भिलाई। कबीर ने हमेशा रूढ़िवादिता पर प्रहार किया. हिन्दुओं की बुत पूजा का विरोध करते हुए जहां उन्होंने कहा – “पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहाड़” तो वहीं मुसलमानों से भी पूछा कि “कांकर पाथर जोरिके मस्जिद लियो बनाए, तिस पर चढ़ मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय”. कबीर का मानना था कि ईश्वर सभी जीवों में विद्यमान है इसलिए सबके प्रति मित्रभाव रखते हुए उनकी सेवा से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है.
उक्त बातें एमजे ग्रुप ऑफ एजुकेशन की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर ने कहीं. वे कबीर एक युगदृष्टा विषय पर महाविद्यालय में आयोजित एक विचार गोष्ठी को संबोधित कर रही थीं. इस विषय पर हेमचंद यादव विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित भाषण माला के पूर्वाभ्यास के तहत हुए इस आयोजन में शकुंतला जलकारे, मेघा मानकर एवं परविन्दर कौर ने भी अपने अपने विषय पर भाषण किये. विश्वविद्यालय ने सभी वक्ताओं को अलग-अलग उपविषय आवंटित किये थे.
कबीर एक युगदृष्टा – कबीर पंथ विषय़ पर बोलते हुए डॉ श्रीलेखा ने बताया कि परम्पराएं जीवंत होती हैं और समय के साथ बदल जाती हैं. नई बनती हैं और अप्रासंगिक परम्पराएं नष्ट हो जाती हैं. कबीर के विचार मौखिक रूप से आगे बढ़ते रहे इसलिए आरंभ में इसका दायरा भी सीमित ही रहा. उनका काव्यात्मक शैली हूबहू आगे बढ़ती रही. कबीर के लगभग सौ साल बाद उनके दोहे और उनकी साखियां पहली बार प्रकाशित हुईं. उनकी स्वीकार्यता बढ़ी और कबीरपंथ ने जन्म लिया. डॉ श्रीलेखा ने कबीर पंत की शाखाओं और उपशाखाओं पर गहराई से अपने विचार रखे.
उन्होंने एक कहानी भी सुनाई जिसमें बहुत सारे बच्चों को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सजा दी गई थी. इन बच्चों ने कभी रोशनी नहीं देखी थी और अंधेरे में ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. उनकी कालकोठरी में एक छोटा सा रौशनदान था. एक बालक उस रौशनदान से बाहर की दुनिया देखता है और शेष बालकों को उसके विषय में बताता है. पर कोई भी उसका यकीन नहीं करता. कबीर भी रौशनदान से झांकने वाले इस बालक की तरह थे जिन्होंने वास्तविक दुनिया के दर्शन किये थे. पर उनकी बातों को मानने वाले कम ही मिले. आज भी उनके विचारों को पूरी तरह स्वीकार कर पाना लोगों के लिए मुश्किल ही प्रतीत होता है.
महाविद्यालय की मेघा मानकर को विषय मिला था कबीर के दोहे. कबीर के प्रतिनिधि दोहों को पढ़ते हुए उन्होंने उनकी व्याख्या की. परविन्दर कौर ने कबीर का साखियों पर अपने विचार रखे. शकुन्तला जलकारे ने कबीर की प्रासंगिकता पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया.
सभी वक्ताओं ने इसके बाद विश्वविद्यालय सतर पर आयोजित कार्यक्रम में पीपीटी के माध्यम से अपनी प्रस्तुतियां दीं.