15 साल याने कि डेढ़ दशक.. एक लंबा अरसा होता है. सरकार किसी की भी हो, इतने समय में कोई भी ऊब सकता है. यही ऊब छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार में भी देखी गई थी. समय रहते नेतृत्व परिवर्तन नहीं करने का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा. 2018 के चुनाव में 90 सीट वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में उसे केवल 15 सीटें मिलीं जबकि केन्द्र में भाजपा शीर्ष पर चल रही थी. भाजपा हारी भी तो किससे, जिसका इतिहास “कंपनी-एम” भारत भूमि से मिटाना चाहती है. विपक्ष में रहने की आदत तो थी नहीं, सो चार साल का वक्त भी यूं ही गुजर गया. अब यह पार्टी की मजबूरी है कि सत्ता में वापसी करनी है तो नई टीम की घोषणा करनी ही पड़ेगी. पुरानी टीम अब पिट कर बैठ चुकी है. उन्हें निकाला तो नहीं जा सकता पर मार्गदर्शक मंडल में अवश्य भेजा जा सकता है. वैसे छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री ने खूब चुटकी ली है कि पूर्व मुख्यमंत्री को यदि राज्यपाल का पद ऑफर होता है तो उन्हें इसे स्वीकार लेना चाहिए. इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है. यही समाज की व्यवस्था है. एक समय आता है जब पिता की जूती पूत के पैरों में आने लगती है. यही सही समय होता है कि पूत को थोड़े अधिकार और ओहदे दे दिये जायें. आखिर उसका भी घर परिवार होता है. उसकी पत्नी को भी लोगों को बताना होता है कि पति क्या करते हैं. यहां तो जो नीचे थे वो नीचे ही रह गये और जो ऊपर थे वो ऊपर बैठे-बैठे ऊंघने लगे. वैसे भी इतिहास गवाह है कि वही कंपनियां असाधारण रूप से सफल होती हैं जहां एक स्तर के बाद मालिक अपना काम किसी सुयोग्य सीईओ को सौंपकर स्वयं मार्गदर्शक मंडल में आ जाता है. जो कंपनियां ऐसा नहीं करतीं, उनके यहां प्रशिक्षित लोग दूसरी कंपनियों के सीईओ बन जाते हैं. बहरहाल, बात उबासी ले रही छत्तीसगढ़ भाजपा की हो रही थी. भाजपा को जीरो से हीरो बनाने वाले संघ को यह सख्त नागवार गुजर रहा था. अंतपंत चुनाव से सवा साल पहले उसने अपना पासा फेंक दिया. उसने छत्तीसगढ़ में भाजपा और भाजपा विधायक दल की कमान संघ से जुड़े लोगों को सौंप दी. अब यही चुनावी वैतरणी पार लगाएंगे. वैसे भी जो काम संघ या उसकी आनुषांगिक इकाइयां कर सकती हैं वह एक राजनीतिक दल होने के नाते भाजपा नहीं कर सकती. उसने किया तो उसपर बैन लग सकता है. वह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की नाव पर सवार तो हो सकती है पर उसका पतवार नहीं उठा सकती. सरकार के कामकाज को लेकर हल्ला-बोलने का रास्ता स्वयं पीएम मोदी ने बंद कर दिया है. वे समय-समय छत्तीसगढ़ और भूपेश सरकार की नीतियों और नवाचार की सराहना करते रहे हैं. बचा है तो केवल छत्तीसगढ़िया और गैर छत्तीसगढ़िया का मुद्दा. कांग्रेस के कई कद्दावर इन दिनों उपेक्षित चल रहे हैं. उन्हें समेटने का भी वक्त आ गया है. गाने का वक्त आ गया “… ये मौसम और ये दूरी।”
Display pic credit The Statesman
#Chhattisgarh_BJP #Margdarshak_Mandal