भिलाई. हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में एक ऐसे बच्चे को भर्ती कराया गया जिसने डाक्टरों को चक्कर में डाल दिया. 8 साल की इस बालिका को 3 साल की उम्र से बार-बार पीलिया हो रहा था. वह कई बार अस्पतालों में भी भर्ती हुई पर मर्ज समझ में नहीं आया. बालिका को पीलिया चढ़ता और कुछ दिनों के इलाज के बाद वह उतर भी जाता. वह घर लौट जाती और कुछ समय बाद पुनः लौट आती. इस रहस्य को सुलझाने में हाइटेक के डाक्टरों को सफलता मिली है.
बालिका का हाइटेक में भर्ती करने के बाद बाल्यरोग महातज्ञ डॉ मिथिलेश यदु, डॉ सुधाकर एवं पेट रोग विशेषज्ञ डॉ आशीष देवांगन ने उसकी जांच की. हेपेटाइटिस के लिए बालिका की जांच नेगेटिव आई. यह पित्ताशय या पित्तनली की पथरी का भी मामला नहीं था. बच्ची को कभी भी रक्त नहीं चढ़ाया गया था अर्थात बाहरी संक्रमण का भी खतरा नहीं था. बार-बार बीमार पड़ने की वजह से बालिका का शारीरिक विकास भी रुक गया था. 8 साल की उम्र में भी उसका वजन मात्र 18 किलोग्राम था.
रोगी के परिजनों ने बताया कि उसका इलाज 3-4 अलग-अलग जिला अस्पतालों और मेडिकल कालेज में हो चुका है. पर कुछ समय बाद पीलिया के लक्षण दोबारा उभर आते हैं.
बालिका के रक्त की जांच की गई. इसमें भी हेपेटाइटिस के कोई सबूत नहीं मिले. पर क्लॉटिंग फैक्टर (थक्का जमने का गुण) कम मिला. क्लॉटिंग फैक्टर बढ़ाने और बुखार को कम करने के लिए उसका इलाज प्रारंभ किया गया. इस बीच सभी शंकाओं को दूर करने के लिए टेस्ट किये जाते रहे. बच्ची को विल्सन डिजीज (डब्लूडी) के लिए भी स्क्रीन किया गया. यह टेस्ट भी नेगेटिव रहा. फिर बालिका का एसएलई टेस्ट किया गया जो ल्यूपस का पता लगाने में मदद करता है. ल्यूपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है. यह बीमारी तब होती है, जब शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाने वाला इम्यून सिस्टम ही शरीर को नुकसान पहुंचाने लगता है और हमला करना शुरू कर देता है. यह टेस्ट पॉजिटिव था.
अंततः चिकित्सकों की यह टीम यह पता लगाने में सफल रही कि बालिका का ऑटो इम्यून सिस्टम बिगड़ा हुआ है. उसके शरीर का इम्यून सिस्टम उसके लिवर के सेल्स पर हमला कर रहा है. इससे रोगी ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस की चपेट में आ जाता है. अच्छी बात यह थी कि उसका ऑटोइम्यून सिस्टम केवल लिवर पर ही हमला कर रहा था.