भिलाई। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग के हिंदी विभाग द्वारा कथा सम्राट प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.आर.एन. सिंह के मार्गदर्शन में प्रेमचंद और भारतीय किसान विषय पर ऑनलाईन व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता प्रोफेसर थानसिंह वर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ शंकर निषाद ने की। शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का स्वागत करते हुए हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ अभिनेष सुराना ने वक्ताओं का परिचय देते हुए प्रेमचंद के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर प्रकाश डाला। डॉ सुराना ने कहा कि प्रेमचंद का समग्र लेखन जन चेतना और संघर्ष की कथा है। वे स्वतंत्रता आंदोलन के दौर के प्रतिनिधि रचनाकार हैं। उन्होंने किसानों एवं मजदूरों के शोषक अंग्रेजी सत्ता व महाजनी सभ्यता के षड़यंत्र का पर्दाफाश किया है। मुख्य वक्ता प्रोफेसर थानसिंह वर्मा ने कहा कि प्रेमचंद के निधन के 85 वर्ष बाद भी पश्चात जिस तरह प्रेमचंद का सम्पूर्ण साहित्य जगत याद कर रहा है, वह प्रेमचंद के सर्जक व्यक्तित्व व उनकी वैचारिकता का प्रमाण है, प्रेमचंद का साहित्य किसान जीवन की महागाथा है
श्री वर्मा ने सत्ता व्यवस्था के विरुद्ध किसान आंदोलनों के अतीत से वर्तमान परिदृश्य का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि सत्ता व्यवस्था ने हमेशा महाजनों जमीदारों व पूंजीपतियों के पक्ष में नियम बनाएं। उनके सरंक्षण में चल रही शोषण की प्रक्रिया को प्रेमचंद ने बहुत निकट से देखा था। इसीलिए उसके यथार्थ को संजीदगी के साथ चित्रित कर सके। श्री वर्मा ने प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि के पात्र सूरदास के संघर्ष का उदाहरण देते हुए जिस तरह व्यवस्था के विरूध्द सूरदास ने संघर्ष किया आज उसी जीवटता की आवश्यकता है। सूरदास ने मरने से पहले अंग्रेजी सत्ता को ललकारते हुए यह कहा था – हम हारे तुम जीते, तुम मजे हुए खिलाड़ी हो, और मिलकर खेलते हो। हम बंटे हुए है, पर हम तुम्ही से सीख कर फिर खेलेंगे। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम दौर के अजेय जनता का अमर स्वर है। आज के किसानों को सूरदास के इस संघर्ष से प्रेरणा लेनी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ शंकर निषाद ने कहा कि सत्ता व्यवस्था की नीति के चलते किसान मात्र मजदूर बनकर रह गए हैं। व्यवस्था को यह समझना चाहिए कि किसान जिस दिन उत्पादन करना बंद कर देगा उस दिन व्यवस्था के सारे ठाट बाट धरे रह जाएंगे। वर्तमान किसान आंदोलन पर अपने विचार प्रकट करते हुए डॉ शंकर निषाद ने कहा कि किसान हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है व्यवस्था को उनके महत्व को स्वीकार करते हुए सार्थक पहल करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के अंत में हिंदी विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापिका डॉ बलजीत कौर ने आभार व्यक्त किया। इस आयोजन को सफल बनाने में विभाग के सदस्य डॉ.जय प्रकाश, डॉ कृष्णा चटर्जी, डॉ रजनीश कुमार उमरे, डाॅ सरिता मिश्र व कुमारी प्रियंका यादव एवं तकनीकी सहयोग के लिए सौरभ सराफ का विशेष सहयोग रहा। इस आयोजन में महाविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति आभासी पटल पर रही।