दुर्ग। शास. वि.या.ता.स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय में बायोटेक्नालॉजी विभाग एवं आईक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान में एवं छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी रायपुर के समन्वयन में ’’इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी राइटस’’ पर आयोजित 7 दिवसीय आनलाईन कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में देश के विभिन्न प्रांतों के प्रख्यात आईपीआर विशेषज्ञों का व्याख्यान हुआ एवं इससे संबंधित सभी पहलुओं कानून एवं एक्ट पर विस्तार पूर्वक चर्चा की गई। कार्यक्रम के प्रारंभ में वर्कशाप के कन्वीनर डॉ अनिल कुमार ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की एवं आर्गेनाईजिंग सेक्रकेटरी डॉ अजय सिंह ने प्राचार्य का संदेश प्रस्तुत किया। उद्घाटन समारोह की मुख्य अतिथि डॉ अरूणा पल्टा, कुलपति, हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग ने कहा कि शोधार्थी आने वाले समय की मांग को समझते हुए अपने शोध को सही समय पर पेटेंट करा लें क्योंकि आनेवाला समय भौतिक संपदा की उपेक्षा बौद्धिक संपदा का होगा।
प्रथम दिन की मुख्य वक्ता डॉ गार्गी चक्रवर्ती ने बहुत ही सरल शब्दों में आईपीआर के संबंधित कानून एवं उसके उल्लघंन पर होने वाली समस्याओं को समझाया। उन्होंने यह भी बताया कि ’8कापीराइट’ आइडिया का नहीं बल्कि उसके एक्सप्रेशन पर प्रदान किया जाता है। उन्होंने प्लेगेरिज्म के पालन एवं संस्थानगत आईपीआर पॉलिसी की आवश्यकता पर जोर दिया।
कार्यक्रम के दूसरे दिन के मुख्य वक्ता डॉ कुमार गौरव, चाणक्य लॉ यूनिवर्सिटी पटना ने रजिस्टर्ड एवं नॉन-रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क के महत्व को बताया तथा विभिन्न व्यवसायिक कंपनियों के लिए साइबर स्पेस की भूमिका को समझाया।
तीसरे दिन के मुख्य वक्ता डॉ मनीष यादव, महाराष्ट्र 0170 नेशनल लॉ यूर्निवसिटी नागपुर ने कम्पलसरी लाइसेंसिंग ऑफ पेटेंट-इंडियन एप्रोच विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए पेटेंटे प्राप्त करने के लिए पेटेंट को-ऑपरेशन ट्रीटी, विशेष परिस्थितियों में पेटेंट के निरस्तीकरण, कम्पलसरी लाईसेंसिंग तथा पैरेलल इम्पोर्टस को मनोरंजक उदाहरणों के द्वारा समझाया।
वर्कशाप के चौथे दिन के मुख्य वक्ता डॉ एस.सी.राय, चाणक्या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटना ने ’’जियोग्राफिकल इंडिकेटर’’ पर बहुत ही ज्ञान वर्धक व्याख्यान दिया। उन्होंने किसी प्रांत के इंडिजिनस पहचान को रजिस्टर्ड करने एवं किसी राज्य या क्षेत्र की कला, भोज्य पदार्थ या किसी अन्य विशेषताओं की पहचान कर के उसे शीघ्रता शीघ्र क्षेत्र की पहचान के रूप में पंजीकृत करने की आवश्यकता पर जोर दिया एवं इस दिशा में लोगों में जागृति के अभाव पर चिंता व्यक्त की।
पांचवे दिन के मुख्य वक्ता डॉ पायल थाऊरे, आर.टी.एम. नागपुर यूनिवर्सिटी ने प्लांट वेराइटी प्रोटेक्शन एंड फार्मर्स राइट्स पर व्याख्यान देते हुए कहा कि प्रौधों की प्रजातियों को सामुदायिक स्तर पर संरक्षित करना चाहिए तथा इसके लिए पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उसे रजिस्टर करना चाहिए। उन्होंने जीन डिपाजिटरी के बारे में भी बताया।
छठवें दिन की मुख्य वक्ता डॉ अनुजा मिश्रा, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी नागपुर ने ’’प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेरायटी एंड बायोडायवर्सिटी पर अपना व्याख्यान अत्यंत सरल उदाहरणों के द्वारा प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि किन अधिनियमों के अंतर्गत हम अपने बायोडायवर्सिटी को संरक्षित कर सकते हैं।
वर्कशाप के 7वें और अंतिम दिन वक्ता डॉ देवभीता मंडल हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रायपुर ने ’’पेटेंटे फिसीबिलिटी डिजायनिंग एंड प्रासेसिंग’’ विषय पर अपना व्याख्यान दिया एवं पेटेंटे रजिस्टर करने हेतु सभी कानूनी बारिकियों को विस्तारपूर्वक समझाया।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ अमित दुबे, साईटिस्ट छत्तीसगढ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने सभी प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए बताया कि परिषद राज्य में पेटेंट संबंधी प्रक्रियाओं में सहायता करने हेतु एक मात्र नोडल सेंटर है। उन्होने शोधार्थियों को उनके पेटेंट हेतु परिषद द्वारा दी जा रही आर्थिक एवं तकनीकी सहायता के बारे में तथा इस क्षेत्र में परिषद के उद्देश्यों की विस्तारपूर्वक जानकारी दी ।
इस वर्कशाप में 19 राज्यों के 600 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया तथा नेपाल से भी प्रतिभागी सम्मिलित हुए।
डॉ. अनिल कुमार ने संपूर्ण कार्यक्रम को संक्षेपित किया एवं वर्कशाप के उद्देश्यों को बताया। कार्यक्रम के अंत में आर्गेनाईजिंग सेक्रेटरी डॉ अजय सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया।