राष्ट्र वही तरक्की कर सकता है जिसमें अमन चैन हो, सब मिलकर राष्ट्र निर्माण करें. लोकतंत्र पार्टियों को प्रतिस्पर्धा के लिए उकसाती है. यह प्रतिस्पर्धा जनहित और नवाचार के क्षेत्र में होनी चाहिए. यदि वोट की राजनीति के लिए अवाम को बांटा गया तो वही हश्र होगा जो रावण की लंका का हुआ था. दशानन रावण तो त्रिकालदर्शी थे, त्रिलोकविजयी थे, वेदों-पुराणों के महापंडित थे. उन्होंने अपने राज्य के भीतर मतों का बंटवारा शुरू किया. शैव रावण ने वैष्णव विभीषण का तिरस्कार किया और नतीजा हम सभी जानते हैं. इतिहास केवल बांचने का विषय नहीं है, इसमें छिपे गूढ़ तत्वों को समझना जरूरी है. बंटवारे की यही राजनीति आज भारत की पहचान बन गई है. अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए राजनीतिक दल अवाम को उकसा रहे हैं, उनसे ऊटपटांग हरकतें करवा रहे हैं ताकि लोगों की साम्प्रदायिक भावनाएं भड़कें. वोटों का ध्रुवीकरण हो और वो किसी तरह सत्ता पर काबिज हो सकें. पर अपना घर फूंककर तमाशा देखना काफी से ज्यादा महंगा पड़ सकता है. ताजा मामला एक सिरफिरे के प्रलाप का है. उसने एक आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट कर कहा कि जिसे जो उखाड़ना है, उखाड़ लो. राज्य सरकार ने अपेक्षित कदम उठाए. युवक को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. लोग इस घटना को भूलने बैठे थे पर राजनीति बाज इसे जिन्दा रखने की पुरजोर कोशिशें कर रहे हैं. 15 साल सत्ता में रहने के बाद जिस दल ने लोगों का विश्वास खोया अब वह आड़े-टेढ़े रास्तों से सत्ता में लौटने की कोशिश कर रहा है. विपक्ष में उसे अभी सिर्फ साढ़े चार साल ही हुए हैं और उसका धैर्य जवाब दे रहा है. प्रभु श्रीराम ने 14 वर्ष का दीर्घ वनवास काटा था. इन 14 वर्षों में उन्होंने असीम धैर्य का प्रदर्शन करते हुए वानरों और रीछों के साथ एक नई सेना का गठन किया. लक्ष्मण के क्रोध को काबू में रखा और रावण पर विजय प्राप्त कर सीता का उद्धार किया. उनके जीवन से लोग कुछ तो सीखते. श्रीराम ने सत्ता प्राप्त करने के लिए कोई षडयंत्र नहीं रचा. वे चाहते तो आसानी से अयोध्या की गद्दी पर आरूढ़ हो सकते थे. जनता भी यही चाहती थी. पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. उन्होंने प्रारब्ध को स्वीकार किया. स्वयं कर्मयोगी बने और पुरुषोत्तम कहलाए. श्रीराम राजा थे और राजा में राजसी गुण होते हैं. वह आलोचना करने वाले धोबी को कारागार में नहीं डालते बल्कि स्वयं कष्ट भोगकर ऐसी मिसालें कायम करते हैं जो लोगों का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दें. वैसे केदार की जानकारी के लिए बता दें कि योगी के राज्य उत्तर प्रदेश में भी देव प्रतिमाओं को खंडित करने की घटनाएं हुई हैं पर उन्होंने सदैव राजधर्म का पालन किया है. 2019 में मेरठ का अथाई मंदिर, 2022 में लखनऊ और अभी 2023 में वाराणसी में प्राचीन मूर्तियां खंडित की गईं. तो क्या योगी आदित्यनाथ भी मुस्लिम परस्त हैं?