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लॉकडाउन में विद्यार्थियों के शैैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन पर किया शोध

Jun 4, 2020

Research on effects of Corona Lockdownभिलाई। हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों के 518 विद्यार्थियों से शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन से संबंधित प्रश्नों के उत्तर से इस शोध कार्य का विश्लेषण किया गया कि कोरोना महामारी में प्रथम लॉकडाउन से लेकर आज तक स्थगित परीक्षा, शैक्षणिक सत्र एवं पारिवारिक संबंधों के प्रति विद्यार्थियों का नजरिया क्या है। विद्यार्थियों से प्रश्न के उत्तर गुगल डाइव के माध्यम से लिये गये तथा उनके उत्तरों का विश्लेषण कर यह निष्कर्ष निकाला गया कि ग्रामीण-शहरी सभी क्षेत्र के विद्यार्थी यह स्वीकार करते हैं कि लॉकडाउन का उनकी परीक्षाओं एवं रिश्तों पर प्रभाव पड़ा है। शहरी क्षेत्र के विद्यार्थी जहां नेट सुविधा होने के कारण ऑनलाइन परीक्षा एवं आॅनलाइन कक्षाओं के लिए तैयार हैं वहीं कस्बाई एवं ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थी परीक्षा केन्द्र में परीक्षा तथा महाविद्यालय परिसर में ही कक्षाएं चाहते हैं। प्रस्तुत है चुनिन्दा प्रश्नों एवं उनके उत्तर
प्रश्न – लॉकडाउन से परीक्षाएं स्थगित होने से क्या आप रिलेक्स महसूस किये?
उत्तर – 49 फीसद विद्यार्थियों ने हां कहा जबकि 37 फीसद विद्यार्थियों ने ना में एवं 24: विद्यार्थियों ने स्पष्ट उत्तर नहीं दिया।
प्रश्न – बची हुई परीक्षाओं का पुन: आयोजन आप कब चाहते हैं?
उत्तर – 71 फीसद विद्यार्थी स्थगित परीक्षा जुलाई माह में 22 फीसद 16-30 जून के मध्य एवं 7 फीसद विद्यार्थी कभी भी परीक्षा देने को तैयार है।
प्रश्न – आप स्थगित परीक्षाओं के बीच कितना अंतराल चाहते है?
उत्तर – 94 फीसद कम से कम एक दिन का अंतराल चाहते है। 4 फीसद बिना अंतराल के परीक्षा देने को तैयार है एवं 2 फीसद विद्यार्थी एक दिन में दो परीक्षा देने को तैयार हैं।
प्रश्न – आप किस तरह का प्रश्न पत्र चाहते हैं?
उत्तर- 48 फीसद ऑबजेक्टिव एवं लधुउत्तरीय प्रश्नों से, 27 फीसद दीर्घउत्तरीय एवं 25 फीसद ने प्रश्न पत्र में लघु एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न की इच्छा जाहिर की।
प्रश्न – आप ऑनलाइन या ऑफलाइन किस माध्यम का परीक्षा लेना चाहते है?
उत्तर – 52 फीसद ऑफलाइन, 32 फीसद ऑफलाइन या आॅनलाइन तथा 16 फीसद विद्यार्थी आॅनलाइन परीक्षा देने को तैयार हैं।
प्रश्न – बची हुयी परीक्षाओं के संबंध में आपकी क्या राय है?
उत्तर- 28 फीसद परीक्षा के पक्ष में, 12 फीसद मॉडल आंतरिक परीक्षा के आधार पर अंक दिए जाने तथा 60 फीसद (अधिकांश प्रथम वर्ष) विद्यार्थी जनरल प्रमोशन के पक्ष में थे।
प्रश्न – लॉकडाउन के दौरान बचे हुये पाठ्यक्रम एवं स्थगित परीक्षाओं के पेपर की तैयारी में शिक्षकों का सहयोग मिल रहा है अथवा नहीं ?
उत्तर – 93 फीसद ने माना की शिक्षक पाठ्यक्रम पूरा कराने एवं शंका समाधान के लिए उपलब्ध हैं। 7 फीसद ने शिक्षकों का सहयोग नहीं मिलने की शिकायत की।
प्रश्न – क्या आप आॅनलाइन पढ़ाई कर रहे है और इससे कितने संतुष्ट हैं?
उत्तर – 25 फीसद विद्यार्थियों ने सकारात्मक, 45 फीसद असंतुष्ट एवं 29 फीसद ने साधन का अभाव बताया।
प्रश्न – लॉकडाउन से आपकी परीक्षा की तैयारी प्रभावित हुई की नहीं?
उत्तर- 82 फीसद ने कहा कि परीक्षा स्थगित होने से तैयारी की रफ्तार कम हुई, जबकि 18 फीसद विद्यार्थियों ने परीक्षा की तैयारियों को अप्रभावित बताया।
प्रश्न – आपने लॉकडाउन के समय को इंजॉय किया, अपने हॉबी या कौशल का विकास किया, बोर हुये?
उत्तर- 13 विद्यार्थियों ने लॉकडाउन का लुत्फ उठाया, 56 फीसद ने इस दौरान हॉबी और कौशल का विकास किया जबकि 39 फीसद सिर्फ बोर होते रहे।
प्रश्न – लॉकडाउन का पारिवारिक संबंधों पर क्या असर पड़ा?
उत्तर – 75 फीसद ने स्वीकार किया कि पारिवारिक संबंध मजबूत हुये। 18 फीसद ने कोई राय नहीं दी जबकि 7 फीसद ने नकारात्मक जवाब दिये।
प्रश्न 12- कोरोना वायरस से सुरक्षा का साधन सिर्फ लॉकडाउन है या संयमित रह कर सरकार के आदेषों का पालन कर हम इसे रोक सकते है?
उत्तर- 54 फीसद ने आत्म संयम एवं दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन को तथा 46 फीसद ने लॉकडाउन को सर्वोत्तम उपाय माना।
प्रश्न – लॉकडाउन लाभदायी है-प्रकृति, मनुष्य अथवा दोनों?
उत्तर- 80 फीसद ने माना कि वातावरण शुद्ध हुआ है, 13 फीसद ने इसे पर्यावरण के लिए लाभकारी तथा 8 फीसद ने इसे मानव के लिए अच्छा बताया।
प्रश्न – अगला शैक्षिणक सत्र कोरोना से प्रभावित होगा। आप अपने पाठ्यक्रम को किस प्रकार पूरा करेंगे?
उत्तर- अधिकांश विद्यार्थी मानते हैं कि अगले शैक्षिक सत्र में पाठ्यक्रम का एक बड़ा हिस्सा आॅनलाइन पूरा किया जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर ही कॉलेज जाकर शिक्षकों से सम्पर्क करें।
शोध कार्य का उद्देश्य लॉकडाउन का छात्रों के शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को जानना था। साथ ही तनाव या नकारात्क व्यवहार की सूरत में विद्यार्थियों की मदद करने की संभावना तलाशनी थी। यह शोध कार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला द्वारा किया गया।

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