भिलाई। कोविड के तीसरे दौर में बड़ी संख्या में बच्चे बड़ी संख्या में संक्रमित हो सकते हैं। पर घबराएं नहीं। उनमें इसके लक्षण अधिक तीव्र नहीं होंगे। पर कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं। बुखार को नियंत्रण में रखने, भोजन में सावधानी बरतने के साथ ही आरंभिक 7 दिनों में एंटीबायोटिक देने से बचें। इलाज किसी चिकित्सक में ही घर पर करें। करूणा हॉस्पिटल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ थॉमस सैमुअल ने उक्त बातें एमजे शिक्षा समूह द्वारा आयोजित वेबीनार को संबोधित करते हुए कहीं। 5 साल तक के बच्चों को मास्क पहनाने से बचना चाहिए।एमजे समूह की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर के निर्देशन में आयोजित इस वेबीनार में एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे, एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग के प्राचार्य डैनियल तमिलसेलवन, फार्मेसी कालेज के प्राचार्य डॉ टिकेश्वर कुमार तथा एमजे स्कूल की प्राचार्य मुनमुन चटर्जी, शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
डॉ थॉमस ने कहा कि कोविड के दूसरे दौर में 20 साल से कम उम्र के केवल 10 फीसद बच्चों में कोविड के लक्षण देखे गए पर तीसरे दौर में यह संख्या बढ़ सकती है। बच्चों में इसके लक्षण बहुत क्षीण होते हैं। मामूली बुखार, सांस लेने में परेशानी या पेट खराब होना जैसे लक्षण हो सकते हैं। बुखार उतारने के लिए पैरासिटामॉल और गुनगुने पानी का स्नान कराया जा सकता है। सांस लेने में घरघराहट की आवाज होने पर ऊपर का दूध देना बंद करें। खान-पान प्रभावित होने पर दही चावल केला और चीना मिलाकर दिया जा सकता है। चावल का पानी (माड़) या दाल का पानी नमक के साथ दिया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि कोई भी वायरल इंफेक्शन 5-6 दिन तक रहता है। इस अवधि में केवल बुखार पर नियंत्रण एवं हाइड्रेशन का ध्यान रखा जाना चाहिए। आरंभिक सात दिनों में एंटीबायोटिक का उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे अच्छे बैक्टीरिया भी खत्म हो जाते हैं जो कि हमारे शरीर का फर्स्ट लाइन डिफेंस है। आरंभिक दौर में अस्पताल में दाखिल करने से बचना चाहिए। अस्पताल से ऐसे संक्रमण हो सकते हैं जिसका इलाज काफी खर्चीला होता है। यह घातक भी हो सकता है। बच्चे के तापमान, सांस की रफ्तार और आक्सीजन सैचुरेशन पर नजर रखना चाहिए। इसके लिए चाइल्ड ऑक्सीमीटर का उपयोग करना चाहिए।
स्थिति गंभीर होने पर स्वयं आपका डाक्टर ही आगे की चिकित्सा के बारे में फैसला करेगा। ऑक्सीजन सैचुरेशन कम होने पर बच्चे को उलटा लिटाने से फायदा होता है। पैरासिटामॉल के ऊपर कोई भी दवा बिना डाक्टर की सलाह के नहीं देना चाहिए।
उन्होंने बच्चों में लक्षण की विस्तार से चर्चा की तथा उसके लक्षणों के बारे में बताया। स्थिति गंभीर होने पर उपलब्ध चिकित्सकीय उपाचारों के बारे में भी उन्होंने बताया।
एमजे स्कूल की हेडमिस्ट्रेस मुनमुन चटर्जी के एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि फास्ट फूड आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। इसका उपयोग करने से बचें। बच्चों को सुरक्षित माहौल में खेलने दें। गर्मियों में सुबह सुबह खेलना अच्छा रहता है। उन्होंने कहा कि फेफड़ों को क्लीयर करने में कुनकुने पानी में नींबू का रस और चीनी के बहुत अच्छे परिणाम आते हैं। बच्चों पर काढ़े का उपयोग न करें। उनके लिए अच्छा नहीं है। 13 साल से बड़े बच्चों को ही काढ़ा दिया जा सकता है। दूध से ज्यादा फायदा दही में होता है। एक अन्य सवाल के जवाब में उऩ्होंने कहा कि भाप लेने के लाभ कम और नुकसान अधिक हैं। इससे बचना चाहिए।
वेबीनार में एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ अनिल चौबे, फार्मेसी कालेज के प्राचार्य डॉ टिकेश्वर कुमार, नर्सिंग कालेज के प्राचार्य डैनियल तमिल सेलवन, उप प्राचार्य सिजी थॉमस, एमजे स्कूल की प्रधानाध्यापक मुनमुन चटर्जी उपस्थित थीं। वेबीनार का संचालन एमएससी नर्सिंग की व्याख्याता ममता सिन्हा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन नर्सिंग की सहायक प्राध्यापक दिशा ठाकुर ने किया।