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शराब और पशुबलि भी तो सनातन संस्कृति का हिस्सा

Apr 17, 2023
Politics on religion and culture

छत्तीसगढ़ इन दिनों राजनीतिक बतोलेबाजी का अखाड़ा बना हुआ है. हेट स्पीच देने वालों के साथ ही इन बातों को शेयर करने वालों को पुलिस पकड़ रही है. सोशल मीडिया ग्रुप्स में ऐसे पोस्ट शेयर करने पर एडमिन तक की जिम्मेदारी तय करने की चेतावनी दी गई है. इस मामले में पुलिस ने भारतीय जनता पार्टी के आठ पदाधिकारियों को नोटिस भेजकर स्पष्टीकरण मांगा है. उधर, ईसाई धर्म को अपनाने वाले आदिवासियों से सुविधाएं छीनने की मांग की जा रही है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने साफ कर दिया है कि छत्तीसगढ़ में नफरत की राजनीति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. ईसाई आदिवासियों को लाभ से वंचित करने की मांग पर उन्होंने कहा कि यह फैसला केन्द्र सरकार को लेना है इसलिए छत्तीसगढ़ में रैली करने का कोई मतलब नहीं है. इस पर भाजपा के वरिष्ठ नेता का बयान आया है कि भाजपा संस्कृति की रक्षा करने का काम कर रही है. आदिवासियों की संस्कृति खतरे में है. पादरी भगवा कपड़ा पहनकर लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहे हैं. अब धर्म परिवर्तन करने वालों का नाम भी नहीं बदला जाता. धर्मांतरण के इस कुचक्र से आदिवासी समाज टूट रहा है. जहां तक संस्कृति की रक्षा करने का सवाल है तो इस पर लंबी बहस की जा सकती है. शराब का भारतीय संस्कृति से गहरा रिश्ता है. कलवारों का यह पुश्तैनी पेशा रहा है. अब शराबबंदी की मांग की जा रही है. पशु बलि, यहां तक कि नरबलि भी सनातन संस्कृति का हिस्सा रही है. 1940 के दशक में भी दंतेवाड़ा के मंदिर में नरबलि दिए जाने का उल्लेख सरकारी रिकार्ड में दर्ज है. नगाड़े भी मवेशियों की खाल से मढ़े जाते थे. सींगों का उपयोग भी वाद्ययंत्र के रूप में होता था. मवेशियों की खाल उतारने से लेकर चमड़े के जूते गांठने वालों का भी अपना समाज था. यह भी एक जाति विशेष का पुश्तैनी धंधा था. उनकी भी अपनी संस्कृति थी. छत्तीसगढ़ में अंगारमोती, चंद्रहासिनी, रायगढ़ का कर्मागढ़ आदि कई स्थानों पर आज भी देवी-देवताओं को बलि चढ़ाई जाती है. कहीं-कहीं तो यह परम्परा 500 या 1000 साल पुरानी है. जामड़ी पाटेश्वरधाम इलाके में भी आदिवासी देवी-देवता को तुष्ट करने के लिए बलि चढ़ाते थे. संस्कृति रक्षकों ने वहां आदिवासियों की संस्कृति पर हमला किया. त्रिपुरा में 500 साल पुरानी बलि प्रथा को न्यायालय में चुनौती दी गई. अदालत ने पशुबलि को कानून का उल्लंघन माना. ओड़ीशा के बलांगीर में भी शूलिया जात्रा के दौरान पशु बलि दी जाती है. मांसाहार आदिवासियों से लेकर ब्राह्मण और क्षत्रियों तक का प्रिय भोजन रहा है. देश में अनेक वैध कत्लखाने हैं पर पशुबलि गैरकानूनी है. नवरात्रि को में कहीं उपवास किये जाते हैं तो कहीं बलि चढ़ाई जाती है. पता नहीं कौन लोग किस संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं.

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