भिलाई। एमजे कालेज के विद्यार्थियों का परिचय आज दुनिया के टॉप 2 प्रतिशत वैज्ञानिकों में शामिल डॉ संजय धोबले ने संबोधित किया. बहुविषयक शोध की तिलस्मी दुनिया से विद्यार्थियों का परिचय कराते हुए उन्होंने कहा कि इसके अच्छे नतीजे आते हैं. उन्होंने अपने अधिकांश शोध अन्य वैज्ञानिकों के सहयोग से ही पूरे किये हैं. इनमें विज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों के लोगों के साथ काम करने का मौका भी मिला है.
महाविद्यालय के साइंस एंड कम्प्यूटर साइंस विभाग द्वारा आईपीआर सेल तथा आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के सहयोग से इस एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया गया था. सेमीनार का विषय था “बहुविषयक शोध एवं चुनौतियां”. एमजे समूह की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर की प्रेरणा तथा प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे के मार्गदर्शन में आयोजित इस सेमीनार में आरटीएम यूनिवर्सिटी नागपुर के प्रोफेसर एसजे धोबले तथा आनंद निकेतन कालेज वरोरा के डॉ एन उगेमुगे ने विद्यार्थियों को संबोधित किया.
डॉ धोबले ने बताया कि मूल रूप से वे भौतिकी से जुड़े हैं. पर उन्होंने स्वयं को इसके दायरे से बाहर निकाला और रसायन शास्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर साइंस, जूलॉजी, जीयोलॉजी, बॉटनी, माइक्रोबायोलॉजी, कॉस्मेटिक टेक्नोलॉजी, केमिकल इंजीनियरिंग, मेकानिकल इंजीनियरिंग, फार्मेसी, प्रबंधन, अर्थशास्त्र तथा आयुर्वेद के विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम किया. 2013 से 2023 के बीच उनके 721 शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र कोपस में प्रकाशित हुए. इनमें कोरोनाकाल के दौरान 2020 से 2022 तक क्रमशः 60, 89 और 91 शोध पत्र शामिल हैं.
कोरोनाकाल के दौरान लोग अपने मृत परिजनों को नहीं देख पा रहे थे. अंतिम क्रिया संपन्न कर रहे कर्मचारी भी खतरे में थे. ऐसे समय में उन्होंने एक ऐसे बक्से का निर्माण किया जिसमें कुछ देर रखकर शव को संक्रमण मुक्त किया जा सकता था. इसके प्रोटोटाइप को उन्होंने मेडिकल कालेज को दान कर दिया. प्रदेश में ऐसी ढेर सारी इकाइयां बनीं और लोगों को इसका लाभ मिला. इसी तरह आयुर्वेद चिकत्सा के एक आवश्यक अंग पंचकर्म की जगह लेने के लिए उन्होंने प्रकाश तरंगों की मदद से राहत देने की तकनीक विकसित कर दी. यह कई व्याधियों की चिकित्सा में कारगर साबित हुई. अस्पतालों का कीटाणु और जीवाणु मुक्त करने के लिए भी उन्होंने डिवाइस तैयार किये. यह सब कुछ मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च के कारण ही संभव हो पाया.
उन्होंने विद्यार्थियों को शोध के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि इसमें रोजगार, संतुष्टि और लोगों के लिए कुछ का अवसर सबकुछ शामिल है. उन्होंने कहा कि विज्ञान के किसी भी क्षेत्र से शोध के लिए आगे आने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए उनके और उनकी प्रयोगशाला के द्वार सदैव खुले हुए हैं. उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि 55 साल की उम्र में वे 75 विद्यार्थियों को पीएचडी करवा चुके हैं जिनमें से कुछ को विदेशों में पोस्ट डॉक्टोरल नियुक्तियां भी मिल चुकी हैं.
दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए डॉ एन उगेमुगे ने बौद्धिक संपदा की चर्चा की. उन्होंने कॉपीराइट, पेटेन्ट, ट्रेड मार्क और ट्रेड सीक्रेट में अंतर को स्पष्ट करते हुए बताया कि पेटेन्ट अधिकतम 20 वर्षों के लिए प्राप्त किया जा सकता है. सबसे पहले अपने देश में पेटेन्ट हासिल करना होता है इसके आधार पर ही अंतरराष्ट्रीय पेटेंट जारी किये जाते हैं. पेटेन्ट का दो साल बाद प्रति वर्ष नवीनीकरण कराना होता है. ऐसा नहीं करने पर दो वर्ष बाद वह ओपन हो जाता है. कॉपीराइट का लाभ आजीवन तथा जीवन के बाद भी 50 वर्षों तक आश्रित को प्राप्त होता रहता है.
उन्होंने बताया कि वैकल्पिक रोजगार के उपाय के रुप में बौद्धिक संपदा के सृजन एक अच्छा विकल्प है. इस क्षेत्र में सफलता आपको कम उम्र में ही कार्य से अवकाश प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है. उन्होंने विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं की पुस्तकों के लेखकों का उदाहरण भी दिया जिनकी कमाई आज लाखों रुपए सालाना से भी अधिक है.
आरंभ में प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे ने डॉ धोबले एवं डॉ उगेमुगे का परिचय दिया. उन्होंने बताया कि यह उनका सौभाग्य है कि वे स्वयं डॉ धोबले के स्कॉलर रहे हैं तथा उनका आशीर्वाद आज तक उन्हें प्राप्त हो रहा है. एमजे कालेज (फार्मेसी) के प्राचार्य डॉ दुर्गा प्रसाद पंडा ने भी आईपीआर पर अपनी बात संक्षेप में रखी. कार्यक्रम का संचालन बायोकेमिस्ट्री विभाग की प्रमुख सलोनी बासु ने किया. अंत में धन्यवाद ज्ञापन कम्प्यूटर साइंस विभाग के प्रमुख प्रवीण कुमार ने किया.