजीव विज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी के छात्र पीसीआर का उपयोग करके अपनी प्रयोगशाला में ही विभिन्न डीएनए सैंपल का अध्ययन कर सकते हैं।
डॉ भारती ने पीसीआर के विभिन्न प्रकारों को समझाया एवं उन्हें आॅपरेट करना भी सिखाया। विद्यार्थियों ने संबंधित विषय पर उनसे प्रश्न उत्तर किए एवं अपने संशय का समाधान किया। इस कायर्शाला में बाहर कॉलेज से आए विद्यार्थियों, असिस्टेंट प्रोफेसर एवं रिसर्च स्कॉलर्स ने भी अपने प्रश्न रखे एवं इस पद्धति को सीखा।
इस कार्यशाला के चौथे दिन विद्यार्थी पीसीआर, एसडीएस पेज एवं एग्रोज जेल इलेक्ट्रोफॉरेसिस एवं विभिन्न मॉलिक्यूलर प्रयोग प्रयोगशाला में करेंगे।
महाविद्यालय की निदेशक एवं प्राचार्य डॉ रक्षा सिंह ने कार्यशाला में विद्यार्थियों एवं शिक्षकों की सहभागिता की सराहना की तथा उन्हें भविष्य में उन्नत रिसर्च वर्क के लिए प्रेरित किया। महाविद्यालय के अतिरिक्त निदेशक डॉ जे दुर्गा प्रसाद राव ने कार्यशाला की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा विद्यार्थियों को अपने आशीष वचन दिए।
कार्यक्रम की आयोजन सचिव डॉ. रचना चौधरी एवं संयोजक डॉ. सोनिया बजाज है एवं कार्यक्रम का संचालन सहा. प्राध्यापिका श्रीमती अर्चना सोनी कर रही है। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक गण, कमर्चारीगण एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।