भिलाई। पारंपरिक खेती में वनस्पति कचरे को एकत्रित करके खाद बनाने का प्रचलन था जिसे हम जैविक खाद के नाम से भी जानते है। समय के साथ रासायनिक खाद का प्रचलन बढ़ा पर इसका विपरीत असर पौधों की गुणवत्ता के साथ साथ मिट्टी की सेहत पर भी पड़ा। अब इसे बदलने का समय आ गया है। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापक डॉ निहारिका देवांगन ने घर पर ही जैविक खाद बनाया है। उन्होंने इसकी विधि भी साझा की। वनस्पति विभाग में सहायक प्राध्याक डॉ निहारिका देवांगन पर्यावरण संरक्षण हेतु समय-समय पर अनेक जागरुक कार्यक्रम करवाती है। वे पर्यावरण की सुरक्षा के लिये भी संकल्पित है। कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा लॉकडाउन किया गया है। वर्क फ्रॉम होम करते हुए कुछ समय मिलने पर डॉ देवांगन ने अपने घर में ही फर्टिलाईजर तैयार किया। उन्होंने बताया कि रोजाना हमारे घरों में सब्जियों तथा फलों के छिलके एवं अन्य अपशिष्टों को फेंक देते है। इस प्रकार से निकले सब्जी के अपशिष्ट को फेंकना बंद कर उन्होंने इन्हें सुखा लिया। इसी से जैविक खाद बनाया जो उनके गार्डन के लिए लाभदायक साबित हुई।
उन्होंने बताया कि इन सभी पदार्थो तथा गार्डन से निकली सूखी पत्तियां एवं टहनी के छोटे-छोटे टुकड़ों को काटकर धूप में पांच से सात दिन तक सुखा कर इन्हें मिक्सी में अच्छे से पीस कर पाउडर बना लिया। इस पाउडर को नियमित रुप से पौधों में डालने पर फूलों का आकार बढ़ गया तथा मिट्टी भी उपजाउ होने लगी। परिवार के अन्य सदस्यों ने भी यही करना शुरू किया।
उन्होंने बताया कि जैविक खाद से उगाई गई सब्जियां स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होती है। इस प्रकार जैविक खाद का उपयोग पर्यावरण के लिये अनुकूल है। यह मिट्टी में उपस्थित लाभकारी सूक्ष्मजीवों के लिए भी फायदेमंद होती है। ये सूक्ष्मजीव मिट्टी की उर्वरकता को बनाये रखते है तथा विभिन्न तरीके से पौधों को आवश्यक पोषक तत्व जैसे नाईट्रोजनए फासफोरिअसए पोटेसियमए आयरन आदि प्रदान करते है।
इसी प्रकार घर में चाय बनाने के बाद उस चायपत्ती से भी इन्होंने कमपोस्ट खाद बनाया। जिस प्रकार हम चाय का आनंद लेते है उसी प्रकार हमारा गार्डन भी चाय का आनंद लेता है। घर में इस्तेमाल की गई चाय की पत्तियों पौधों को खनिज, कार्बोहायड्रेट एवं अन्य पोषक तत्व प्रदान करती है। चाय पत्ति की बनी खाद गुलाब तथा टमाटर के पौधों के लिए अधिक लाभकारी होती है। यह मिट्टी के पीएच को कम करती है तथा पौधों को पोषक तत्व प्रदान करती है।
पर्यावरण संरक्षण की केवल बात न करते हुये अब समय है पर्यावरण संरक्षण एवं सुरक्षा के प्रति कोई ठोस कदम उठाने की। अपनी इस छोटी सी कोशिश के माध्यम से मैं विद्यार्थियों एवं समाज को यही संदेश देना चाहूंगी कि हमें अब पुनः उपयोग तथा रिसायकल की ओर कदम बढ़ाना है तथा कचरा की मात्रा में कमी लाना है जिससे हमारा पर्यावरण साफ.सुधरा एवं स्वच्छ रहे।
उन्होंने कहा कि प्राचार्य डॉ हंसा शुक्ला ने ही इसकी प्रेरणा दी। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए किये गए छोटे-छोटे कार्यों को निरंतर सराहा और सुझाव भी देती रहीं।