भिलाई। क्वाड्रिप्लेजिया अर्थात चतुर्घात का एक मरीज हाइटेक हॉस्पिटल पहुंचा. 44 वर्षीय परमानन्द सोनी के हाथ-पैरों ने काम करना बंद कर दिया था. राजनांदगांव के भेड़ीकलां निवासी इस मरीज को जब अस्पताल लाया गया तो उसकी स्थिति काफी गंभीर थी. तीन हफ्ते की सघन चिकित्सा के बाद जब वे घर लौटे तो उनकी स्थिति काफी हद तक सामान्य हो चुकी थी.
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ नचिकेत दीक्षित ने बताया कि मरीज की स्थिति तेजी से बिगड़ी थी और दो-तीन में ही उसकी स्थिति इतनी गंभार हो चुकी थी कि वह बिस्तर पर पड़ गया था. दरअसल, वह एक्यूट ट्रांसवर्स मायेलाइटस का शिकार था. इसमें धड़ के दोनों तरफ बैंड या पट्टी की तरह संवेदना का ह्रास हो जाता है. ऐसा मेरूरज्जु के सूजन अर्थात शोथ के कारण हो सकता है. मरीज एनएमओ एंटीबॉडी पाजीटिव था. यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है.
मरीज को सघन चिकित्सा में लिया गया. इलाज के आरंभ में उसे स्टेरॉयड्स दिये गये. स्थिति कुछ संभलने पर प्लाज्मा एक्सचेंज (प्लाज्मा विनिमय) प्रारंभ किया गया. इसके तहत रोगी का रक्त निकालकर प्लाज्मा को अलग कर त्याग दिया जाता है. प्रतिस्थापन द्रव के साथ, लाल और सफेद रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स रोगी को वापस कर दिए जाते हैं. मरीज को प्लाज्मा विनिमय के 5 चक्र देने पड़े. इसके बाद रोगी की स्थिति काफी हद तक सुधर गई.
डॉ दीक्षित ने बताया कि मरीज को एक अगस्त को अस्पताल में भर्ती किया गया था. 21 अगस्त को जब उसी छुट्टी दी गई तो वह न केवल बिस्तर से उठ पा रहा था बल्कि सहारा लेकर चलने फिरने भी लगा था. एक्यूट ट्रांसवर्स मायेलाइटस के मामलों में रिकवरी काफी धीमी या फिर असंभव होती है. यह एक विलक्षण मामला था जिसमें हाइटेक की टीम ने मिलकर काम किया और आशातीत सफलता मिली.