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कांधे पर शव लेकर गांव को निकले शोकाकुल परिजन

Jul 19, 2022
Poverty does not allow vehicle for dead

दंतेवाड़ा। देश में सड़कें तो खूब बन रही हैं पर आवागमन के साधनों पर कोई खास काम नहीं हो रहा। मरीजों को अस्पताल पहुंचाना मुश्किल हो रहा है ऐसे में यदि शवों को कांधे पर ढोना पड़े तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नई घटना रेंगानार की है। एक बुजुर्ग आदिवासी महिला की मौत बीमारी से हो गई। महिला 25 किलोमीटर दूर टिकनपाल की निवासी थी। गरीब परिजनों ने एक खाट को उलटा किया, शव को उसमे डाला और कांधे पर लेकर गांव के लिए चल पड़े। पहले भी शवों को इस तरह ढोने की खबरें आती रही हैं।
आर्थिक तंगी इन परिवारों के लिए कोई नई बात नहीं है। ऐसे में शव ढोने का हजार रुपए वे कहां से लाते। मेहनत मशक्कत करना उनकी रोजमर्रा की जिंदगी है। इसलिए जब वृद्धा की मृत्यु हो गई तो उन्होंने वही किया जो वो कर सकते थे। एक खटिया का जुगाड़ किया। उसे उलटा कर शव को उसमें रखा। फिर बांस बांधकर उसे कंधे पर टांग लिया और चल पड़े गांव की ओर। कुआंकोंडा पुलिस को इसकी सूचना मिली तो थाना प्रभारी चंदन कुमार दलबल सहित उनकी तलाश में निकले। तब तक शव का काफिला 10 किलोमीटर निकल चुका था। बहरहाल पुलिस ने एक वाहन की व्यवस्था की और पुलिस की देखरेख में शव को गांव तक पहुंचा दिया।
यह हैं हालात
छत्तीसगढ़ में शवों को छोड़ भी दें तो मरीजों को ले जाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। इनमें मोटरसाइकिल एम्बुलेंस भी शामिल है। पर इनमें से अधिकांश में कोई सुविधा नहीं है। स्वास्थ्य विभाग में 330 से ज्यादा 108 एम्बुलेंस हैं। महतारी जतन सेवा के 102 एम्बुलेंस की संख्या भी 324 के आसपास है। इसके बावजूद एम्बुलेंस कम पड़ते हैं। 2019 तक प्रदेश में 127 निजी एम्बुलेंस पंजीकृत थे। कोरोना काल में इनकी संख्या बढ़कर 2300 के पार चली गई। इनमें से अधिकांश में बेसिक लाइफ सपोर्ट तक नहीं है। जब मरीजों को ढोने का यह हाल है तो शवों के लिए कौन सोचे।

Pic Credit : livehindustan, file photos

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