दुर्ग। “रचनाकार देश-प्रदेश के किसी भी कोने का क्यों न हो, मूलतः वह रचनाकार ही होता है। उसे स्थानीयता में सीमित नहीं किया जा सकता। साहित्य में समकालीनता काल-विशेष तक सीमित नहीं होती बल्कि रचना की गति और अनुभव का खरापन उसे समय से जोड़ता है। इसी अर्थ में किसी भी युग का रचनाकार हमारा समकालीन हो सकता है।” आज शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिंदी विभाग के तत्वावधान में “हिन्दी का समकालीन रचना परिदृश्य” विषय पर केंद्रित अपने व्याख्यान में विख्यात साहित्यकार तथा महिला महाविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पूर्व प्राचार्य डॉ. चन्द्रकला त्रिपाठी ने ये बातें कही। उन्होंने समकालीनता का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसकी सीमा पर प्रकाश डाला। उन्होंने तुलसीदास, प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, मुक्तिबोध जैसे प्रमुख रचनाकारों की रचनाओं का उल्लेख करते हुए उनकी दूरदृष्टि पर अपनी बात रखी। तुलसीदास की पंक्तियों के माध्यम से राजा के उत्तरदायित्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने प्रजाहित के चिंतन को आज के समय में भी प्रासंगिक निरूपित किया। मुक्तिबोध के अंतर्मन की पीड़ा और भावबोध पर भी उन्होंने विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। समकालीन नए रचनाकारों की दृष्टि व अस्मितामूलक विभिन्न विमर्श जैसे आदिवासी, दलित, स्त्री चिंतन को स्पष्ट करते हुए समाज के उपेक्षित वर्ग के संघर्ष एवं वर्तमान में उनकी बदली हुई परिस्थितियों का उल्लेख भी उन्होंने किया। अपने सम्बोधन में उन्होंने 21 वीं सदी के रचनाकारों की रचनाओं का उल्लेख करते हुए विषय वस्तु की नवीनता पर भी प्रकाश डाला साथ ही वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप आज की रचनाओं में विषयवस्तुओं में होने वाले परिवर्तन और सोशल मीडिया तथा पुरस्कारों के प्रभाव को भी रेखांकित किया। समकालीन साहित्य के रचना परिदृश्य पर समग्र रूप से उन्होंने अपनी बात रखी।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आर. एन. सिंह ने अध्यक्षीय उद्बोधन में पूरे महाविद्यालय परिवार की ओर से डॉ. चंद्रकला त्रिपाठी का अभिनंदन करते हुए इस आयोजन को विद्यार्थियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। समकालीन हिन्दी साहित्य की उपादेयता स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि आज अनेक शोधार्थियों द्वारा इससे संबंधित विषयवस्तुओं पर शोध कार्य किया जा रहा है इसलिए इसका महत्व स्वयंसिद्ध है। उन्होंने अपने उद्बोधन में छत्तीसगढ़ के समकालीन रचनाकारों पर किये जा रहे शोध कार्यों का उल्लेख भी किया और स्थानीयता की दृष्टि से इसे महत्त्वपूर्ण बताया।
प्रारम्भ में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.अभिनेष सुराना ने स्वागत किया। उन्होंने विषय की प्रस्तावना के रूप में संक्षिप्त वक्तव्य में हिन्दी की विविध सरणियों में समकालीन रचना परिदृश्य को स्पष्ट करते हुए समकालीनता की अवधारणा को स्पष्ट किया।
प्रारम्भ में माँ सरस्वती के छायाचित्र में माल्यार्पण कर कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत हुई। तत्पश्चात अतिथियों को पुष्पगुच्छ देकर उनका स्वागत किया गया।
डॉ. त्रिपाठी के व्याख्यान के पश्चात विद्यार्थियों, शोधार्थियों ने अपनी शंकाओं के समाधान के लिए शोधार्थी प्रियंका यादव, सौरभ सराफ, तरुण साहू, छात्र सौरभ साहू आदि ने स्त्री विमर्श, साम्प्रदायिकता, विद्रोही चेतना, समकालीनता की समयसीमा जैसे मुद्दों पर प्रश्न पूछे जिसका डॉ. त्रिपाठी ने विस्तृत रूप से उत्तर दिया। अंत में शोधार्थी रसना मुखर्जी ने आभार प्रदर्शन किया। इस अवसर पर मंच संचालन डॉ. रजनीश उमरे द्वारा किया गया।
उक्त आयोजन में हिन्दी विभाग से डॉ. बलजीत कौर, डॉ. जयप्रकाश साव, डॉ. शंकर निषाद (सेवानिवृत्त), डॉ. ओमकुमारी देवांगन, डॉ. सरिता मिश्र, प्रियंका यादव, डॉ. ओ. पी. गुप्ता (विभागाध्यक्ष वाणिज्य), डॉ. ए. के. पाण्डेय (विभागाध्यक्ष इतिहास), डॉ. शकील हुसैन (विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान), डॉ. संध्या अग्रवाल (विभागाध्यक्ष एंथ्रोपोलॉजी), अर्थशास्त्र विभाग से सहायक प्राध्यापक डॉ. के. पद्मावती, डॉ. अंशुमाला चन्दनगर, प्रो. जनेन्द्र दीवान (विभागाध्यक्ष संस्कृत), डॉ. एस. डी. देशमुख (विभागाध्यक्ष भूगर्भशास्त्र), शासकीय महाविद्यालय बेरला की प्राचार्य डॉ. प्रेमलता गौरे, उतई महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सियाराम शर्मा, सहायक प्राध्यापक- हिन्दी डॉ. रीता गुप्ता, शासकीय महाविद्यालय मचांदूर में सहायक प्राध्यापक- हिन्दी डॉ. अम्बरीश त्रिपाठी, डॉ. अल्पना त्रिपाठी, डॉ. सुबोध देवांगन सहित स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों, शोधार्थियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।